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This Article is From Apr 05, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : शेल कंपनियों में काला पैसा खपाया गया?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 05, 2016 21:58 pm IST
    • Published On अप्रैल 05, 2016 21:52 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 05, 2016 21:58 pm IST
दुनिया भर में पनामा पेपर्स के खुलासे के बाद किसी को समझ नहीं आ रहा है, कोई उद्योग जगत के खिलाफ बोलना नहीं चाहता या क्या ऐसा भी है कि इस मामले में दम ही नहीं है। वर्ना इतना बड़ा खुलासा हुआ है और इसे लेकर तमाम देशों की शुरुआती प्रक्रिया के बाद कहीं कोई खास राजनीतिक हलचल नहीं दिखती है।

भारत में क्या इस वजह से भी शांति है कि किसी बड़े नेता या दल का नाम अभी तक नहीं आया है या इस वजह से कि उद्योगजगत के नाम आए हैं और इनके खिलाफ कोई बोलना नहीं चाहता। इस बात के बावजूद भारत सरकार ने ख़बरों के छपते ही जांच के आदेश दे दिये, कांग्रेस ने तमाम काग़ज़ात को सुप्रीम कोर्ट के हवाले करने के बयान दे दिये मगर इसके बाद और क्या हो सकता था। बहरहाल इंडियन एक्सप्रेस अख़बार ने जिन नामों को छापा है उनमें से अमिताभ बच्चन और वकील हरीश साल्वे की सफाई आई है। सोमवार को इंडिया बुल्स, डीएलएफ और ऐश्वर्या राय बच्चन ने भी सफाई दे दी थी।

अमिताभ बच्‍चन ने सफाई में कहा, 'मीडिया ने जिन कंपनियों का नाम लिया है मैं किसी के बारे में नहीं जानता। मैं इन कंपनियों में कभी निदेशक नहीं रहा। हो सकता है कि मेरे नाम का ग़लत इस्तेमाल हुआ हो। मैंने अपने सारे टैक्स दिये हैं। मैंने बाहर जो कमाया है वो कानून के दायरे में ही कमाया है और भारतीय कानून के अनुसार टैक्स भी दिया है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट भी नहीं बताती है कि मैंने क्या ग़ैरकानूनी काम किया है।

मशहूर वकील हरीश साल्वे ने कहा कि 'मैंने 2012 में क्रेस्‍टब्राइट नाम से एक होल्डिंग कंपनी बनाई थी लेकिन कंपनी के पास कोई संपत्ति नहीं है, इसकी आय शून्य है। मैं कानून के अनुसार 2003 से पैसा बाहर भेज रहा हूं। मैंने कुछ पैसे इंग्लैंड की कंपनियों और अमेरिका के एक पेटेंट में लगाए हैं। 2014 के बाद से मैं दो जगह टैक्स दे रहा हूं, इंग्लैंड और भारत में। मैंने क्रेस्टबाइट में कभी पैसा नहीं रखा।'

ज़्यादातर लोगों की सफाई में यही बात निकल कर आ रही है कि उन्होंने नियमों के तहत ऐसी कंपनियां खोलीं और पैसों का निवेश किया। पर क्या ये सवाल हो सकता है कि दुनिया में पनामा या ब्रिटिश वर्जीन आइलैंड जैसे टैक्स अड्डे क्यों हैं। क्या हम दावे के साथ कह सकते हैं कि पनामा जैसे देश दुनिया भर के काले धन को छिपाने के अड्डे नहीं हैं। वहां पर हर कोई अपने अपने देश के नियम के अनुसार ही कंपनी खोलता है और पैसे लगाता है। एक अनुमान के तहत ऐसे 80 देश हैं और यहां हज़ार बारह सौ खरब रुपये रखे गए हैं। जो छिपा कर रखे गए हैं और जो दुनिया भर में घूमते रहते हैं।
अब इतने घुमावदार मामले को तुरंत समझ जाना या किसी को चोर बताकर पकड़ लेना न तो आसान है न ही उचित है। अब यहां एक और सवाल जो मुझे समझ में आ रहा है और जो मैं आपके सामने रखना चाहता हूं। जैसे मोसाक फोंसेका नाम की कानूनी सलाह देने वाली कंपनी के सभी ग्राहक कैसे हो सकते हैं। नियमों का पालन करने वाला अमीर उद्योगपति भी कंपनी बनाने या ख़रीदने में फोंसेका की मदद लेता है। ड्रग माफिया भी अपने काले पैसे को जमा करने के लिए उसी कंपनी की मदद लेता है। बैंक लूटने वाला गिरोह भी पैसे को ठिकाने लगाने के लिए फोंसेका की मदद करता है।

ऐसा प्रतीत होता है कि फोंसेका एक घाट है जहां पानी पीने के लिए बकरी भी आती है, हिरन भी आता है और बाघ भी आता है। जहां मगरमच्छ भी सुस्ताता रहता है। क्या फोंसेका जैसी कंपनी का अस्तित्व आतंक और तरह-तरह के भ्रष्टाचार से जूझ रही दुनिया के लिए चुनौती नहीं है। अगर किसी नेता का नाम नहीं आया है तो फोंसेका जैसी कंपनियों के अस्तित्व को लेकर ही बेचैनी क्यों नहीं है। फिर तो ये 370 पत्रकारों का साल भर तक एक करोड़ दस्तावेज़ों का पढ़ना एक बेकार अभ्यास घोषित कर देना चाहिए। पर इतना बेकार होता तो भारत सरकार ने जब एक कानून बनाया तो उसके डर से 2000 करोड़ रुपया कैसे वापस आ गया। काश ये भी पता होता कि ये पैसा पनामा से ही आया है या मोकामा से आया है। मोकामा बिहार में है और मैं जिस कानून की बात कर रहा हूं उसका संबंध विदेशों में मौजूद संपत्ति से है। इंडियन एक्सप्रेस ने सीरिया के संदर्भ में एक ख़बर छापी है जिससे इस मसले को समझने में शायद कुछ मदद मिल सकती है।

छह साल से सीरिया में गृह युद्ध है लेकिन यह गृह युद्ध एक तरह से लघु विश्वयुद्ध भी है क्योंकि यह अपनी तरह का अनोखा गृहयुद्ध है जिसमें रूस भी बम गिरा रहा है, अमेरिका, फ्रांस, जॉर्डन, सऊदी अरब, तुर्की, ऑस्ट्रेलिया ये सब मिलकर बम गिरा रहे हैं। समाधान होना तो दूर दुनिया को एक और नए आतंकी संगठन आईएसआईएस का सामना करना पड़ रहा है और बताया जाता है कि इस लघु विश्वयुद्ध सह गृहयुद्ध में ढाई लाख से अधिक लोग मारे गए हैं और लाखों लोग सीरिया से विस्थापित हो गए हैं। आपको याद हो तो नवंबर 2015 में रूस के राष्ट्रपति पुतीन ने आरोप लगाया था कि उनके पास 40 देशों के नाम हैं जिनसे आतंकी संगठन आईएसआईएस को पैसा मिलता है। वैसे पुतीन का भी नाम पनामा पेपर्स में आया है कि वे कथित रूप से अपने पैसे को छिपाने के लिए मोज़ाक फोंसेका की मदद ले रहे थे।

अब आप आतंक के खिलाफ युद्ध लड़ने के भाषणों को याद कीजिए और आतंकी संगठन से लेकर प्रतिबंधित मुल्क सीरीया की मदद करने वाली कंपनियों के नेटवर्क की हकीकत को देखिये। आतंक से लड़ने के नाम पर आपको जो झांसा दिया जा रहा है वो खेल कुछ कुछ समझ आ सकता है। इस युद्ध में सीरीया के राष्ट्रपति को भी आरोपी माना गया है और उनकी सरकार पर अमेरिका ने कई प्रकार की पाबंदी लगाई है। इसके बाद भी कई कंपनियां सीरीया को तेल और गैस की सप्लाई कर रही हैं जिससे उसके लड़ाकू विमान उड़ रहे हैं। पनामा पेपर्स से पता चलता है कि कई कंपनियों ने अपना एक नेटवर्क बनाकर सीरीया को पांबदी के बाद भी सप्लाई जारी रखी है।

ऐसी तीन कंपनियों पर अमेरिका के ट्रेजरी डिपार्टमेंट के ऑफिस ऑफ फॉरेन ऐसेट्स कंट्रोल (ओएफएसी) ने पाबंदी भी लगाई। इनमें से एक कंपनी के लिए लॉ फर्म मोसाक फोंसेका ने भी काम किया। मोसाक फोंसेका के एक प्रवक्ता ने इंटरनेशनल कॉन्‍सोर्टियम ऑफ इंवेस्टिगेटिव जर्नलिस्‍ट्स (ICIJ) को बताया कि उनकी फर्म बैंकों और दूसरी लॉ फर्म्स जैसे बिचौलियों के ज़रिए ही उन ग्राहकों की समीक्षा करती है और उनका बैकग्राउंड चेक करती है जिन्हें वो मोसाक फोंसेका के पास भेजता है। अमेरिका के ट्रेजरी डिपार्टमेंट के ऑफिस ऑफ फॉरेन ऐसेट्स कंट्रोल (ओएफएसी) की पाबंदियों के दायरे में आने वाले क़रीब 334 लोगों और कंपनियों के साथ मोसाक फोंसेका ने काम किया है। रिकॉर्ड कहते हैं कि पश्चिम एशिया में सक्रिय आतंकवादियों और युद्ध अपराधियों के संदिग्ध फाइनेंसर्स के लिए फ़र्ज़ी कंपनियां बनाकर मोसाक फोंसेका ने पैसा कमाया है। इसके अलावा मेक्सिको, ग्वाटेमाला और पूर्वी यूरोप के ड्रग माफ़िया, ईरान और उत्तर कोरिया में एटम बम बनाने से जुड़ी जानकारियां फैलाने वालों और दक्षिण अफ्रीका के आर्म्स डीलर्स के लिए भी शेल कंपनियां बनाने में मोसाक फोंसेका का रोल रहा।

अगर ये बात सही है तो क्या आप मोसाक फोंसेका जैसी कंपनी के होने और उससे सबके रिश्ते या उससे सुविधा लेने का खतरा समझने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए। ये कैसी ईमानदार और सज्जन कंपनी है जो आतंकवादी संगठन के लिए भी कंपनी खुलवा देती है और ड्रग माफिया के लिए और नियमों के आधार पर सफाई दे देती है कि हम तो कुछ हैं ही नहीं। बैंक को अपने ग्राहकों की समीक्षा करनी होती है वो जाने किस किस के लिए कंपनी खुलवाने में हमे क्लीन चिट देते हैं। वाह रे दुनिया। तो आपको क्या ये समझ आ रहा है कि बैंक और वकील मिलकर क्या गुल खिला रहे हैं। इस खुलासे से पता चला है कि वर्षों तक स्विस बैंकिंग कंपनी UBS और पनामा की मोसाक फोंसेका एक दूसरे के साथ मुनाफ़े वाली साझेदारी में रहीं। UBS में ऐसे ग्राहक थे जिन्हें अपने पैसे छुपाए रखने के लिए दूसरे देशों में फ़र्ज़ी कंपनियां यानी शेल कंपनियां चाहिए थीं। मोसाक फोंसेका ऐसी कंपनियों को बनाने में माहिर थी। लेकिन 2010 में UBS को डर हो गया कि अमेरिका में उस पर टैक्स चोरी और हवाला के मामले चल सकते हैं। UBS बैंक के डायरेक्टर इसके बाद शेल कंपनी के इस कारोबार से बाहर होने की फिराक में लग गए। 28 सितंबर 2010 को स्विटजरलैंड के ज्‍यूरिख में एक बैठक में काफी तनाव हो गया जिसमें UBS ने कहा कि सीक्रेट एकाउंट्स के पीछे शेल कंपनियों के मालिकों की पहचान के लिए मोसाक फोंसेका ज़िम्मेदार है, बैंक नहीं। याद कीजिए अभी मोसाक फोंसेका क्या कह रही है। वो कह रही है कि खतरनाक ग्राहकों की पहचान के लिए बैंक ज़िम्मेदार हैं वो नहीं। तो दोनों फुटबाल खेल रहे हैं लगता है। मोसाक फोंसेका के कर्मचारी Dieter Buchholz ने कहा कि उनकी फर्म को नहीं पता कि UBS के ग्राहकों के लिए बनाई गई कुछ कंपनियों के असली मालिक कौन हैं क्योंकि बैंक ने इसकी जानकारी नहीं दी।

500 से ज़्यादा बैंकों, उनकी सहयोगी कंपनियों और उनकी शाखाओं ने मोसाक फोंसेका के साथ क़रीब 15,600 शेल कंपनियां रजिस्टर की थीं। बाद में यूबीस बैंक इस खेल से बाहर हो गया, अपनी नीतियां बदल ली।

हम और आप बैंकों पर कितना भरोसा करते हैं। मोसाक फोंसेका ने आतंकवादी संगठनों से लेकर ड्रग माफिया के लिए फर्ज़ी कंपनियां खुलवाईं। अमीरों के पैसे ठिकाने लगाने में मदद की। उस फोंसेका से 500 बैंकों के रिश्ते रहे। क्या इसलिए हंगामा नहीं है कि चंद हाथों में पूंजी जमा होने के इस खेल को कोई खराब नहीं करना चाहता। क्या यही वो खेल है जिसके कारण एक प्रतिशत लोगों के पास 90 फीसदी संपत्ति पर कब्ज़ा है। पूंजीवाद में अगर सबको बराबर का चांस मिलता है तो सारा पलड़ा एक प्रतीशत की तरफ ही क्यों हैं। क्या ये सारा खेल पूंजीवाद के मूल सिद्धांत के खिलाफ नहीं है। वैसे मूल सिद्धांत क्या है ये मैं भी ठीक से नहीं जानता मगर समझने और आपसे बात करने के लिए कह रहा हूं।

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