केंद्रीय मंत्री के अनुसार हर साल दस लाख लोग फ्लैट खरीदते हैं। 13 लाख 800 करोड़ का निवेश है इस सेक्टर में, 76000 से अधिक कंपनियां काम कर रही हैं। लेकिन इसके बाद भी आपको कई ऐसे प्रोजेक्ट मिलेंगे जो कई वर्ष बीत जाने के बाद भी पूरे नहीं हुए हैं। खरीदार जो कि कर्ज़दार भी है, ईएमआई और किराया दोनों चुका रहा है और लाचार होकर कभी बिल्डर के पास जाता है, कभी कोर्ट के पास तो कभी मीडिया के पास। कुल मिलाकर हालात नहीं बदलते हैं। लेकिन क्या राज्यसभा में पास हुआ Real Estate (Regulation and Development) Bill (RERA) उन सब समस्याओं का संपूर्ण समाधान है। क्या इसके पास होने से रियलिटी सेक्टर में सुधार होगा। जो भी है राज्यसभा में पास हो गया है। संशोधन के कारण इसे फिर से लोकसभा में पास होना होगा मगर जब राज्यसभा में दिक्कत नहीं हुई तो लोकसभा में भी पास होने की पूरी उम्मीद की जानी चाहिए। हम बिल की खूबियों कमियों पर बात करेंगे लेकिन पहले देखते हैं कि इसकी जरूरत क्यों पड़ी।
प्रोजेक्ट बेचने के लिए डेवलपर अक्सर जिस तरह के सुनहरे ख़्वाब अपने विज्ञापनों में दिखाते थे, खरीदार उसके झांसे में आ जाते हैं। लेकिन बाद में इनमें से कई प्रावधानों को बिना बताए बदल दिया जाता है। खरीदार और डेवलपर के बीच जो बिल्डर बायर्स एग्रीमेंट होता था वह लगभग एकतरफा होता था और फ्लैट ख़रीदने की शर्तों को तय करने में खरीदार की कोई भूमिका नहीं होती थी। अगर खरीदार पैसे देने में देरी करे तो 18 या 24% के हिसाब से ब्याज लगाया जाता है लेकिन अगर बिल्डर प्रोजेक्ट देने में देरी करे 4% की दर से ब्याज देने की बात की जाती है। यही नहीं जो पैनल्टी या ब्याज देने की बात बिल्डर करता है वह भी देने को तैयार नहीं होता है।
प्रोजेक्ट की जो समय सीमा बताई जाती है, वह लगातार बढ़ती रहती है। ऐसे में एक तरफ ख़रीदार लोन की ईएमआई चुकाता रहता है और दूसरी ओर जिस घर में रहता है उसका किराया चुकाता रहता है। यानी उस पर दोहरी मार पड़ती है। बिल्डर सुपर बिल्टअप एरिया के आधार पर फ्लैट बेचता है, जिसमें वह तमाम कॉमन स्पेस का पैसा भी ख़रीदार से ले लेता है, जबकि ख़रीदार को सिर्फ कारपेट एरिया यानि वही हिस्सा मिलता है जो उसके घर की चहारदीवारी के अंदर हो। घर सौंपने के नाम पर पूरा पैसा ले लिया जाता है लेकिन कई क्लीयरेंस नहीं मिलने का हवाला देकर घर देने में काफी देरी की जाती है। और अगर बिल्डर की मनमानी के खिलाफ़ ख़रीदार कोर्ट में जाता है तो उसे लंबी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ती है। देश की अदालतों में ऐसे हजारों केस इस समय चल रहे हैं।
तो क्या नया रियल एस्टेट बिल आपको इन तमाम दिक्कतों से मुक्ति दिला देगा। लंबी कानूनी लड़ाइयों के बाद उपभोक्ता को कई मामलों में राहत तो मिली है लेकिन उपभोक्ता जब अकेला पड़ता है तब बिल्डर के आगे लाचार हो जाता है। तमाम विकास प्राधिकरणों के होते हुए भी इन पर कोई लगाम नहीं लग सका।
नए बिल के अनुसार सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में रियल एस्टेट को नियमित करने के लिए रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी बनाई जाएगी। इस अथॉरिटी के तहत सभी रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स और रियल एस्टेट एजेंट्स को अपना रजिस्ट्रेशन कराना होगा। यह बिल सभी रिहायशी और कमर्शियल रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स पर लागू होगा। यह बिल जिस दिन से लागू होगा उस दिन तक जितने भी प्रोजेक्ट्स पूरे नहीं हुए होंगे यानी कम्पलीशन सर्टिफिकेट नहीं मिला हुआ होगा, वह सब इसके तहत आ जाएंगे। किसी भी प्रोजेक्ट की बिक्री तब तक शुरू नहीं की जा सकती जब तक कि सभी जरूरी विभागों से मंजूरियां न मिल जाएं। बिल्डर अभी तक किसी भी प्रोजेक्ट में देरी के लिए यह बहाना बना देते थे कि उन्हें समय पर सभी मंजूरियां नहीं मिलीं। इसलिए बिल का यह प्रस्ताव भी काफी अहम है। मकान का कब्ज़ा देने में देरी पर बिल्डर पर लगने वाला ब्याज उस ब्याज से कम नहीं होगा जो बिल्डर देरी से पेमेंट देने पर ग्राहकों से वसूलता है। इस एक्ट के तहत दो तिहाई ग्राहकों की लिखित इजाजत के बिना मंजूर हुई योजना में कोई बड़ा बदलाव नहीं होगा। इस एक्ट के तहत प्रोजेक्ट के पूरा होने की तिथि के बाद अधिकतम बारह महीने की देरी का ही प्रावधान है।
अभी होता था कि आप होर्डिंग देखकर, विज्ञापन देखकर प्रोजेक्ट में निवेश कर देते थे। बाद में पता चलता था कि ब्रोशर में जो वादा किया गया है उसके ठीक उलट हो रहा है। रियल एस्टेट बिल इस बात को सुनिश्चित करता है कि जो भी प्रचार सामग्री में दर्शाया गया होगा, अब दस्तावेज़ माना जाएगा। बिल्डर शर्तें लागू टाइप लिखकर नहीं बच सकते। यही नहीं अब उन दस्तावेजों का इस्तेमाल बिल्डर के खिलाफ सबूत के तौर पर किया जा सकेगा। अगर बिल्डर इस क्लॉज़ का उल्लंघन करता है तो उसे पैनल्टी और मुआवजा देने को बाध्य किया जा सकेगा।
किसी भी प्रोजेक्ट के लिए उसके ग्राहकों से वसूली गई रकम का सत्तर फीसदी किसी शेड्यूल्ड बैंक में एक एकाउंट में रखना होगा और इसे निर्माण पर ही खर्च किया जा सकेगा। अभी देरी की एक बड़ी वजह यह होती है कि बिल्डर एक प्रोजेक्ट का पैसा किसी दूसरे प्रोजेक्ट में लगा देते हैं। खास तौर पर लैंड बैंक बनाने में यह पैसा खर्च कर दिया जाता है जिससे बिल्डर के सामने तय प्रोजेक्ट के लिए पैसे की दिक्कत आ जाती है और उसमें देरी हो जाती है।
बिल्डरों को अपने एकाउंट का ऑडिट भी कराना होगा ताकि एकाउंट से पैसे की निकासी पर निगरानी रखी जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह निर्माण के अलावा किसी और काम के लिए इस्तेमाल न हो सके। बिल्डरों को निर्धारित समय के अंदर रेगुलेटर की वेबसाइट पर निर्माण का स्टेटस अपडेट करते रहना होगा।
संसदीय कार्यमंत्री वेंकैया नायडू ने आज इस बिल को राज्यसभा में रखते हुए कहा कि कृषि के बाद कंस्ट्रक्शन सेक्टर देश का दूसरा सबसे बड़ा सेक्टर है, जिसका देश के जीडीपी में 9% का योगदान है और करीब ढाई सौ उद्योग धंधे इस सेक्टर से जुड़े हुए हैं। इस समय साढ़े सत्रह हजार से ज्यादा प्रोजेक्ट देश में चल रहे हैं। लाखों करोड़ रुपये लगे होने के बाद भी पारदर्शिता और जवाबदेही की भारी कमी है। नायडू का कहना है कि फ़्लैट ग्राहक की भूमिका राजा की होनी चाहिए और डेवलपर की भूमिका रानी की और इस बिल के बाद दोनों एक दूसरे के साथ अच्छे से रह पाएंगे। लेकिन क्या ऐसा हो पाएगा? क्योंकि इस बिल में कई ऐसी खामियां भी छोड़ दी गई हैं जो इस रिश्ते को बेहतर होने से रोकेंगी।
कोई भी डेवलपर जो रेगुलेटर के पास रजिस्टर्ड है वह खरीदार के हितों से कितना भी खिलवाड़ कर ले उसे जेल नहीं भेजा जा सकेगा। जेल जाने का प्रावधान ही हटा दिया गया है। यह इस बिल की एक सबसे बड़ी कमी बताई जा रही है। सिर्फ वही डेवलवर, जो रेगुलेटर के पास रजिस्टर्ड नहीं होंगे, के लिए एक से तीन साल जेल की सजा का प्रावधान है। वह भी जब वे कई बार नियमों का उल्लंघन करें। दूसरी बड़ी खामी यह बताई जा रही है कि इस बिल में रेगुलेटर बनाने का काम राज्य पर छोड़ दिया गया है। ऐसे में राज्य सरकारें अपनी इच्छा के मुताबिक रेगुलेटर की नियुक्ति कर सकती हैं। हो सकता है कई बार यह रेगुलेटर ख़रीदारों से ज्यादा उस लॉबी के दबाव में रहें जिसकी किसी सत्ता में चलती हो। तीसरी खामी यह है कि जितनी भी डेवलपमेंट अथॉरिटी हैं जैसे डीडीए, जीडीए, नोएडा विकास प्राधिकरण वगैरह उनका इस बिल में ज़िक्र नहीं है। यह नहीं बताया गया है कि रेगुलेटर के साथ उन्हें कैसे काम करना है, जबकि इन प्राधिकरणों की बड़ी भूमिका होती है। यह बिल 500 वर्ग मीटर या उससे अधिक के प्लॉट पर ही लागू होगा, लेकिन इससे बॉम्बे जैसी जगहों पर असर पड़ेगा जहां 500 वर्ग मीटर के अंदर बिल्डर कई यूनिट बनाकर बेच देते हैं।
देश में हाउसिंग सेक्टर के लिए जमीन की कोई कमी नहीं है इसके बाद भी मकानों के दाम कम नहीं होते। एक सवाल मकानों का इतना महंगा हो जाना है कि वह मिडिल क्लास की पहुंच से भी बाहर हो जाता है। क्या रेगुलेटरी सिस्टम के बाद विदेशी निवेश आसान हो जाएगा और रियल एस्टेट सेक्टर को मदद मिलेगी। क्या वाकई अब किसी प्रोजेक्ट में देर नहीं होगी, मकान समय पर मिलेंगे। रियल एस्टेट को ब्लैक मनी का अड्डा कहा जाता है क्या वह सब इस बिल से दूर हो जाएगा।
ड्राफ्ट बिल की खासियत
- यह सभी रिहायशी और कमर्शियल रियल एस्टेट पर लागू होगा जो 500 वर्ग मीटर एरिया और आठ से ज्यादा अपार्टमेंट का होगा।
- सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में रेगुलेटरी अथॉरिटी और अपीलेट ट्रिब्यूनल बनाए जाएंगे।
- रेगुलेटरी अथॉरिटी विवादों के निपटाने के लिए अफसरों की नियुक्ति करेगी।
- रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स, रियल एस्टेट एजेंट्स का रेगुलेटर के यहां रजिस्ट्रेशन अनिवार्य होगा।
- अथॉरिटी एक नोडल एजेंसी की तरह काम करेगी और इस सेक्टर के विकास में सरकार को जरूरी सलाह देगी।
- अपीलेट ट्रिब्यूनल अथॉरिटी और एडजुडिकेटिंक अफसर के यहां से आई अपीलों को सुनेगा।
- सेंट्रल एडवाइज़री काउंसिल का गठन केंद्र सरकार को एक्ट लागू करने में सलाह देगा, नीति पर सलाह देगा, ग्राहकों के हितों को बचाने में सलाह देगा, सेक्टर के विकास में मदद करेगा।
- प्रमोटर अपने प्रोजेक्ट की सारी जानकारियां सार्वजनिक करेगा। पास हुए प्लैन पर उसे बने रहना होगा, विज्ञापनों, प्रोस्पेक्टस में ईमानदारी बरतनी होगी, बुनियादी खामियों को दूर करना होगा, डिफॉल्ट की स्थिति में पैसा रिफंड करना होगा।
- किसी प्रोजेक्ट के ग्राहकों से लिए 70 फीसदी पैसे को एक अलग एकाउंट में रखना होगा जिसे सिर्फ निर्माण या उस जमीन की कीमत के लिए इस्तेमाल किया जा सकेगा।
- पैनल्टी, फाइन जैसे दंडात्मक प्रावधान होंगे, इसके अलावा प्रोजेक्ट का रजिस्ट्रेशन खत्म करने का भी विकल्प होगा।
रियल एस्टेट सेक्टर को बिल से फ़ायदा कैसे
- बिल से प्रोजेक्ट्स को समय पर पूरा किया जा सकेगा जिससे सबके लिए घर का सपना साकार हो पाएगा।
- विवादों का जल्द निपटारा होगा, प्रोजेक्ट समय पर पूरे हो सकेंगे, रियल एस्टेट सेक्टर और प्रोफेशनल होगा।
- बिल ग्राहकों में विश्वास कायम करेगा, जैसे टेलीकॉम, बिजली, बैंकिंग, सिक्योरिटी, इंश्योरेंस सेक्टर में रेगुलेटर हैं।
- रियल एस्टेट सेक्टर में घरेलू और विदेशी निवेश बढ़ेगा और निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा।
- अभी रेगुलेटर के न होने की वजह से हो रहे गैरकानूनी और अनियोजित विकास पर रोक लगेगी।
ग्राहकों को फ़ायदा
- पारदर्शी प्रोजेक्ट होने से ग्राहकों के पास पूरी जानकारी होगी और विकल्प होंगे।
- कारपेट एरिया का पहले से पता होने से अनफेयर ट्रेड प्रैक्टिसेस पर रोक लगेगी।
- मॉडल एग्रीमेंट एकतरफा समझौतों पर रोक लगाएगा।
- फंड को कहीं और डाल देने से प्रोजेक्ट की कीमत में बढ़ोतरी और समय बेकार होता है, इस पर रोक लगेगी।
- इस सेक्टर में ब्लैक मनी पर रोक लगेगी। कीमतों पर काबू पाया जा सकेगा।
- विवादों के निपटारे में होने वाली देरी पर रोक लग सकेगी।
डेवलपर्स को फ़ायदा
- फ्लाई बाई नाइट ऑपरेटर्स पर रोक लग सकेगी।
- सिक्योरिटी, बैंकिंग, इंश्योरेंस, टेलीकॉम जैसे सेक्टरों की तरह इस सेक्टर की विश्वसनीयता भी बढ़ेगी।
- इस सेक्टर में लाखों फ्लैट ऐसे हैं जो बिके नहीं हैं। ग्राहकों का कॉन्फिडेंस काफी कम है। बिल ग्राहकों का इनवेस्टमेंट सेंटीमेंट बढ़ाएगा।
- नेशनल हाउसिंग बैंक और वित्तीय संस्थाओं ने बिल को जल्द लागू करने को कहा है क्योंकि मौजूदा स्थिति में कर्ज़ देना जोखिम भरा है।
- विदेशी निवेशक भारत के रियल एस्टेट सेक्टर में रुचि नहीं दिखा रहे हैं क्योंकि कोई रेगुलेटरी मैकेनिज़्म नहीं है।
- वित्त मंत्रालय ने आश्वासन दिया है कि रेगुलेटरी मैकेनिज़्म के बाद किफ़ायती हाउसिंग प्रोजेक्ट्स को वह इन्फ्रास्ट्रक्चर स्टेटस देगा। इससे वित्तीय रियायतें मिलेंगी और कर्ज़ लेने की कीमत भी घट जाएगी।