कैसे होगा मीडिया का पब्लिक ट्रायल?

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार। मीडिया के प्रकार में भारत का जितना मौलिक योगदान है, उतना दुनिया के किसी मीडिया का नहीं होगा। इस नामकरण में हमारी बिरादरी का आंतरिक योगदान तो है ही दूसरी बिरादरियों का भी कम नहीं है। कुछ नामों के पीछे सच्चाई है, लेकिन कुछ नामों का इस्तमाल हथियार के रूप में भी किया जाता है। आरोप की तरह। मीडिया ट्रायल करता है तो मीडिया का भी ट्रायल होता है। इस चक्र में अब सोशल मीडिया और पब्लिक भी शामिल है। पहले आपको पत्रकारिता के चंद प्रकारों से अवगत कराते हैं।

अभी तक मीडिया के बुरे पक्ष को दर्शाने के लिए येलो जर्नलिज़्म पीत पत्रकारिता, एम्बेडेड जर्मनलिज्म यानी नत्थी पत्रकारिता, टेबोलायड पत्रकारिता के बारे में सुना होगा। अब इसमें टीआरपी मीडिया, स्वर्ग से सीढ़ी मीडिया, भूत-प्रेत पत्रकारिता, पेड मीडिया, सुपारी जर्नलिज़्म, प्रेस्टिट्यूड भी शामिल हो गए हैं।

इसके अलावा कुछ नाम राजनीतिक दलों के आईटी सेल या समर्थकों ने सोशल मीडिया के ज़रिए गढ़े हैं। सिकुलर मीडिया जो सेकुलर बातें करता है, कांगी मीडिया जो कांग्रेस समर्थक है, संघी मीडिया जो संघ समर्थक है, मोडिया यानी मोदीमय मीडिया जो सिर्फ मोदी मोदी करता है, आप मीडिया जो केजरीवाल को हीरो बनाता है, बाज़ारू मीडिया जो सर्वे में किसी पार्टी को हराता है। कॉरपोरेट मीडिया भी एक नियमित आरोप है, जो सारी सच्चाइयों का बाप माना जाता है।

पहली बार किसी देश से निकाले जाने का सौभाग्य हमें ही प्राप्त हुआ है। नेपाल में ट्विटर पर #gobackindianmedia ट्रेंड करने लगा है। नेपाली युवाओं ने भारतीय मीडिया के अति कवरेज़, असंवेदनशील सवाल और अपनी सरकार का भोंपू बन जाने के कारण यह ट्रेंड कराया।

भारत सरकार ने अपने सराहनीय प्रयासों से जो कुछ भी कमाया था, उसे हमारी मीडिया के कुछ हिस्से ने चवन्नी-अठन्नी के भाव से खर्च कर दिया। वैसे ट्विटर के ट्रेंड को नेपाल का मानस नहीं समझना चाहिए।

अब आते हैं ट्रायल के प्रकारों पर। इस चक्र को भी समझना होता है। पहले मीडिया ट्रायल होता था, जिसमें जेसिका लाल, प्रियदर्शिनी मट्टू, नीतीश कटारा जैसे मामलों में आरोपियों को सज़ा दिलाने का अभियान चला। इस हद तक सबने मीडिया ट्रायल की सराहना की, लेकिन जल्दी ही यह ट्रायल कंगारू कोर्ट में बदलने लगा, यानी जिसे चाहे उसे आरोपी बनाओ और उसकी साख दागदार बना दो।

मीडिया ने पहले लोगों, नेताओं और पार्टियों का ट्रायल किया या ट्रायल किये जाने के आरोप लगे। जैसे एक चैनल पर पुरानी दिल्ली की एक टीचर का इस कदर ट्रायल चला कि भीड़ जमा हो गई पीटने के लिए। उक्त चैनल का प्रसारण एक महीने के लिए रोका भी गया।

लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शिकायत करते रहे कि मीडिया ने उनके साथ ट्रायल किया। मीडिया पर आरोप लगा कि उसने केजरीवाल को हीरो बनाया। जबकि बाद में इसी मीडिया पर प्रधानमंत्री के प्रति उदारता बरतने और अरविंद केजरीवाल के बहिष्कार के आरोप लगे।

ट्रायल राहुल गांधी की भी कम नहीं हुई मगर उनकी शिकायत अभी आई नहीं है। एक ज़माने में लालू यादव भी शिकायत करते थे कि दिल्ली की मीडिया उनका ट्रायल करता है और मज़ाक उड़ाता है। पार्टियां भी मीडिया का ट्रायल करती हैं और सोशल मीडिया के ज़रिये मीडिया का ट्रायल कराती हैं।

सोशल मीडिया के ज़रिये व्यक्तिगत पत्रकारों का भी ट्रायल होता है जब उन्हें दलाल, एजेंट वगैरह कहा जाता है। सोशल मीडिया के ट्रायल कोर्ट के जजों का समूह बना हुआ है मोदी भक्त, आपटार्ड और अंधभक्त।

कब किस पार्टी का आईटी सेल किस मीडिया और पत्रकार का ट्रायल शुरू कर दे पता नहीं रहता। आईटी सेल के ज़रिए सोशल मीडिया के ज़रिए राजनीतिक दलों का ट्रायल भी चला। फेंकू, पप्पू और मफलर मैन इस ट्रायल का हिस्सा हैं।

मीडिया भी राजनीतिक दल का ट्रायल करता है। कई चैनलों ने आम आदमी पार्टी का पक्ष रखना ही बंद कर दिया था। मीडिया में मीडिया का ट्रायल चलता है। यह बिल्कुल नया तो नहीं मगर दो-तीन साल पुराना आइटम है। इसमें एक चैनल के कथित ट्रायल से बचने के लिए नया चैनल ही लॉन्च हो गया, जिसमें एक दूसरे के स्वामियों के ख़िलाफ खबरों में अभद्र भाषा का इस्तमाल हो जाता है और एक अभियान के तहत दोनों एक दूसरे से भिड़े रहते हैं।

इस तरह आपने देखा कि मीडिया ट्रायल के कितने स्तर हैं। इस ट्रायल कोर्ट के नए जज आए हैं, जिनका नाम मिस्टर हैशटैग है। ट्वीटर पर आए दिन हैशटैग जी किसी को विलेन तो किसी को हीरो बनाते रहते हैं।

अदालत के ट्रायल में ऐसे नहीं होता। वहां दोनों पक्ष के वकील होते हैं, सबूत और गवाह लाए जाते हैं और हर बात की जांच के बाद फैसला आता है। मीडिया ट्रायल में फैसला उसी वक्त हो जाता है। इतनी भूमिका इसलिए बांधी कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्रायलों की दुनिया में एक नया ट्रायल लॉन्च किया है। किसी ने उन्हें पब्लिक ट्रायल का सुझाव दिया, तो उन्हें पसंद आ गया। पहले देखते हैं उन्होंने इस बारे में क्या कहा।

अगर आप देखते हैं कि किसी चैनल ने कुछ गलत दिखाया है जो कि तथ्यात्मक रूप से गलत था, उसको चैनल का नाम लेकर आप उठाएंगे। जैसे इन भाई साहब ने बहुत अच्छा सुझाव दिया, कि एक पब्लिक ट्रायल भी किया जा सकता है। दिल्ली के अंदर आप 8-10 जगह फिक्स कर दीजिए। और वहां जनता को इकट्ठा कीजिए। और दिखाइए कि इस चैनल ने ये दिखाया था। ये झूठ है। ये जनता का ट्रायल शुरू किया जा सकता है।

मीडिया का पब्लिक ट्रायल तो सोशल मीडिया पर रोज़ चलता है, लेकिन कोई पार्टी पब्लिक में ट्रायल चलाने की वकालत करें तो सबके कान खड़े हो जाने चाहिए। मीडिया में बहुत कमियां हैं। उसकी ज़रूर बात होनी चाहिए और होती रहती है, लेकिन पब्लिक ट्रायल क्या है।

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अखबारों के पत्रकारों ने जब सैलरी बढ़ाने के लिए मजीठिया बोर्ड की सिफारिशें लागू करवाने के लिए नेताओं के दरवाज़े खटखटाये तो कहीं से जवाब नहीं मिला। केजरीवाल ने कहा कि हम आपको हक दिलाएंगे, लेकिन वही केजरीवाल जब यह कहते हैं कि मीडिया का पब्लिक ट्रायल होना चाहिए तो आपने मन में वही खटका जो मेरे मन में खटक रहा है।