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This Article is From Jul 26, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : नीतीश का इस्तीफा और मोदी की बधाई...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 26, 2017 22:28 pm IST
    • Published On जुलाई 26, 2017 22:17 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 26, 2017 22:28 pm IST
बिहार में नीतीश कुमार इस्तीफा देते हैं और थोड़ी देर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नीतीश कुमार को बधाई देना, राजनीति के किस्सों में यदि दिलचस्पी है तो इससे शानदार किस्सा क्या हो सकता है. 2014 में जिस मोदी का नाम प्रधानमंत्री के तौर पर सामने आने पर नीतीश कुमार ने इस्तीफा दे दिया था, गठबंधन तोड़ते हुए कहा था कि हम अपने बेसिक सिद्दांतों से समझौता नहीं कर सकते हैं. नतीजों की चिंता नहीं करते हैं. 2015 में नीतीश कुमार, बीजेपी को रोकने के सवाल पर लालू यादव की पार्टी से समझौता करते हैं और सरकार बनाते हैं. 20 महीने बाद लालू यादव भ्रष्टाचार के प्रतीक बनते हैं, नए आरोप सामने आते हैं और एक बार फिर नीतीश कुमार बेसिक सिद्धांतों पर समझौता नहीं करते हैं. इस्तीफा दे देते हैं.

साल 2014 में नरेंद्र मोदी ने उन्हें सिद्धांतों पर चलने के कारण बधाई नहीं दी थी क्योंकि वह उनके ही खिलाफ लिया गया फैसला था, आज उन्होंने बधाई देते हुए कहा कि राजनीतिक मतभेदों से ऊपर उठकर भ्रष्टाचार के खिलाफ एक होकर लड़ना आज देश और समय की मांग है. भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में जुड़ने के लिए नीतीश कुमार जी को बहुत-बहुत बधाई.

जब नीतीश कुमार 17 साल पुराना गठबंधन तोड़ सकते हैं तो 20 महीना पुराना गठबंधन क्यों नहीं? प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार विधानसभा चुनाव के बाद भी नीतीश कुमार को बधाई दी थी, तब वे और उनकी बीजेपी हारी थी, लेकिन बुधवार को जब नीतीश को बधाई दे रहे थे तो उस बधाई में बीजेपी की जीत शामिल थी या नहीं, ये आप बेहतर बता सकते हैं. इसीलिए कहा कि राजनीति दिलचस्प किस्सों की किताब है. यहां पन्ना बदलते ही सिद्धांत बदल जाता है.

इस गठबंधन का टूटना प्रधानमंत्री मोदी के लिए बड़ी जीत है. संसदीय बोर्ड की बैठक की तस्वीरों में मुस्कराहटें अपने आप ही सारी बातें कह रही थीं. बिहार विधानसभा चुनाव के समय यही बीजेपी चारा घोटाला में लालू यादव के साथ नीतीश कुमार का भी नाम जुड़वाने की मांग कर रही थी. सीबीआई से पूछ रही थी कि नीतीश कुमार का नाम चारा घोटाले से कैसे बाहर रखा गया. रविशंकर प्रसाद के नाम से यह बयान इंटरनेट में मिल जाएगा. उन्होंने कहा था कि बड़े भाई लालू यादव जेल तो गए ही अब छोटे भाई नीतीश कुमार की बारी है.

अपना इस्तीफा देकर राजभवन से बाहर आने के बाद नीतीश कुमार ने विस्तार से इस्तीफे से पहले की परिस्थितियों के बारे में बताया. कहा कि तेजस्वी से इस्तीफा नहीं मांगा, हालांकि दे देते तो काफी ऊंचाई पर पहुंच जाते. यही कहा कि जनता के सामने अपने ऊपर लगे आरोपों की सफाई रख दीजिए मगर ऐसा नहीं हुआ.

लालू यादव का खेमा इस्तीफा न देने पर शुरू से अड़ा रहा. राजद को इस खेल में भ्रष्टाचार का मुद्दा कम बीजेपी के साथ जाने की बेचैनी ज्यादा नजर आ रही थी. शायद उन्हें लगा भी नहीं होगा कि नीतीश इस हद तक जा सकते हैं जबकि इसकी भी चर्चा गठबंधन की हफ्तों चली कहानी में आ ही चुकी थी कि नीतीश इस्तीफा दे देंगे. मगर लालू यादव और तेजस्वी यादव उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ लगे आरोपों, केंद्रीय मंत्री उमा भारती के खिलाफ लगे आरोपों का हवाला देकर कहा जाता रहा कि क्या उन्होंने एफआईआर या महज आरोपों के कारण इस्तीफा दिया है जो वे दे दें. लालू यादव ने यह भी कहा कि तेजस्वी यादव 20 महीने तक मंत्री रहे, उनके विभाग से जुड़ा कोई भ्रष्टाचार का आरोप तो सामने नहीं आया. लेकिन नीतीश कुमार इन सब बातों से प्रभावित नहीं हुए. उन्होंने कहा कि यह संकट आया नहीं, लाया गया है. संपत्ति अर्जित करने के तरीकों और तादाद पर सफाई होनी चाहिए. जब वे नोटबंदी के समय से बेनामी संपत्ति के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे थे तो कैसे इस सवाल पर जनता का सामना करते. इसलिए इस्तीफा दे दिया. क्या तेजस्वी को पहले इस्तीफा दे देना चाहिए था, अब इस सवाल का कोई मतलब नहीं है.

सिद्धांतों और आरोपों की लड़ाई में चुनाव का अधिकार नेता के पास ही होता है. कहीं से हत्या के आरोप हैं तो कहीं से जमीन खरीदने के. इस गठबंधन के टूटने में अब कोई कहानी नहीं बची है. कहानी तो बीजेपी के खेमे में है. 2019 की पक्की मानी जा रही मोदी की जीत में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भविष्य सुरक्षित है या प्रधानमंत्री की दावेदारी, वैसे भी उनके सामने चुनौती नजर नहीं आ रही थी, लेकिन विपक्ष जरूर भरभरा गया है. 2019 का चुनाव शुरू हो चुका है.

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