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This Article is From Apr 07, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : एनआईटी में छात्रों के आक्रोश के पीछे कोई साजिश?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 07, 2016 21:24 pm IST
    • Published On अप्रैल 07, 2016 21:14 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 07, 2016 21:24 pm IST
श्रीनगर NIT की घटना और इसे लेकर राजनीति में फासला इतना बढ़ गया है कि वहां के छात्र छात्राओं को अब हाथ में तख़्ती लेकर खड़े होना पड़ा कि हमारे मुद्दों का सांप्रदायिकरण मत कीजिए। कैंपस के भीतर मीडिया के जाने की इजाज़त नहीं है फिर भी व्हाट्सऐप और ट्वीटर के ज़रिये लगातार अफवाह फैलाई जा रही है कि मीडिया जानबूझ कर नहीं जा रहा है।

हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी ने भी मीडिया को गेट के बाहर रोक दिया। कई दिनों की पाबंदी के बाद बुधवार को जब छात्रों ने इस बैरिकेड को तोड़ने का प्रयास किया तो 70 छात्रों को हिरासत में ले लिया गया। जेएनयू में मीडिया को भीतर जाकर छात्रों से बात करने और वहां से सीधा प्रसारण करने पर कोई रोक नहीं थी। फिर भी अफवाहबाज़ों की संख्या इतनी है कि वे हर जगह फैला चुके हैं कि मीडिया एनआईटी श्रीनगर नहीं जा रहा है। आज भी हमारी सहयोगी नीता शर्मा श्रीनगर गईं थीं लेकिन इजाज़त नहीं होने के कारण वो कैंपस के भीतर नहीं जा सकीं। स्थानीय छात्रों को ही बाहर से कैंपस में जाने दिया जा रहा है लेकिन जो कैंपस के भीतर के छात्र हैं उन्हें सुरक्षा कारणों से बाहर नहीं जाने दिया जा रहा है। कैंपस के भीतर इंटरनेट की बैंडविथ भी कम कर दी गई है ताकि सोशल साइट्स के ज़रिये छात्र वीडियो बाहर नहीं भेज सकें। नीता शर्मा ने कहा कि गुरुवार को छात्राओं ने गेट तक एक मार्च भी निकाला लेकिन उसकी तस्वीरें मीडिया को न मिल सकें इसके लिए गेट के सामने पुलिस ने बड़े बड़े ट्रक खड़े कर दिये। फिर भी मीडिया को कुछ तस्वीरें तो मिल ही गईं। वैसे नेताओं के आने पर भी रोक लगा दी गई है।

क्या आपने व्हाट्सऐप के अफवाहबाज़ों के ऐसे कोई संदेश पढ़े हैं कि एनआईटी कैंपस की स्थिती बाहर आ सके इसके लिए प्रशासन मीडिया को अंदर जाने दे। आपमें से कई लोग बिना तथ्यों की पड़ताल किये यकीन भी कर लेते हैं। अब ये दोष भी क्या मीडिया के चार पत्रकारों का है कि कैंपस के भीतर कैंपस के शिक्षकों और डायरेक्टर के डर से छात्र छात्राओं को नकाब लगाकर बयान देना पड़ रहा है। इन्हें डर है कि चेहरा सामने आने पर नंबर काट लिये जाएंगे। राज्य में सरकार किसकी है, एनआईटी के डायरेक्टर मीडिया को रिपोर्ट करते हैं या मानव संसाधन मंत्रालय को। अब सुनिये और देखिये भी।

राज्य प्रशासन का कहना है कि जांच शुरू हो गई है और 15 दिनों में रिपोर्ट आ जाएगी। मानव संसाधन मंत्रालय की टीम का कहना है कि वो इम्तहान ख़त्म होने तक कैंपस में रुकेगी। जिन छात्रों को जाना है वो इस टीम को बता दें, उनके जाने की व्यवस्था कर दी जाएगी। कमेटी से जो भी बात करना चाहता है उनके लिए सभी सदस्य कभी भी उपलब्ध हैं। इसके बाद भी छात्र संतुष्ट नहीं हैं।

छात्राएं कह रही हैं कि हमारा मुद्दा सुरक्षा है, हमारे मुद्दे का सांप्रदायिकरण मत कीजिए। कैंपस के भीतर इनके चेहरे क्यों ढके हुए हैं, इसका जवाब एनआईटी देगा या मीडिया के पत्रकार जिन्हें सेकुलरवादी बोलकर भद्दी भद्दी गालियां दी जा रही हैं। सोशल मीडिया के गिरोहों को क्या ये सवाल नहीं उठाना चाहिए कि केंद्र सरकार के संस्थान के कैंपस में सीआरपीएफ और पुलिस की सुरक्षा के बीच लड़के लड़कियों को चेहरा क्यों छिपाना पड़ रहा है। इस तस्वीर में लड़कियां हाथ जोड़े खड़ी हैं। निवेदन टाइप ऐसा प्रदर्शन मैंने नहीं देखा था, आम तौर पर छात्रों के प्रदर्शन में मुट्ठियां ही लहराई जाती हैं। छात्र मानव संसाधन मंत्री को पुकार रहे हैं और प्रधानमंत्री से इंसाफ की गुहार लगा रहे हैं।

वहीं चिनार ग्राउंड में पूरे दिन छात्र जमा रहे। उनका कहना है कि वे रात को भी यहीं डटे रहेंगे। नीता शर्मा ने छात्र छात्राओं के माता-पिता से बात की है। वे अपने बच्चों की सुरक्षा को लेकर काफी चिन्तित हैं और वे भी इस राय के हैं कि मौजूदा हालात में NIT को शिफ्ट किया जाए या उनके बच्चों का दूसरे NIT में तबादला किया जाए। इस बारे में केंद्र सरकार की तरफ से कोई आश्वासन या बयान नहीं आया है।

आपने बुधवार को एक वीडियो देखा होगा जिसमें स्थानीय पुलिस अधिकारियों, मानव संसाधन मंत्रालय की टीम के साथ छात्रों की एक सभा हो रही है। इस वीडियो को देखकर लगा कि छात्रों की सारी मांगे मान ली गईं होंगी और जम्मू-कश्मीर पुलिस के अधिकारियों के ख़िलाफ कार्रवाई भी हो गई होगी। दरअसल इसका ठीक उल्टा हुआ है। जिसकी जानकारी आगे दूंगा।

इस वीडियो में आप देखेंगे कि छात्र मंच पर खड़े होकर बता रहे हैं कि उनकी मांगे क्या हैं। जम्मू कश्मीर पुलिस के अधिकारियों को हटाया जाए, एनआईटी को राज्य से बाहर शिफ्ट किया जाए। शिक्षकों को हटाया जाए। काश ऐसा मौका हैदराबाद और जेएनयू के छात्रों को भी मिलता लेकिन ऐसा मौका एफटीआईआई के छात्रों को मिला था। केंद्रीय सूचना मंत्री ने उनसे बात तो की थी। भले उनकी मांग न मानी गई हो। वीडियो में छात्र काफी उत्साहित हैं मगर अब आशंकित हैं कि उनकी लड़ाई किसी मंज़िल पर पहुंचेगी भी या नहीं।

जम्मू कश्मीर पुलिस के किसी अधिकारी के ख़िलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई है। उल्टा पुलिस ने तोड़फोड़ के आरोप में दो छात्रों के ख़िलाफ़ एफआईआर कर दी है। ख़बरों के मुताबिक NIT प्रशासन 31 छात्रों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने की सोच रहा है। ग़ैर कश्मीरी छात्र जिसमें दूसरे राज्य के सभी धर्मों के छात्र हैं, हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब हैं उनमें से कुछ का कहना है कि वे इस मसले के सांप्रदायिकरण के कारण फंस गए हैं। दो वीडियो आए हैं। एक वीडियो छात्रों की तरफ से और उनके बाद पुलिस का जिसमें छात्रों को तोड़ फोड़ करते दिखाया गया है।

ये तस्वीरें छात्रों के तरफ से दी गईं हैं जिनमें पुलिस एक छात्र को घेर कर बेरहमी से मार रही है। एक छात्र पर पांच छह पुलिस वाले टूट पड़े हैं। इन तस्वीरों को देखकर लगा कि पुलिस ने छात्रों के साथ क्रूरता बरती है, जो कि दिख भी रहा है। छात्रों का कहना है कि छात्राओं को भी पीटा गया है और शारीरिक चुनौतियों का सामना कर रहे छात्रों को भी पीटा गया। छात्राओं का कहना है कि उन्हें फेल करने से लेकर बलात्कार तक की धमकी दी जा रही है।
थोड़ी देर के बाद पुलिस ने अपनी तरफ से एक वीडियो जारी किया। पुलिस के इस वीडियो में छात्र एक कार पर पत्थर बरसा रहे हैं। तोड़फोड़ कर रहे हैं। पुलिस पर पत्थर मार रहे हैं। अब यह साफ नहीं है कि पहले छात्रों ने पत्थर मारा या फिर पुलिस की लाठी के बाद छात्रों ने तोड़फोड़ की। यह सब जांच का विषय है।

मीडिया इसे इस तरह पेश कर रहा है कि देशभक्तों पर लाठी क्यों, कई लोग देशभक्ति का यह सवाल कुछ अज्ञात सेकुलरवादियों को गरियाने के लिए कर रहे हैं। लेकिन आप अपनी आंखों से देखिये और दिमाग से सोचिये कि लाठी किसके आदेश से चली, टकराव क्यों हुआ। दो तरह के वीडियो हैं और कई तरह की अफवाह। फैसला कर लीजिए। मीडिया के अनुसार ये देशभक्त हैं तो इनके खिलाफ एनआईटी कार्रवाई करने की बात क्यों कर रहा है। पुलिस ने एफआईआर क्यों की है। इंडिया टुडे वेबसाइट ने लिखा है कि आरएसएस समर्थित जम्मू कश्मीर स्टडी सर्किल का कहना है कि ऐसा नहीं है कि सभी कश्मीरी छात्र बाहर से आने वाले छात्रों के ख़िलाफ़ हैं। न ही सभी कश्मीरी क्रिकेट में भारत के हारने पर खुश होते हैं। NIT की घटना से लगता है कि अलगाववादी तत्वों ने शिक्षा संस्थानों में अपनी पैठ बना ली है। इन्हें बाहर करना होगा।

अगर वहां अलगाववादी तत्वों का असर बढ़ गया होता तो ऐसी घटना पहले तो नहीं हुई। खुद गैर कश्मीरी छात्र इस साल के पहले तक स्थानीय छात्रों से टकराव की कोई बात नहीं बता पा रहे हैं। तिरंगा लहराने को लेकर टकराव हुआ। लेकिन जिन्होंने पाकिस्तान का झंडा लहराया क्या उनके खिलाफ एफआईआर हुई है। आप सवाल ये पूछेंगे या दो चार पत्रकारों पर भड़ास निकालेंगे। कोई जांच कमेटी बिठाई गई। पूरे देश में जेएनयू की तरह अफवाहें फैला दी गईं हैं और लोगों ने फिर यकीन करना शुरू कर दिया है। छात्रों की लड़ाई कॉलेज प्रशासन से है। वे नहीं चाहते कि कश्मीरी छात्रों के खिलाफ भी कोई पुलिसिया कार्रवाई हो। उन्हें भरोसा नहीं है तो अपने कॉलेज के प्रशासन पर।

इस तरह के माहौल के असर में राजस्थान के चित्तौड़गढ़ की मेवाड़ यूनिवर्सिटी से 16 कश्मीरी छात्रों को 25 अप्रैल तक के लिए निलंबित कर दिया गया। इस कॉलेज में भारत वेस्टइंडीज मैच के बाद झड़प हुई थी। उसके पहले यहां के 4 कश्मीरी लड़कों को बीफ खाने के आरोप में पकड़ा गया था, पीटा भी गया। बाद में पुलिस ने कहा कि वेटनरी बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि जो मीट खाया गया है वो बीफ नहीं था। अभी फोरेंसिक जांच का इंतज़ार है।

एनआईटी श्रीनगर पर आप जितने भी तथ्य रख लीजिए, आप तक पहुंचेगा वही जो व्हाट्सऐप के ज़रिये तरह तरह के मैसेजों में ढालकर फैलाया जा रहा है। लेकिन हम फिर भी बात करेंगे।

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