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This Article is From Sep 08, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : क्या ट्वीटर का भी असर अब ठंडा पड़ने लगा है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 09, 2016 01:30 am IST
    • Published On सितंबर 08, 2016 23:45 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 09, 2016 01:30 am IST
ट्वीटर पर ट्रेंड कराने का ट्रेंड चल पड़ा है. इसके ज़रिये आपकी बात कुछ लोगों की निगाह में आ जाती है और कई बार मीडिया की निगाह में. अब इसका हिसाब करने का वक्त आ गया है कि मामूली एक्शन के अलावा इस तरह के ट्रेंड का सिस्टम पर क्या असर पड़ता है. पहले भी अखबार में खबर आने के बाद अधिकारी सस्पेंड हो जाता था या तबादला हो जाता था. इसके अलावा व्यापक बदलाव कितना आता है. मैं यह बात इसलिए पूछ रहा हूं कि कुछ महीने पहले नोएडा के होम बायर्स यानी फ्लैट खरीदने वालों ने ट्वीटर पर खूब धमाल मचाया. ट्रेंड कर दिया और टीवी चैनलों में जमकर कवरेज भी हुई. अखबारों में भी हुआ. लेकिन इससे उन्हें क्या हासिल हुआ.

थक हार कर ख़रीदारों की संस्था नेफोवा ने तय किया है कि फिर से ट्वीटर पर ट्रेंड करायेंगे क्योंकि पिछली बार जो ट्रेंड हुआ था, चैनलों में कवरेज हुआ था उसका खास नतीजा नहीं आया है. चैनलों का कवरेज ठंडा पड़ते ही फिर से समस्या वहीं खड़ी हो गई है. नेफोवा के सदस्यों का कहना है कि अभी तक ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है जिससे लगे कि इस मामले में प्रगति हो रही है. एक बार ट्वीटर और टीवी का ये हश्र देखने के बाद ये लोग फिर से हैशटैग आज़माना चाहते हैं. नोएडा में हर रविवार को कहीं न कहीं इससे जुड़े मुद्दे पर बैठक होती रहती है. ट्वीट होता रहता है मगर अब कोई ध्यान नहीं देता है. न मीडिया, न सरकार, न बिल्डर. अब मीडिया और सोशल मीडिया से भी कुछ न हो तो अगला क्या करे. कहां जाए. हम उम्मीद करते हैं कि इस बार उन्हें कुछ तो कामयाबी मिले.

क्या ट्वीटर का भी असर अब ठंडा पड़ने लगा है. लोकतंत्र में मीडिया का विकल्प बनकर उभरा था. समुद्री ज्वार भाटा के पैटर्न पर काम करता है. टीवी के बेअसर होने के बाद क्या अब सरकारें ट्वीटर को भी हल्के में लेने लगी हैं. कार्रवाई के नाम पर खानापूर्ति उसके बाद सब कुछ सामान्य. यह सवाल इसलिए करना चाहता हूं कि बिहार के बेतिया के गर्वमेंट मेडिकल कॉलेज के छात्रों को भी लगा कि ट्वीटर पर हल्ला करने से उनकी सुनवाई हो जाएगी. मेडिकल कालेज के छात्र सनी कमल ने 7 सितंबर को ट्वीट किया कि ट्वीट करने से ट्रेन में मिल्क नेक्स्ट स्टेशन मिल जाता है और सर तीन साल से हमारे कालेज का एक बिल्डिंग नहीं बना.

अच्छा है कि छात्रों को यह फर्क समझ आ गया कि ट्वीटर पर ट्वीट करने से दूध या दवा पहुंचा देना अलग और अच्छी बात है लेकिन व्यवस्था में बुनियादी सुधार लाना अलग. छात्रों ने अपनी मांगों की सूची ट्‌वीट की है और जस्टिस फार जीएमसी बेतिया नाम से एक हैंडल बना लिया. वी वांट जस्टिस वी नीड जस्टिस.

उम्मीद करते हैं कि बेतिया के छात्रों की हालत नोएडा के फ्लैट बायर्स की तरह नहीं होगी. कहां तो लोग फ्लैट खरीद कर मकान मालिक कहलाने लगे हैं. फ्लैट बायर्स कहलाने लगे हैं मतलब बेचारा फ्लैट खरीद कर परेशान है.

2008 में बिहार सरकार ने गर्वमेंट मेडिकल कॉलेज शुरू किया था. महारानी जानकी कुंवर हास्पिटल को इसके साथ अटैच कर दिया गया. 2013 में पहला बैच इस मेडिकल कॉलेज में पढ़ने आया. हर बैच में 100 छात्र होते हैं. अभी तक तीन बैच के छात्र आ चुके हैं और चौथे बैच के छात्रों का एडमिशन शुरू हो गया है. 85 प्रतिशत छात्र बिहार मेडिकल परीक्षा से आते थे और 15 फीसदी एआईपीएमटी से. यहां पर राजस्थान, हिमाचल और दिल्ली के छात्र भी पढ़ते हैं बिहार के छात्रों के अलावा. छात्रों का कहना है कि कॉलेज में बुनियादी सुविधाओं की घोर कमी है. अस्पताल की भी हालत खराब है. बुखार और सर्दी खांसी का ही इलाज हो पाता है. एक कमरे की लाइब्रेरी है जो इतनी जर्जर है कि कभी भी गिर सकती है. मेडिकल की पढ़ाई के शुरुआती दो सालों के विषय की पढ़ाई के लिए लैब में जो सामान चाहिए वो है ही नहीं. एक छोटे से कमरे में विभाग बना दिए गए हैं. रेडियोलोजी विभाग में एक्स रे मशीन ही नहीं है. ENT विभाग में एक टॉर्च तक नहीं, छात्रों ने आज तक laryngoscope तक नहीं देखा. कुछ लैब तो कंक्रीट की भी नहीं हैं. तीन साल हो गए मगर कॉलेज इस हालत में चला तो वे डॉक्टरी की पढ़ाई क्या खाक पढ़ेंगे.

बेतिया के साथ मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के क्षेत्र में भी मेडिकल कॉलेज बनाने का ऐलान हुआ था. पावापुरी का बर्धमान मेडिकल कॉलेज देखकर लगेगा कि बिहार सरकार क्या काम करती है. बेतिया का देखियेगा तो लगेगा कि बिहार सरकार तो कुछ काम ही नहीं करती है.

2011 में इस इमारत की आधारशिला रखी गई. 51 एकड़ का यह कैंपस है. 25 एकड़ में कंस्ट्रक्शन हो चुका है. अस्पताल की इमारत पांच मंज़िला है और पूरी तरह वातानुकूलित है. ओपीडी भी एयरकंडीशन्ड है. कॉलेज की इमारत भी पूरी तरह एयरकंडीशन्ड है. हॉस्टल भी बढ़िया बने हैं. छात्रों की तरफ से हम यह चाहते हैं कि मुख्यमंत्री भले ही उनके हॉस्टल में एसी न लगाएं लेकिन रेडियोलाजी विभाग में एक्स रे मशीन तो दे दें ताकि छात्रों का जीवन बर्बाद न हो. जब बर्धमान मेडिकल कॉलेज की इमारत इतनी तेजी से बन सकती है तो बेतिया में क्यों नहीं काम हुआ. बेतिया में एक कमरे की लाइब्रेरी है और बर्धमान में 4000 वर्गमीटर की लाइब्रेरी है वो भी एसी.

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