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This Article is From May 27, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : डॉक्टरों की कमी कैसे दूर होगी?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 27, 2016 21:41 pm IST
    • Published On मई 27, 2016 21:41 pm IST
    • Last Updated On मई 27, 2016 21:41 pm IST
लगता है कि किसी को रिटायरमेंट अच्छा नहीं लगता तभी जब भी ऐसा एलान होता है कि रिटायरमेंट की उम्र बढ़ा दी गई है जिसकी नहीं भी बढ़ती है वो भी ख़ुश हो जाता है। दूसरी तरफ कॉलेज से निकलकर रोज़गार समाचार पढ़ने वालों को ये ख़बर नहीं सुहाती है। उन्हें लगता है कि अब ये और तीन साल रिटायर न हुए तो उनकी बेरोज़गारी के साल बढ़ जाएंगे। जो नौकरी में हो उसकी भी हालत बेरोज़गार के जैसी है कि चलो तीन साल और मिली। जो नौकरी में नहीं है उसकी हालत लाचार जैसी तो है ही।

प्रधानमंत्री ने जब कहा कि वे कानून बनाकर सभी डॉक्टरों की उम्र 65 साल करने जा रहे हैं। इस ख़बर को लेकर कहीं स्वागत हुआ तो कहीं सुगबुगाहट कि अरे कहीं हमारे पेट पर प्रहार तो नहीं है। 35 साल के युवा 65 प्रतिशत हैं और अगर रिटायरमेंट की उम्र 65 साल हो गई तो कहीं इन 35 प्रतिशत वालों को 65 साल तक इंतज़ार तो नहीं करना पड़ेगा। तो हमने सोचा कि इसी बहाने चेक किया जाए कि डॉक्टर रिटायर कितने साल में होते हैं। वैसे तो अस्सी अस्सी साल की उम्र में डाक्टर प्राइवेट प्रैक्टिस कर रहे हैं और इसके कोई दिक्कत भी नहीं है मगर सरकार ने अब तक क्या सोच कर 60 या 62 कर रखा था जिसके कारण 65 साल करने को लेकर इतना उल्लास है।

अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (एम्स) में रिटायरमेंट की उम्र 65 साल पहले से है। सफदरजंग मेडिकल कॉलेज में अलग-अलग श्रेणी में डॉक्टरों की रिटायरमेंट उम्र 60, 62 और 65 होती है। बिहार में सरकारी अस्पतालों में 65 साल में डॉक्टर रिटायर होते हैं। यूपी के सभी मेडिकल कॉलेज में डॉक्टर 65 साल में रिटायर होते हैं। सरकारी अस्पतालों के स्पेशलिस्ट डॉक्टर 62 साल में रिटायर होते हैं। ग़ैर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों को 60 साल में रिटायर होना पड़ता है। कर्नाटक में डॉक्टरों के रिटायरमेंट की उम्र 60 साल है। ओडिशा के तीन सरकारी अस्पतालों में 65 साल है, बाकी के अस्पतालों में 62 साल है। महाराष्ट्र में 64 साल में डॉक्टर रिटायर होते हैं।

प्रधानमंत्री ने ठीक ही कहा कि मेडिकाल कॉलेज में रिटायरमेंट उम्र अलग है। अस्पताल में अलग है। कहीं 65 साल है तो कहीं 60 से 62 है। कई जगहों पर उम्र बढ़ाने की मांग भी होती रही है। 20 जनवरी 2015 को हिन्दू अखबार में एक रिपोर्ट छपी है कि तब मनोहर लाल खट्टर ने हरियाणा राज्य के सरकारी कर्मचारियों के रिटायर होने की उम्र 60 से घटाकर 58 कर दी थी। पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने इस फैसले को सही माना था। मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की राय थी कि इस फैसले से युवाओं के लिए रोज़गार के अधिकतम अवसर पैदा होंगे। विरोध करने वालों का कहना था कि फिर हरियाणा में आईएएस, कॉलेज के टीचर और न्यायिक अधिकारी क्यों 60 साल में रिटायर होंगे, वे भी 58 में हो जाएं। कोर्ट में विरोधी हार गए। 4 अप्रैल 2016 के इंडिया टुडे की साइट पर एक और खबर है कि हरियाणा सरकार डॉक्टरों की कमी को दूर करने के लिए उनके रिटायरमेंट की उम्र 58 से बढ़ाकर 62 करना चाहती है। हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री का बयान था कि ऐसे प्रस्ताव पर विचार हो रहा है। उड़ीसा ने भी सरकारी डॉक्टरों की कमी को पूरा करने के लिए रिटायरमेंट उम्र 60 से बढ़ा कर 65 साल कर दिया था। मगर इस प्रस्ताव के खिलाफ ओडिशा मेडिकल सर्विस एसोसिएशन खुलकर आ गया। यहां तक कि प्रधानमंत्री को भी पत्र लिख दिया। अब पता नहीं ये एसोसिएशन वाले किसे पत्र लिखेंगे क्योंकि प्रधानमंत्री भी 65 साल करने जा रहे हैं।

हमारे देश में मरीज़ों के अनुपात में डॉक्टरों की कमी तो है लेकिन क्या ये कमी इसलिए है कि इस वक्त डॉक्टर नहीं हैं। अगर ऐसा है तो आपको एक भी डॉक्टर बेरोज़गार नहीं मिलना चाहिए। भारत में हर साल करीब 50,000 एमबीबीएस डॉक्टर देश के 370 मेडिकल कॉलेज से निकलते हैं। भारत दुनिया में सबसे ज्यादा डॉक्टर पैदा करने वाला देश है। अमेरिका में हर साल 18000 डॉक्टर निकलते हैं मगर उनकी आबादी की तुलना भारत से नहीं की जा सकती। काफी कम है। अब हमें समझना ये है कि क्या वाकई डॉक्टरों की कमी है हमारे देश में या सरकारी अस्पतालों में भर्ती ही नहीं निकलती है और जिन्हें सरकारी नौकरी मिलती है क्या वे अस्पतालों में जाते हैं।  

ओडिशा के सरकारी अस्पतालों में कई बार डॉक्टर ड्यूटी पर जाते ही नहीं है। 2015 में ओडिशा सरकार ने 613 डॉक्टरों के खिलाफ नोटिस भी जारी किया था। ओडिशा ही नहीं ये कहानी आपको देश के तमाम राज्यों के सरकारी अस्पतालों में मिलेगी। इसका मतलब सरकारी अस्पतालों के तंत्र में भी समस्या है।

लेकिन अप्रैल 2015 की टाइम्स आफ इंडिया की खबर है कि सरकार गांवों और मुश्किल इलाकों में काम करने वाले डॉक्टरों को वेतन के अलावा 80,000 रुपया प्रोत्साहन राशि देगी। तब भी डॉक्टर गांवों में सेवा के लिए तैयार नहीं है।

30 जनवरी 2016 के हिन्दू अखबार में अफशां यास्मीन की रिपोर्ट है कि कर्नाटक पब्लिक सर्विस कमिशन से नियुक्त एक जनरल सर्जन ने नियुक्ति के अगले ही दिन इस्तीफा दे दिया। एक महिला डॉक्टर ज्वाइन करने के बाद अस्पताल ही नहीं गई। अफशां ने लिखा है कि 1122 डॉक्टरों की बहाली हुई मगर 597 ही ड्यूटी पर आए। जबकि पब्लिक सर्विस कमिशन जब दूसरे पदों की बहाली निकलता है तो वहां सीट से ज्यादा आवेदक होते हैं। सरकारी अस्पतालों के लिए बहाली निकलती है तो सीट से कम आवेदन आते हैं।

ये चंद उदाहरण बिन कर इसलिए लाया ताकि पता चले कि हम उम्र बढ़ा कर कोई क्रांतिकारी फैसला ले रहे हैं या क्रांतिकारी फैसला न लेना पड़े इसलिए उम्र बढ़ा रहे हैं। क्या सरकारें बिल्कुल प्रयास नहीं करती कि डॉक्टर नहीं आए। ऐसा तो नहीं लगता। यूपी की अखिलेश सरकार ने कहा है कि अगर डॉक्टर गांवों में जाएंगे तो पोस्ट ग्रेजुएशन में एडमिशन के वक्त तीस नंबर अलग से मिलेंगे। डॉक्टरों से बात कर पता चलता है कि सरकारी अस्पतालों में काम करना झमेला है। माहौल से लेकर मौके तक की तंगी है। वे 65 साल करने के फैसले से बहुत उत्साहित नहीं हैं। अब हम यह जानना चाहते हैं कि क्या वाकई हमारे देश में कम डॉक्टर पैदा हो रहे हैं। प्रधानमंत्री की एक बात तो ठीक लगती है कि एक दिन में तो डॉक्टर पैदा नहीं हो सकते। डॉक्टरी की पढ़ाई कई साल की होती है लेकिन फिर हमारे देश में पोस्ट ग्रेजुएट की सीट इतनी कम क्यों हों। 50,000 डॉक्टर अगर एमबीबीएस करते हैं तो 25,577 सीट क्यों हैं पोस्ट ग्रेजुएशन के लिए।

महाराष्ट्र में रेडियो थेरेपी में पीजी करने के लिए सिर्फ दो सीट है। जबकि कैंसर के मरीज़ों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। विगत वर्ष टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा है कि पूरे महाराष्ट्र में रेडियो थेरेपी के एक ही प्रोफेसर हैं। जिन्हें 60 साल की उम्र में 2007 में रिटायर हो जाना चाहिए था लेकिन डॉक्टर कांबले नागपुर मेडिकल कॉलेज में मई 2015 तक पढ़ाते रहे। मई 2015 में उनकी उम्र 65 हो गई। महाराष्ट्र में रिटायरमेंट की उम्र 64 साल है। इस दौरान जब रेडियो थेरेपी का प्रोफेसर नहीं मिला, प्रोफेसर न होने से रेडियो थेरेपी की दोनों सीटें चली जातीं लिहाज़ा सरकार ने यह प्रस्ताव तैयार किया कि जो कंट्रैक्ट पर डॉक्टर रखे जाते हैं उनकी उम्र 65 से बढ़ाकर 70 कर दी जाए। यह कहानी बताती है कि उम्र बढ़ाकर हम समस्या पर पर्दा डाल रहे हैं। पोस्ट ग्रेजुएट की सीट बढ़ाई जा सकती है। जब तक पोस्ट ग्रेजुएट सीट नहीं होगी तो पढ़ाने वाले टीचर कहां से पैदा होंगे, जब टीचर ही नहीं होंगे तो डॉक्टर कहां से पैदा होंगे।

क्योंकि टीचर होगा, पोस्ट ग्रेजुएट छात्र होंगे तभी तो सीट भी बढ़ेगी। यह एक चक्र है। सरकारें चाहें तो इस कमी को एक दो साल में दूर कर सकती हैं। रिटायरमेंट उम्र की जगह पोस्ट ग्रेजुएशन की सीट बढ़ा देती तो लगता कि इरादा साफ है। जब नामांकन में ओबीसी आरक्षण दिया गया था तब कुछ ही महीनों के भीतर सीटें भी बढ़ गईं और क्लास रूम भी बन गए। सरकारी मेडिकल कॉलेज में हालत यह है कि जवानी गुज़र जाती है डॉक्टर फैकल्‍टी नहीं बन पाता है। लिहाज़ा वो हताश होकर प्राइवेट अस्पतालों में चला जाता है जहां पैसा पद और कथित रूप से आज़ादी मिलती है। प्राइवेट अस्पतालों में आज़ादी की उनकी दलील कुछ नकली लगती है कुछ असली भी होती है। डॉक्टरों का होना बहुत ज़रूरी है लेकिन क्या इस व्यवस्था में सुधार के लिए ठोस सर्जरी हो रही है।

डॉक्टर की कमी नहीं लगती, कहीं गांवों में नहीं जाने का बहाना तो नहीं, क्या सरकारों ने गांवो में अस्पतालों में डॉक्टरों के काम करने की सुविधा बेहतर किये हैं, क्या सरकारी मेडिकल कॉलेजों में रिसर्च का फंड बढ़ाया है, क्या टीचिंग का माहौल बेहतर हुआ है। कहीं ऐसा तो नहीं कि कमी के कारण की जगह कमी का बहाना बनाकर 65 साल सिर्फ वाहवाही लूटने के लिए की गई है। प्राइवेट संस्थानों में रिटायरमेंट उम्र 70 साल है ताकि 65 पर डॉक्टर निकले तो वो ले जाएं।
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