आखिर, भ्रष्‍टाचार से कैसे होगा मुकाबला?

नई दिल्‍ली:

भ्रष्टाचार न दिखे तो इसका मतलब नहीं कि वो कहीं हो नहीं रहा है। इसके लिए ज़रूरी है कि इसकी खोज करने वाले से लेकर निगरानी और सुनवाई करने वाली संस्थाएं भी अपने पूरे वजूद के साथ स्वतंत्र रूप से कार्य करें।

भ्रष्टाचार को जड़ से मिटा देने वाला सरकारी महानायक अर्थात लोकपाल अभी तक नहीं आ सका है। वैसे ये 1969 से ही आ रहा है। दिसंबर 2013 में कानूनी जामा पहनते ही लगा कि अब निकलेगा मगर वो बाहर आया ही नहीं। लोकपाल तय करने के लिए बनने वाले खोजपालों का भी अब तक पता नहीं है।

अब जब भी लोकपाल की बात होती है अंग्रेज़ी ग्रामर का पास्ट टेंस याद आया है। वे भी क्या दिन थे। तब सब कुछ ब्लैंक एंड व्हाईट में देखने की बात हो रही थी, आर या पार टाइम मगर अब ये तस्वीरें वाकई ब्लैक एंड व्हाईट होती हुई फेड करने लगी हैं धुंधली पड़ने लगी हैं। लोकपाल जोकपाल और जनलोकपाल और फिर इन तीनों पर तिरपाल। जिन लोगों ने लोकपाल को जीवन मरण का सवाल बना दिया था वो उसे जोकपाल बताकर अपने जनलोकपाल की तलाश में चले गए हैं।

2013 से और नई सरकार बनने के तीन महीने से दिल्ली में लोकायुक्त नहीं है। इसकी जगह 1031 का कॉल सेंटर बन गया है। जहां एक महीने में सवा लाख फोन कॉल आए हैं जिनमें से 6000 शिकायतों को गंभीर बताया गया है। जब एंटी करप्शन ब्यूरो की मौजूदा शक्तियों से भ्रष्टाचार से लड़ा जा सकता है तो क्या दिल्ली के लोकायुक्त के पास एंटी करप्शन ब्यूरो से कम अधिकार हैं। मैं इसका ज्ञानी नहीं हूं मगर यह सवाल मन में आया तो उठा दिया। लोकपाल से ज्यादा कारगर 1031 हो सकता है तो फिर लोकपाल जैसे विचार को छोड़ क्यों न दिया जाए। इसी तरह लोकपाल के समांतर काले धन को लेकर आंदोलन हुआ। इस मामले में इतनी राहत है कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच चल रही है, 12 मई तक एसआईटी को स्टेटस रिपोर्ट जमा कर देनी है।

लखनऊ से कमाल ख़ान ने रिपोर्ट भेजी है कि लोकायुक्त ने जिन मंत्रियों, विधायकों और अफ़सरों के भ्रष्टाचार की जांच रिपोर्ट सरकार को सौंपी है उन पर सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही है। हज़ारों करोड़ के घोटाले के मामले की रिपोर्ट पर कार्रवाई न होता देख यूपी के लोकायुक्त आज राज्यपाल से मिलने चले गए। हाई कोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की गई है। कम से कम विपक्षी दल के घोटालों पर तो मौजूदा सरकार कार्रवाई कर ही सकती थी।

लोकायुक्त ने अपनी जांच में पाया था कि मायावती सरकार ने स्मारकों के बनाने में 1400 करोड़ के घोटाले हुए जिसमें उनके कबीना मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी और बाबू सिंह कुशवाहा समेत 199 लोग शामिल थे। लोकायुक्त ने इनसे पैसे वसूलने की बात कही थी मगर एफआईआर से आगे कुछ नहीं हुआ है।

यही नहीं मायावती सरकार ने 21 सरकारी चीनी मिलें बेच दीं जिसके बारे में सीएजी ने कहा कि एक हज़ार करोड़ का नुकसान हुआ है। इसकी भी जांच रिपोर्ट सरकार को दे दी गई है मगर कोई कार्रवाई नहीं हुई है। यह साफ नहीं हो सका कि लोकायुक्त ने मौजूदा सरकार के किसी घोटाले की जांच की है या नहीं। इस साल 30 जून को हिन्दू अखबार में ख़बर छपी है कि लोकायुक्त की रिपोर्ट के बाद चुनाव आयोग ने बीजेपी के विधायक बजरंग बहादुर सिंह और बसपा के विधायक उमाशंकर सिंह की विधायकी समाप्त कर दी थी, इन लोगों ने सरकारी ठेका ले लिया था जो नहीं लेना चाहिए था।

इसी तरह आए दिन आप सीएजी की रिपोर्ट का ज़िक्र सुनते हैं और भूल जाते हैं। अब काला धन को लेकर समस्या है। वो आ नहीं रहा है लेकिन वो अब जाये नहीं या आता रहे इसके लिए सरकार एक नया कानून ला रही है। The Undisclosed Foreign Income and Assets (Imposition of Tax) Bill, के अनुसार...

- अगर टैक्स डिपार्टमेंट से विदेशों में जमा आय और संपत्ति का ब्यौरा नहीं दिया तो 3 से 10 साल तक की सज़ा होगी।
- अगर इस अपराध में पकड़े गए तो उस आय या संपत्ति पर जो कर बनेगा उसका तीन गुना जुर्माना लगेगा।
- किसी दूसरे व्यक्ति को इसमें हिस्सेदार बनाकर पैसा छिपाने का प्रयास किया तो भी जेल जाने के पात्र बनेंगे।
- सबको एक बार के लिए मौका दिया जाएगा कि वे ऐसी संपत्ति का खुलासा करें और तीस प्रतिशत टैक्स देकर चिन्ता मुक्त हो जाएं।
- इसके अलावा सरकार बेनामी ट्रांजैक्शन बिल भी लाने जा रही है।
- एक लाख से अधिक की खरीद पर पैन नंबर अनिवार्य कर दिया गया है।

लेकिन उद्योगों की संस्था एसोचैम को इस बिल की सख्ती से एतराज़ है। एसौचैम का कहना है कि ब्लैक मनी बिल से सताने का और मौका मिल जाएगा। इसमें बहुत सारी कमियां हैं। इन कमियों को पढ़ते हुए लगा कि कोई डरे या न डरे एक वर्ग को इस विधेयक से डर लग रहा है। एसोचैम के मुताबिक...

- उन लोगों को सुरक्षा मिले जो एक बार में सारे खुलासे कर देना चाहते हैं।
- ऐसा करने वालों को प्रिवेंशन ऑफ मनी लाउंड्रिंग एक्ट 2002 के तहत सज़ा न मिले।
- जो एक बार खुलासा करे उससे तीस प्रतिशत टैक्स न लें, ये बहुत ज्यादा है।
- टैक्स मूल निवेश या ख़रीद के वक्त की कीमत पर लगाए जाएं न कि मौजूदा बाज़ार दर के आधार पर।
- सज़ा काफी सख्त है, इस सज़ा को इनकम टैक्स के प्रावधान से जोड़ा जाना चाहिए।

इस बिल को आज लोकसभा में पेश होना था। प्रकाश जावड़ेकर ने बयान दिया कि कांग्रेस इससे भाग रही है। कांग्रेस नेता अंबिका सोनी ने कहा कि जब हम ये बिल चाहते थे तब बीजेपी को समस्या थी लेकिन जब हम ये कह रहे हैं कि व्यापक चर्चा हो तो बीजेपी को समस्या हो रही है।

वैसे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने बुधवार को लोकसभा में सवाल किया था कि एक साल से लोकपाल, केंद्रीय सूचना आयुक्त, केंद्रीय सतर्कता आयुक्त की नियुक्ति क्यों नहीं हो रही है। इतना ही नहीं सूचना आयुक्त के वित्तीय अधिकारों को सरकारी सचिव के हाथ में दे दिया गया जबकि आरटीआई एक्ट में ऐसा कोई पद ही नहीं है। एक्ट के अनुसार केंद्रीय सूचना आयुक्त के पास ही प्रशासनिक और वित्तीय अधिकार थे। सरकार किसी भी तरह से सूचना आयुक्त के काम को नियंत्रण में नहीं ले सकती है।

केंद्रीय सूचना आयुक्त के साथ दस सूचना आयुक्त भी होते हैं। सोनिया ने पूछा था कि केंद्रीय सूचना आयुक्त नहीं है जिसके जवाब में जितेंद्र सिंह ने पहले गिनाया कि यूपीए के दौरान कई बार ऐसा हुआ है जब सूचना आयुक्तों के पूरे पद नहीं भरे गए। साथ ही वित्तीय अधिकार सूचना आयुक्त के सचिव को वापस सौंप दिये गए हैं।

एक और महत्वपूर्ण पद है प्रवर्तन निदेशालय के प्रमुख का। अगस्त 2014 से इस पद पर स्थायी नियुक्ति नही हुई है। एक मामला 2011 के व्हिसल ब्लोअर एक्ट में संशोधन का भी है। रक्षा को अब इस एक्ट से बाहर किया जा रहा है।

संप्रभुता और अखंडता के नाम पर रक्षा और संवेदनशील मंत्रालयों को भ्रष्टाचार उजागर करने वाले बहादुरों की पहुंच से बाहर किया जा रहा है। कार्यकर्ताओं के सवाल हैं कि क्या बोफोर्स, टैट्रा ट्रक और अगस्टा वेस्टलैंड घोटाले के उजागर होने से भारत की अखंडता ख़तरे में पड़ गई थी?

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एक साल में लोकपाल नहीं, सूचना आयुक्त नहीं, प्रवर्तन निदेशक नहीं। तो क्या हम मान लें कि ब्लैक मनी और पैन नंबर के अनिवार्य बना देने से सरकार भ्रष्टाचार को लेकर गंभीर है। बारी-बारी से गंभीरता की व्याख्या करेंगे।