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This Article is From Jan 21, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : अमेरिका में ट्रंप आगमन का मंगलाचरण

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 21, 2017 00:28 am IST
    • Published On जनवरी 21, 2017 00:28 am IST
    • Last Updated On जनवरी 21, 2017 00:28 am IST
अमेरिका में ट्रंपागमन का मंगलाचरण शुरू हो चुका है. चुनाव के दौरान ट्रंप ने कहा था कि वे अमेरिका को फिर से महान बनाएंगे. अब कह रहे हैं कि भूतो न भविष्यति टाइप महान बना देंगे. समर्थक नारे लगाते हैं कि अमेरिका को महान बना दो, ट्रंप कहते हैं बना देंगे. बना देंगे. ग्रेट और ग्रेटर कंट्री का इतिहास युद्ध का इतिहास रहा है. उस ताकत को हासिल करने का इतिहास रहा है जिसे लिखने के लिए दुकानें ही नहीं खोलनी होती हैं, तोपें भी चलानी होती हैं. इस समय में दुनिया में कई मुल्कों में नेता अपने मुल्क को तसल्लीबख्श महान बनाने का दावा कर रहे हैं. अपनी सांसें थाम लीजिए, आप महानता के नए दौर में प्रवेश कर रहे हैं. उन सफेद पन्नों पर नज़र रखिये जहां नया इतिहास लिखा जाना है. बशर्ते कुछ नया इतिहास बन पाया तो. लिखा गया तो.

ट्रंपागमन को लेकर एक तरफ समर्थकों की भीड़ उत्साहित है. वाशिंगटन पहुंच रही है. ट्रंप उस अमेरिका के नायक हैं जो महानगरों में नहीं रहता है. ट्रंप को डिसरप्टिव कैंडिडेट कहा जा रहा है. हमारे यहां जमे जमाए खेल को बिगाड़ देने वाला, भंडोल कर देने वाला डिसरप्टिव कहलाता है. लोग समझने का प्रयास करते हैं मगर समझ नहीं पा रहे हैं. लेकिन ट्रंप के मतदाता जोश से भरे हैं. अमेरिकी संसद के सामने के नेशनल मॉल में लाखों की संख्या में जमा हो रहे हैं. ट्रंप समर्थक मुखौटा लगाकर आये हैं जिस पर लिखा है, अमेरिका को फिर से महान बना दो. उनके लिए अमेरिका में नई सुबह का आगाज़ होने वाला है. उनके स्वागत समारोह का बहिष्कार भी हो रहा है. करीब 50 कांग्रेस सदस्यों ने समारोह में शामिल न होने का ऐलान किया है. 1973 में भी रिचर्ड निक्सन के शपथ ग्रहण समारोह का 80 सांसदों ने बहिष्कार किया था. न्यूयार्क में ट्रंप इंटरनेशनल होटल और टावर के सामने विरोध प्रदर्शन हुए हैं. रॉबर्ट डी नीरो जैसे बड़े कलाकारों ने हिस्सा लिया है. रॉबर्ट डी नीरो ने कहा कि जो भी होगा हम देशभक्त, अमेरिकी, न्यूयार्कर अपने देश के नागरिकों के लिए एक साथ खड़े हैं. नारी विरोधी बयान के खिलाफ महिलाओं ने भी ट्रंप के शपथग्रहण समारोह के बहिष्कार का ऐलान किया है. ख़बरों के मुताबिक दो लाख पैंतालीस हज़ार के करीब लोग ट्रंपागमन के खिलाफ वाशिंगटन में मार्च करेंगे. इसके अलावा दुनिया के अलग अलग शहरों में 600 मार्च निकाले जाने का दावा किया जा रहा है. 2009 में ओबामा के इनॉगरेशन में 18 लाख लोग आए थे. देखते हैं कि ट्रंपागमन के लिए कितने लोग आते हैं.

ट्रंप के समर्थक कह रहे हैं कि उन्होंने इसलिए चुना क्योंकि ये अमेरिका को महान बनाने की बात कर रहे हैं. बीबीसी से बात करते हुए एक ट्रंप समर्थक ने कहा है कि उसे भी बुरा लगा था जब 2009 में ओबामा ने शपथ ली थी इसलिए ट्रंप को लेकर दुखी लोगों का दर्द समझ सकता हूं. अमेरिका जनता दो हिस्सों में बंट गई है. समारोह के लिए 28,000 सुरक्षाबल तैनात किये गए हैं. ख़बरों के मुताबिक इस आयोजन पर 200 मिलियन डालर का खर्चा आएगा. भारतीय रुपये में करीब 1400 करोड़ होता है. हमारे ही नेता अच्छे हैं. शपथ ग्रहण समारोह पर इतना खर्चा नहीं करते हैं.

अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति, दास प्रथा को ख़त्म करने वाले अब्राहम लिंकन की प्रतिमा के सामने ट्रंप को देखकर किसी ने चुटकी ली है कि हो सकता है कि ट्रंप के समर्थक लिंकन की विरासत को पसंद न करते हों. क्या ट्रंप उनकी विरासत को आगे बढ़ायेंगे. ट्रंप ने अश्वेत यानी अफ्रीकी अमेरिकी लोगों का मज़ाक उड़ाया है. आशंका ज़ाहिर की जा रही है कि ट्रंप के काल में उनके अधिकारों पर हमले होंगे. इसी संदर्भ में लिंकन मेमोरियल पर ट्रंप के भाषण को देखा जा रहा है. लेकिन ट्रंप होते कहीं और हैं, बोलते कुछ और है. अब तक उनकी शैली बताती है कि वे भाषण में अमेरिका को एकजुट रखने की बात तो कर देंगे लेकिन लोगों को यह भी सुनाई देगा कि इसी ट्रंप ने कहा है कि मेक्सिको के लोगों को अमेरिका में घुसने नहीं देंगे. अमेरिका में मुसलमानों के आने पर अस्थायी रूप से रोक लगा देंगे. एक करोड़ से अधिक माइग्रेंट को बाहर निकाल देंगे. फिर भी उनके भाषण पर पूरी दुनिया की नज़र है. शपथ लेने के बाद पहले चंद घंटों में वे ओबामा के किन फैसलों को पलटते हैं उस पर भी नज़र है. ट्रंप तमाम आलोचनाओं से प्रभावित नहीं दिखते हैं. अपनी बातों में बार बार दोहरा रहे हैं कि यह एक आंदोलन है, दुनिया में इस तरह का आंदोलन कहीं नहीं हुआ होगा. आपमें से आधे लोग हैट पहने हुए हैं, अमेरिका को फिर से महान बनायेंगे. इन बातों से लगता है कि ट्रंप अमेरिका को नए सिरे से परिभाषित करेंगे. इन बातों का यही मतलब है कि दुनिया के अलग अलग मुल्कों से आए लोगों से जो अमरीका बसा है, अब अमेरिका उनका है जो इसके मूल बाशिंदे हैं. जो हैट पहनते हैं. समर्थकों को लगता है कि ट्रंप अमेरिका में नौकरियां वापस लाएंगे.

सारा खेल नौकरियों का है. जनता दुनिया भर में अपनी सरकारों से नौकरियों की उम्मीद लगाए बैठी है. एक न एक दिन वह अपने घर से लेकर पड़ोस तक में नौकरियों को लेकर दिखाए गए सपनों की हकीकत भी जान लेगी. तमाम आंकड़े बताते हैं कि आर्थिक असमानता बढ़ रही है. सौ पचास अमीर लोगों के पास दुनिया की आधी संपत्ति है. ज़ाहिर है बाकी के पास कुछ नहीं है या बहुत कम है. दुनिया में अभी तक इन सौ पचास लोगों की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा है. न पड़ेगा. न भारत में न अमेरिका में. नौकरियां बढ़ने के तमाम दावों को गिनते रहिए. यहां भी अमेरिका में भी.

240 साल के लोकतांत्रिक इतिहास में ट्रंप पहले हैं जो किसी सैन्य सेवा में नहीं रहे हैं न ही किसी सार्वजनिक पद पर रहे हैं. 70 साल की उम्र में राष्ट्रपति बन रहे हैं. इस उम्र में पहला कार्यकाल शुरू करने वाले ट्रंप पहले हैं. ट्रंप कब क्या बोलेंगे और क्या कर देंगे किसी को अंदाज़ा नहीं है. ट्रंप का ही बयान है कि एक देश के रूप में हमें अनप्रेडिक्टेबल होना चाहिए. यानी कब क्या करेंगे किसी को पता न हो. विदेश नीति को लेकर पूरी दुनिया की निगाह उन पर है. इरान के साथ अमेरिका ने जो परमाणु समझौता किया था क्या उसे बदल देंगे. ट्रंप कहते हैं कि इससे बुरी डील कभी नहीं हुई होगी. क्या उनके बयानों की तरह फैसले भी होने जा रहे हैं. अगर ट्रंप ने अपने बयानों को फैसले में बदलना शुरू किया तो क्या होगा. इस तरह के कयास लग रहे हैं. कभी कहते हैं कि हमे ईरान के साथ डील के साथ जीना ही होगा. क्लाइमेट चेंज यानी जलवायु परिवर्तन को लेकर उनके बयानों को लेकर ज्यादा चिंता ज़ाहिर की जा रही है. ट्रंप ने कहा है कि वे पेरिस करार को रद्द कर देंगे. एक तरफ चीन अपनी नीतियों की समीक्षा कर रहा है. कोयले से चलने वाले कई बिजली घरों को बंद कर रहा है. ट्रंप कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन की बात बकवास है. लेकिन वही ट्रंप कहते हैं कि परमाणु हथियारों का भंडार कम करना चाहिए. क्या यह अच्छी बात नहीं है. आईएसआईएस से लड़ने की बात करते करते कहते हैं कि हमें तेल को ही बर्बाद कर देना चाहिए. नेटो के बारे में भी उनका बयान बदलता ही रहा है.

कुल मिलाकार चुनौती यह है कि ट्रंप को उनके बयानों के संदर्भ में ही देखा जाए या अब नीतियों का इंतज़ार किया जाए. बयानों से वे कई बार पलटते हैं. वे अपना नया शिष्टाचार कायम कर रहे हैं. कुछ भी बोलो और जब मन करे फिर नया बोल दो.
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