नमस्कार मैं रवीश कुमार, मानहानि गणित में पढ़ाया जाने वाला लाभ हानि का चैप्टर नहीं है। मानहानि बड़े लोगों का मानवाधिकार है। लाभ हानि भी उन्हीं की होती है, मानहानि भी उन्हीं की होती है। महंगी न्यायिक व्यवस्था में ग़रीब की जानहानि हो सकती है, धन हानि हो सकती है मगर मानहानि नहीं होती। मानहानि के दम पर पर कई बार बड़ी कंपनियां रिपोर्ट छपने से पहले और छपने के बाद बड़े बड़े वकील खड़े कर रिपोर्टर को हदसा देती हैं।
हाल ही में चेन्नई बाढ़ के वक्त हिन्दुस्तान टाइम्स ने खबर की थी कि तमिलनाडु में जयललिता सरकार ने नेताओं, अखबारों और पत्रकारों के खिलाफ मानहानि के 110 मुकदमे कर रखे हैं। वैसे जब डीडीसीए वाला विवाद उठा तब वित्तमंत्री अरुण जेटली ने बयान दिया कि मैं एक राजनीतिक व्यक्ति हूं। लोग मुझे अच्छी तरह से जानते हैं और उन्हें मेरा इन मामलों में ट्रैक रिकॉर्ड पता है। इसलिए मुझे कानून का सहारा लेकर विरोधियों को डराने की ज़रूरत नहीं है। मैं उन्हें राजनीतिक तरीके से जवाब दूंगा।
वित्त मंत्री का ये जवाब बिल्कुल दुरुस्त था और उनके तर्कशील मिज़ाज के अनुरूप भी। फिर वित्तमंत्री कानून का सहारा लेने के लिए मजबूर क्यों हुए जिसका इस्तेमाल वो अपने विरोधियों को डराने के लिए नहीं करना चाहते थे। लोकसभा में बयान देने के बाद सोमवार दोपहर जब पटियाला हाउस कोर्ट के लिए रवाना हुए तो उनके साथ मोदी मंत्रिमंडल के मंत्री और बीजेपी के नेता भी पहुंच गए। जिसे देखकर यह सवाल उठा कि मानहानि का केस दायर करने के लिए इतने मंत्रियों की परेड की आवश्यकता क्यों पड़ी।
वेकैंया नायडू, रविशंकर प्रसाद, जे पी नड्डा, स्मृति ईरानी, पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण, राज्यवर्धन राठौर, सांसद विजय गोयल, महेश गिरी, अमन सिन्हा, दिल्ली बीजेपी के अध्यक्ष सतीश उपाध्याय, वी के मल्होत्रा, विजेंद्र गुप्ता भी अदालत में पहुंचे तो एक सवाल मन में आया कि देश के धाकड़ वकीलों में से एक वित्तमंत्री अरुण जेटली को नैतिक और कानूनी समर्थन की तो ज़रूरत नहीं ही होगी। तो क्या यह सब राजनीतिक प्रदर्शन था। मानहानि का मुकदमा ही दायर हुआ है, फैसला नहीं आया है। यही तो बीजेपी ने कहा था जब शनिवार दोपहर पटियाला कोर्ट में ही कांग्रेस ने अपना शक्ति प्रदर्शन किया और ज़मानत मिल गई थी।
शनिवार दोपहर, और सोमवार दोपहर, इन दो दोपहरों की कहानी के ज़रिये यह ज़रूर जानना चाहूंगा कि आखिर वित्त मंत्री के लिए इस शक्ति प्रदर्शन की ज़रूरत क्यों पड़ी। जेपी नड्डा ने कहा कि हम जेटली जी को सपोर्ट करने आए हैं। उनकी साफ सुथरी ज़िंदगी रही है। उन्होंने ग़रीबों की बहुत मदद की है।
वित्तमंत्री जेटली ने आम आदमी पार्टी के छह नेताओं के ख़िलाफ़ मानहानि का मुकदमा किया है। राजनीति में आरोप लगाना इतना महंगा हो जाएगा तो सोचिये प्राइम टाइम की बहसों का क्या होगा। वित्त मंत्री को कम से कम एंकरों का तो ख़्याल रखना ही चाहिए था। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, कविवर कुमार विश्वास, आशुतोष, संजय सिंह, राघव चड्ढा और दीपक बाजपेई, आप सब दस करोड़ की मानहानि के लिए तैयार रहें। वित्तमंत्री ने इनके खिलाफ दीवानी और आपराधिक मुकदमा किया है यानी हर्जाना भी देंगे और जेल भी जाएंगे।
कीर्ति आज़ाद बच गए। जबकि आम आदमी पार्टी के इन छह रत्नों के आरोपों का मूल तो कीर्ति आज़ाद के आरोप में ही है। तर्क यह दिया गया कि कीर्ति आज़ाद ने किसी व्यक्ति विशेष का नाम नहीं लिया है। अब एतराज़ सिर्फ नाम लेने से है या फिर इस मामले के झूठे होने से भी है। कीर्ति आज़ाद ने सोमवार को लोकसभा में साफ साफ इशारे से कह दिया कि किसकी बात कर रहे हैं। बल्कि उन्होंने ट्वीट किया है कि मेरा नाम क्यों हटा दिया @arunjaitley #आप ने तो मेरे लेटर्स देखे थे, मुझ पर करो न केस, रजिस्टर्ड पोस्ट से मैंने भेजे थे।
कहीं कीर्ति आज़ाद पर्सनली फील न कर बैठे कि उनकी मानहानि हो गई है क्योंकि उनकी लड़ाई पर शहीद कोई और हो ये तो उन्हें ठीक नहीं लगेगा। कांग्रेस के नेता भी मानहानि की सूची में आने से बच गए जबकि इस्तीफा वे भी मांग रहे थे। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के नेता भी सवाली ट्वीट पर जवाबी ट्वीट किए जा रहे हैं। केजरीवाल ने ट्वीट किया है कि कोर्ट में केस कर जेटली जी हमें डराने की कोशिश न करें। भ्रष्टाचार के ख़िलाफ हमारी जंग जारी रहेगी।
मुख्यमंत्री ने सोमवार को कैबिनेट की बैठक बुला कर यह फैसला किया कि मंगलवार को दिल्ली विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जाएगा जहां सीबीआई के छापे और डीडीसीए पर चर्चा होगी।
केजरीवाल मंत्रिमंडल ने एक सदस्यीय जांच समिति भी बनाने का फैसला किया है। चर्चा है कि मशहूर कानूनविद गोपाल सुब्रमण्यम इसकी अध्यक्षता के लिए तैयार हो गए हैं। आपको याद होगा कि जून 2014 में गोपाल सुब्रमण्यम ने सुप्रीम कोर्ट के जज बनने की दावेदारी से अपना नाम वापस ले लिया था क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उनके लिए सरकार के सामने स्टैंड नहीं लिया था। गोपाल सुब्रमण्यम ने मोदी सरकार को भी निशाना बनाया था कि उन्हें जज नहीं बनने दिया गया क्योंकि उन्होंने अमित शाह के केस में स्वतंत्रता से काम किया था।
दिल्ली के कानून जगत में वकीलों की दुनिया भी कम जटिल नहीं है। उनके बीच की बारीक प्रतिस्पर्धा क्या क्या गुल खिला सकती है ये सामान्य जन की समझ से बाहर की चीज़ है। अगर लोकपाल आ गया होता तो उसी के सामने सारे आरोप जमा कर दिए जाते और जांच हो जाती। अब लोकपाल नहीं आया तो मानहानि के मामलों के लिए एक मानपाल आ जाना चाहिए। चूंकि मानपाल का आइडिया मेरा है इसलिए मानपाल मुझे ही बनाना चाहिए। मानपाल के तौर पर मैं न तो किसी की मानहानि होने दूंगा और न ही मेरे रहते किसी को मान लाभ होगा। लेकिन इस सवाल को भी गंभीरता से जगह मिलनी चाहिए कि क्या हमारी राजनीति में अब कुछ भी आरोप लगा देने का चलन बढ़ गया है। कोई मामला अंजाम पर पहुंचता नहीं कि दूसरे मामले आ जाते हैं। आरोपी हमेशा के लिए जनता की निगाह में संदिग्ध रह जाता है।
अंग्रेज़ी में ट्रोल कहे जाने वाले सोशल मीडिया के उत्पातियों द्वारा रोज़ तरह तरह की गालीनुमा उपमाएं गढ़ी जा रही है। हर पार्टी की समर्थक उत्पाती टोलियां ये काम कर रही हैं। नेता अभिनेता पत्रकार कोई नहीं बचा है। जब हम इन्हें लोकतंत्र के उत्सव की झालर समझ कर स्वीकार कर रहे हैं तो राजनीतिक आरोपों के प्रति इतनी असहनशीलता क्यों है। फिर भी क्या हमें आरोप लगाने के समय हमें कुछ ज्यादा सचेत और गंभीर नहीं होना चाहिए। पर कसूर तो राजनीति का ही है। इसने ऐसी व्यवस्था क्यों नहीं बनाई जहां राजनीतिक आरोपों की कुछ तथ्यात्मक सुनवाई हो सके। जेटली ही नहीं हर राजनीतिक आरोपों के मामले में जवाबदेही की व्यवस्था तो होनी ही चाहिए।
वैसी व्यवस्था न होने के कारण भी प्राइम टाइमीय बहसों का जन्म हुआ होगा। सवाल सिम्पल है। जब मानहानि के लिए तैयार हैं तो जांच की घोषणा ही कर देते। प्राइम टाइम
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This Article is From Dec 21, 2015
प्राइम टाइम इंट्रो : मानहानि का केस किया, जांच क्यों नहीं कराई?
Written by Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:दिसंबर 23, 2015 13:25 pm IST
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Published On दिसंबर 21, 2015 21:14 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 23, 2015 13:25 pm IST
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