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This Article is From Dec 01, 2015

प्राइम टाइम इंट्रो : जलवायु परिवर्तन की चिंता

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 23, 2015 14:09 pm IST
    • Published On दिसंबर 01, 2015 21:35 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 23, 2015 14:09 pm IST
जलवायु को लेकर हम कुछ करें न करें, लेकिन जब भी कोई नई कॉलोनी काटते हैं एक जलवायु विहार ज़रूर बनाते हैं। गूगल में आप जलवायु विहार टाइप करेंगे तो लखनऊ, भोपाल, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, फरीदाबाद, गुड़गांव में एक न एक जलवायु विहार मिल ही जाएगा। पर इसका मतलब यह नहीं कि हम जलवायु को लेकर बेहद गंभीर लोग हैं। जब तक हम पंजाब और नियामकगिरी से उठने वाले सवालों को विकास विरोधी मानकर दिल्ली जैसे महानगरों में खुद को महफूज़ समझते हैं तब तक तो कोई बात नहीं, लेकिन जैसे ही पता चलता है कि दिल्ली की हवा सांस लेने लायक नहीं रही और हमारे फेफेड़ ख़राब हो रहे हैं तब भी हम यही समझते हैं कि पर्यावरण के सवाल का संबंध हमसे नहीं शायद पर्यावरण मंत्री या प्रधानमंत्री से ही जुड़ा हुआ है।

मंगलवार सुबह की दिल्ली की हवा ने ख़राब होने में बीजिंग की प्रदूषित हवा को पीछे छोड़ दिया है। बीजिंग में मां-बाप ने अपने बच्चों को स्कूल जाने से मना कर दिया, बहुत सारी फैक्ट्रियां बंद कर दी गईं, लेकिन दिल्ली ने ऐसा कुछ नहीं किया। जबकि दिल्ली की हवा बीजिंग से कई ज्यादा गुना ख़राब है। दिल्ली के बच्चे स्कूल गए, जिसे काम पर जाना था वो गया ही। प्रदूषण के कारण हवा में धुंध इतनी गहरा हो गई कि 200 मीटर से ज्यादा दूर की चीज़ें नज़र नहीं आ रही थीं। एयर क्वालिटी इंडैक्स में अगर 400 प्वाइंट पार कर जाए तो हवा ख़तरनाक कही जाने लगती है।

पश्चिमी दिल्ली के पंजाबी बाग की हवा ने टॉप किया है। पूर्व में आनंद विहार की हवा जो कि खराब होने के मामने में कई दिनों से टॉप चल रही थी, आज पंजाबी बाग से हार गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2014 में बताया था कि दुनिया के ऐसे बीस शहरों में जिनकी हवा सबसे प्रदूषित हैं हमारी दिल्ली चोटी पर है। दिल्ली के साथ 12 शहर भी इस टाप 20 में आते हैं। कायदे से पेरिस जैसा सम्मेलन दिल्ली शहर में हो जाना चाहिए था। दो दशक पहले जब दिल्ली की हवा में ज़हर फैला था, तब सीएनजी को लेकर कितना कुछ हुआ था, अब लगता है कि कुछ होता ही नहीं। फिर भी कुछ संगठन कुछ वकील इसे लेकर अपने स्तर पर लड़ाई लड़ रहे हैं।

चीन से लगातार ख़बर आती रहती है कि वहां के शहरों की हवा में प्रदूषण की मात्रा इतनी हो जाती है कि कोहरे जैसी चादर बिछ जाती है। सांस लेना मुश्किल हो जाता है। पिछले चार दिनों से उत्तरी चीन और बीजिंग की हालत बहुत ख़राब है। तमाम दावों के बीच इस पर काबू नहीं पाया जा सका है। स्मार्टफोन पर वायु प्रदूषण की मात्रा नापने के ऐप तो आ गए हैं, मगर प्रदूषण को रोकने का ऐप नहीं आया है। बीजिंग में तो एयर क्वालिटी इंडैक्स 500 तक चला गया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हवा में पीपीएम 2.5 की मात्रा 25 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर होनी चाहिए जो कि 900 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर हो गई है। प्रदूषित हवा की धुंध के कारण 200 एक्सप्रेस वे बंद कर दिए गए। लोगों से कहा गया कि वे घर से न निकलें। जबकि पेरिस में चीन दावा कर रहा है कि उसने प्रदूषण घटाने के लक्ष्य को समय से पहले पूरा कर लिया है। आप जानते ही हैं कि अमेरिका और चीन प्रदूषण में सबसे अधिक योगदान करते हैं। इन्हें प्रदूषण पावर भी कहा जाना चाहिए।

पेरिस में हो रहे जलवायु सम्मेलन तक पहुंचने से पहले पंजाब की बात करनी चाहिए। हैं। इसलिए कि हमारी सार्वजनिक बहस में जलवायु परिवर्तन के सवाल क्यों नहीं आते हैं। जो पेरिस में हो रहा है वो राष्ट्रीय स्तर में दिल्ली में क्यों नहीं हो सकता। जहां सभी राज्य अपनी-अपनी रिपोर्ट पेश करते, उन राज्यों से पर्यावरण कार्यकर्ता दिल्ली आते और तमाम सरकारों पर नीतिगत बदलाव लाने का दबाव डालते। स्क्रॉल डाट इन एक वेबसाइट है इस पर सुबह-सुबह एम. राजशेखर की एक लंबी रिपोर्ट मिली, जिसका सार बता रहा हूं कि कैसे जलवायु परिवर्तन के कारण पंजाब में राजनीतिक और सामाजिक भूचाल आया हुआ है।

आप जानते ही है कि पंजाब में कपास के किसान काफी परेशान हैं। पिछले एक-दो महीने में कपास की बर्बादी के कारण मुआवज़े की मांग को लेकर किसानों ने कई जगहों पर आंदोलन भी किया है। लेकिन हम सबने इसे रुटीन का प्रदर्शन समझ कर नज़रअंदाज़ कर दिया। राजशेखर की रिपोर्ट के अनुसार पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के एक वैज्ञानिक ने इस साल कुछ ऐसा नोटिस किया जो पिछले 15 साल में नहीं कर पाए। मार्च-अप्रैल और जून में बारिश के कारण तापमान गिर गया। होना चाहिए था 47 डिग्री सेल्सियस, लेकिन 40 या 43 डिग्री सेल्सियस से पार नहीं जा सका।

तापमान कम होने के कारण कपास की फसल में लगने वाले कीड़े को जीवन मिल गया। इन कीड़ों ने फसल को चौपट कर दिया। अक्टूबर आते-आते पंजाब में 15 किसानों ने खुदकुशी कर ली। सितंबर-अक्टूबर में किसान आंदोलन की भरमार हो गई। 70 से अधिक रेलगाड़ियां रोक दी गईं। व्हाईटफ्लाई नाम के कीड़ों को मारने में कीट नाशक भी नाकाम रहे, अफवाह फैली कि नकली है तो सरकार ने किसानों को शांत करने के लिए पंजाब कृषि विभाग के निदेशक और कीटनाशकों के डीलर को गिरफ्तार कर लिया। रिपोर्ट के अनुसार पंजाब में पिछले पंद्रह साल में बारिश का पैटर्न बदल गया है। पंजाब में मानसून के समय बारिश होती है, लेकिन जून से सितंबर के बीच बारिश औसत से 25 फीसदी घट गई है। यह भी देखा गया है कि बारिश एक खास समय में ही हो जाती है। कुछ ज़िलों में तो सामान्य बारिश भी नहीं होती। राज्य के उद्योग धंधों वाले इलाके से एमिशन के कारण हवा में नमी की मात्रा कम होती जा रही है। इसका कारण यह भी हो रहा है कि मज़दूरों को मिलने वाले काम में भी कमी आती जा रही है।

क्या हम पंजाब के इस संकट पर बात कर रहे हैं। कुछ लोग तो कर ही रहे होंगे। जो बात नहीं कर पा रहे हैं वो कम से कम जलवायु परिवर्तन के बदलाव का असर तो झेल ही रहे होंगे। हम जलवायु विहार तो बसा लेते हैं मगर जलवायु के सवालों से बच निकलते हैं। दुनिया की राजनीति जलवायु को लेकर घूम रही है। तभी तो पेरिस में पहली बार एक बार में 155 देशों के प्रमुख जमा हो गए और सबने अपनी-अपनी तरफ से जलवायु परिवर्तन के सवाल को संबोधित किया।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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