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This Article is From Aug 19, 2015

प्रणय कोटस्थाने : पारम्परिक सुरक्षा नीति को नेटवर्क-समाजों से पुरज़ोर चुनौती

Pranay Kotasthane
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मार्च 22, 2018 15:32 pm IST
    • Published On अगस्त 19, 2015 15:21 pm IST
    • Last Updated On मार्च 22, 2018 15:32 pm IST
(प्रणय कोटस्थाने तक्षशिला इंस्टीट्यूट - बेंगलुरू के पब्लिक पॉलिसी थिंक-टैंक में रिसर्च फेलो हैं...)

इस 1 अगस्त को ट्विटर पर कोलकाता में दंगे की तेज़तर्रार अफवाहों ने पुलिस और राजकीय प्रशासन को क्लीन बोल्ड कर दिया। हुआ यह था कि रेलवे पुलिस ने 1 अगस्त को मदरसों के कुछ छात्रों को सियालदाह स्टेशन से पकड़कर बारासात के एक युवा कल्याण होम भेज दिया। अगले दिन सियालदाह के स्थानीय नागरिकों ने पुलिस के खिलाफ प्रदर्शन किया और कोलकाता का एक मुख्य मार्ग रोक दिया। जवाब में पुलिस ने बड़ी संख्या में तैनाती की। कुछ तनावपूर्ण घंटों के उपरांत रात तक भीड़ गायब हो गई।

लेकिन ट्विटर पर रात को कुछ और ही ड्रामा चल रहा था। लोगों ने अफवाह फैलाना शुरू कर दिया कि कोलकाता के मुस्लिम-बहुल इलाकों में आतंक फैल चुका है। कई सौ ट्वीट और हज़ारों री-ट्वीट के बाद इस अफवाह ने सांप्रदायिक रंग ले लिया, लेकिन किसी वजह से यह कारस्तानी सफल नहीं हुई और मंगलवार तक जनस्थिति सामान्य हो गई।

अब एक दूसरा उदाहरण देखें - बेंगलुरू में 29 दिसंबर को चर्च स्ट्रीट नामक एक लोकप्रिय स्पॉट पर एक विस्फोट हुआ, जिसमें एक महिला की जान चली गई। ट्विटर पर यह ख़बर कुछ ऐसे फैली...

पहला ट्वीट : चर्च स्ट्रीट पर ब्लास्ट...
दूसरा ट्वीट : चर्च के नज़दीक ब्लास्ट...
तीसरा ट्वीट : बैंगलोर के एक चर्च में ब्लास्ट...


उपर्लिखित दोनों घटनाओं के आधार पर कोई भी समझदार व्यक्ति इस तरह के विषैले प्रचार के नतीजे का अनुमान लगा सकता है। इस तरह की अफवाहें न सिर्फ कही-सुनी के आधार पर होती है, बल्कि एक सिस्टमैटिक अंदाज़ से दोहराई जा सकती है। हो सकता है, भारत के कट्टर विरोधी राष्ट्रों की इंटेलिजेंस एजेंसियों का एक विभाग इस तरह के ऑनलाइन प्रचार के लिए तैयार किया जा रहा हो। अतः यह अनिवार्य है कि हम इंटरनेट में इन्फॉर्मेशन के संचालन को बेहतर रूप से समझें। इस प्रकार के विश्लेषण के आधार पर सरकारें इंटरनेट से आने वाले खतरों का सटीक जवाब दे पाएंगी।

मूलतः उपर्लिखित दोनों प्रसंग पारम्परिक सरकार की संरचना और एक नेटवर्क-समाज के बीच के संघर्ष का परिचायक है। आज का समाज एक नेटवर्क-समाज हैं। ऐसे समाज में इंसान एक-दूसरे से नेटवर्क के जरिये बड़ी तेज़ी से पारम्परिक दूरियों को लांघ सकते हैं। साथ ही, नेटवर्क-समाज का हर सदस्य न सिर्फ ख़बरों का उपभोग करता है, बल्कि वह ख़बरों का रचयिता भी है। इंटरनेट का यह श्रेणीविहीन व्यक्तित्व ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है, जिसकी वजह से हमारा जीवन मूलभूत रूप से तब्दील हो चुका है।

दूसरी और सरकारें आज भी श्रेणीबद्ध हैं। इस संरचना के चलते इन्फॉर्मेशन का प्रवाह सरकारों में नीचे से ऊपर की ओर होता है, जबकि नतीजे ऊपर से नीचे की ओर प्रवाह करते हैं। यह क्रमबद्ध प्रवाह का स्वभाव धीमा होता है। अतः नेटवर्क-समाज की जुटाव (mobilisation) की गति सरकारों की प्रतिक्रिया की गति से कई गुना अधिक है। तो सवाल यह है कि सरकारों के पास क्या विकल्प हैं...?

एक विकल्प है, नेटवर्क को बहुत बारीकी से नियंत्रित करना। जब भी अफवाह फैलने लगे तो इन्फॉर्मेशन प्रवाहों को ब्लॉक कर देना। यह मॉडल चीन में कई परिवेशों में आज़माया जा चुका है, लेकिन नेटवर्क के फैलाव और लगातार बढ़ते स्त्रोतों को मद्देनज़र रखते हुए यह विकल्प असरहीन हो रहा है। साथ ही, भारत जैसे गणतंत्र को अपने देशवासियों पर जासूसी करना हमारे गणतांत्रिक संविधान का उल्लंघन होगा।

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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