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This Article is From Jul 10, 2018

नाराज़ किसानों को मनाने के लिए पीएम मैदान में, बढ़ी एमएसपी का होगा प्रचार

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 10, 2018 19:46 pm IST
    • Published On जुलाई 10, 2018 19:46 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 10, 2018 19:46 pm IST
मोदी सरकार से नाराज़ किसानों को मनाने की ज़िम्मेदारी अब खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संभाली है. पीएम मोदी देश के अलग-अलग हिस्सों में किसानों के बीच जाकर उनके लिए सरकार की ओर से उठाए गए कदमों की जानकारी देंगे. इनमें सबसे बड़ा फैसला चार जुलाई को किया गया जिसमें खरीफ की फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य कम से कम पचास फीसदी बढ़ाना है. हालांकि सरकार के दावे और हकीकत के बीच बड़े अंतर को लेकर सवाल भी उठने लगे हैं.

पीएम बुधवार को पंजाब के मुक्तसर के मलोट में किसान रैली करेंगे. यह रैली खरीफ की 14 फसलों की एमएसपी बढ़ाने पर पीएम को धन्यवाद देने के लिए बीजेपी और अकाली दल ने साझा रूप से बुलाई है. इसमें पंजाब के अलावा हरियाणा और राजस्थान के किसान भी शिरकत करेंगे. फिर पीएम यूपी का रुख करेंगे. 14 जुलाई को मुलायम सिंह यादव के इलाके आज़मगढ़ में पूर्वांचल एक्सप्रेस वे का शिलान्यास कर जनसभा करेंगे. इसके बाद रात अपने चुनाव क्षेत्र बनारस रुकेंगे. अगले दिन बनारस में कई परियोजनाओं के उद्घाटन के बाद वे मिर्जापुर में चुनार में गंगा पर बने पुल को देश को समर्पित करेंगे और डेढ़ लाख हेक्टेयर में सिंचाई के लिए बनी बाणसागर परियोजना का लोकार्पण करेंगे. इसके बाद पीएम 16 जुलाई को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर में धान किसानों के बीच सभा करेंगे जहां एमएसपी पर सरकार के बड़े फैसले की जानकारी देंगे.

21 जुलाई को पीएम एक बार फिर यूपी में रहेंगे और शाहजहांपुर में किसानों के बीच अपने मन की बात करेंगे. पीएम 29 को जुलाई को एक बार फिर यूपी में होंगे. इस बार लखनऊ में शहरी विकास मंत्रालय के कार्यक्रम में हिस्सा लेंगे और जनता से संवाद करेंगे. महत्वपूर्ण बात यह है कि पीएम अब लोकसभा चुनाव तक हर महीने कम से कम दो बार यूपी जाएंगे.

यह कहने की जरूरत नहीं है कि मोदी को पीएम बनाने में यूपी की बड़ी भूमिका है. 80 में से 73 सीटें जीतने वाली बीजेपी अब वहां एक के बाद एक तीन लोक सभा उपचुनाव हार गई. एक साल पहले प्रचंड बहुमत के साथ यूपी में सरकार बनाने वाली बीजेपी ने बड़ी उम्मीदों के साथ योगी आदित्यनाथ को सूबे की कमान दी थी. लेकिन फिलहाल तो चुनावी रुझान यही इशारा कर रहे हैं कि योगी का करिश्मा नहीं चल पा रहा. शायद यही वजह है कि पीएम मोदी को खुद मोर्चा संभालने के लिए मैदान में उतरना पड़ रहा है.

अब बात किसानों की नाराजगी की. मोदी सरकार ने ऐन चुनाव से पहले एमएसपी को लेकर वही किया जो मनमोहन सिंह सरकार ने 2013 में किया था. तब धान का एमएसपी 130 रुपए प्रति क्विंटल बढ़ाया गया था. मोदी सरकार को उम्मीद है कि अक्तूबर-नवंबर में जब खरीफ की फसलें बाज़ार में आएगी तब किसानों को मिली बढ़ी कीमतें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के चुनाव में बीजेपी को फायदा पहुंचाएंगी.

लेकिन विपक्षी पार्टियां दावों और हकीकत के बीच बड़ा अंतर बता रही हैं. उनके मुताबिक बीजेपी ने 2014 के चुनाव में किसानों को स्वामीनाथन रिपोर्ट के मुताबिक सी टू पर पचास फीसदी अधिक एमएसपी देने का वादा किया था. लेकिन अभी अगर धान को ही लें तो नया न्यूनतम समर्थन मूल्य 1750 रुपए प्रति क्विंटल है. यह मोदी सरकार के एटू प्लस एफएल फार्मूले के हिसाब से तय किया गया. हालांकि इसमें 200 रुपए प्रति क्विंटल की रिकॉर्ड बढ़ोत्तरी हुई. लेकिन स्वामीनाथन कमेटी रिपोर्ट के मुताबिक सी टू प्लस पचास फीसदी के हिसाब से यह 2340 रुपए प्रति क्विंटल होना चाहिए था. मतलब किसान को 590 रुपए का घाटा है. असली विवाद लागत मूल्य तय करने पर है. किसान की उम्मीद और हकीकत में बड़ा अंतर है. साथ ही इस ऐलान की वास्तविक परख इस पर भी निर्भर रहेगी कि फसलों की खरीद किस हद तक हो पाती है.

दूसरा मुद्दा प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का है. फसलें बर्बाद होने पर किसानों की आत्महत्या रोकने के लिए लाई गई इस योजना को लेकर बड़े-बड़े दावे किए गए. लेकिन इस योजना का जमीनी क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हुआ. जब किसानों की फसलें बर्बाद होती हैं तो कई किसानों को 5-5, 10-10 रुपए का मुआवज़ा इस पूरी योजना का मखौल उड़ाता है. विपक्ष कहता है कि बीमा योजना में असली फायदा सिर्फ बीमा कंपनियों को हुआ है किसानों को नहीं और पैसा सरकार का हाथों से निकल कर बीमा कंपनियों तक पहुंच गया.

उधर, बीजेपी कहती है कि नोटबंदी के बाद उसने गरीबों, पिछड़ों और मजदूरों का नया वोट बैंक तैयार किया है. पार्टी किसानों को भी अपने साथ ही गिनती है. लेकिन अब जबकि चुनाव सिर पर हैं, पार्टी को इन वर्गों की बेचैनी का भी एहसास है. शायद यही वजह है कि खुद पीएम को मैदान में उतरना पड़ रहा है. पर सवाल यही है कि क्या इन दौरों से पीएम किसानों के जख्मों पर मरहम लगा पाएंगे? क्या एमएसपी में बढ़ोत्तरी का बीजेपी का हथकंडा उसे चुनावों में फायदा पहुंचा पाएगा?

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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