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This Article is From Oct 05, 2019

पटना की ऐसी दुर्दशा करने का आखिर कौन है जिम्मेदार? क्या यही हैं वो 6 'खलनायक'

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अक्टूबर 05, 2019 10:21 am IST
    • Published On अक्टूबर 05, 2019 10:12 am IST
    • Last Updated On अक्टूबर 05, 2019 10:21 am IST

पटना शहर में बहुत कुछ विचित्र हो रहा है. शहर में एक हफ़्ते में केंद्र, राज्य और अन्य एजेंन्सी मिलकर भी बारिश के जमा पानी निकाल नहीं पाये हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि न पटना नगर निगम और न पानी निकालने का ज़िम्मा जिस  एजेंसी को दिया गया है उसके पास शहर के नालों का कोई नक़्शा है.  हद तो तब हो गई शहर के रख रखाव और बाहर से पानी की निकासी कैसे हो जिसका ज़िम्मा जिन लोगों के ऊपर था वे ही अब आक्रमक तरीके से दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई हो राग छेड़ दिया है. मतलब आप ठीक समझे जो BJP के नेता हैं ख़ासकर बिहार BJP के नवनियुक्त अध्यक्ष संजय जयसवाल पटना कि मेयर सीता साहू ये अब मांग कर रहे हैं कि दोषियों के ख़िलाफ़ कार्रवाई हो जबकि उन्हें मालूम है कि अधिकांश दोषी कोई और नहीं इनके अपने मंत्री विधायक और मेयर हैं जिन्होंने अपना काम और दायित्व ठीक से नहीं निभाया. 

लेकिन जांच होगी, ज़रूर होगी क्योंकि नेताओं को अपने आप को बचाना हैं तो छोटे अधिकारियों की बलि ज़रूर चढ़ाई जाएगी. लेकिन पटना के लोग ख़ासकर पानी में फंसे लोगों को इस बात में कोई शक नहीं कि वो पानी के कारण नहीं डूबे बल्कि उनको नेताओं, अधिकारियों और टिकेदारो के नेक्सस के कारण परेशानी और आर्थिक नुक़सान और बीमारी का सामना करना पड़ रहा है. पटना के लोगों का दर्द शायद कोई समझ नहीं सकता. लेकिन इस बार में उनके मन में कोई संशय नहीं कि इस जल जमाव का विलेन कौन है. 

1- मुख्यमंत्री नीतीश कुमार :  पटना के लोग डूबे, शहर डूबा तो सबसे बड़ा जिम्मेदार अगर कोई है तो वह हैं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. इन्होंने अर्बन प्लानिंग को अपने चौदह साल के शासनकाल में ताक पर रखा. जब भी लोगों ने अन्य शहरों से पटना की तुलना की नीतीश कुमार ने उसे सिरे से ख़ारिज किया. ऐसा नहीं कि उन्होंने कुछ नहीं किया. इसी पटना में उन्होंने फ़्लाइओवर बनवाये जिसका विरोध भाजपा के नेताओं किया और इस विरोध में सिक्किम के राज्यपाल गंगा प्रसाद भी शामिल थे.लेकिन पटना नगर निगम को भी उन्होंने कभी एक अच्छा आईएएस अधिकारी कुछ सालों के लिए नहीं दिया. राजगीर का बाइपास अगर केंद्र सरकार से मंज़ूरी होने पर उन्हें जितना ख़ुश होते लोगों ने देखा उतना उत्साह पटना शहर की साफ़ सफ़ाई और जल जमाब से निजात दिलानी है, उस पर कभी उनकी चिंता नहीं दिखी. उन्होंने अपने आसपास ऐसे अधिकारियों की टोली जमा की जिन्होंने उन्हें इस मुद्दे पर आगाह करने की भी हिम्मत नहीं जुटायी.  नीतीश कुमार इसका ख़ामियाज़ा ख़ुद उठा रहे हैं. मुंबई की बारिश का उदाहरण देने से नहीं होगा क्योंकि वहां जल निकासी की ठोस व्यवस्था है. नीतीश कुमार ने कभी पटना शहर जो जनसंख्या के भार से दबता जा रहा है, उस पर चिंतन-मनन तो छोड़िए अगर कभी कोई पत्रकार अगर उन्हें शहर को सुधारने की गुज़ारिश कर देता था तो समझ जाइए उनके लिए उससे बड़ विलेन कोई नहीं है. लेकिन आज न केवल पटना बल्कि पूरे देश में अपने शहर की राजधानी के कुछ इलाकों से एक सप्ताह में भी पानी न निकले तो उससे बड़ा शर्मिंदगी किसी मुख्यमंत्री के लिए और दूसरा नहीं हो सकता.

2-उपमुख्य मंत्री सुशील मोदी :  पटना के जल जमाव के पीछे अगर कोई शख्स और जिम्मेदार हैं सुशील मोदी का भी नाम लिस्ट में है. बिहार की राजनीति में दो लोग सुशील मोदी और तेजस्वी यादव ट्विटर के माध्यम से अपनी राजनीतिक दुकान चलाते हैं.  सुशील मोदी जिस तरीक़े से अपने राजेंद्र नगर के घर से निकले वो ना केवल शर्मनाक था उस एक तस्वीर ने उनके राजनीतिक जीवन ख़ासकर सरकार में रहकर उन्होंने क्या किया उसका एक मिशाल है. जो व्यक्ति अपने इलाक़े को जलजमाव से बचा नहीं सकता उस व्यक्ति को क्या किसी की जिन्मेदारी दी जानी चाहिए ये सवाल अब सब पूछ रहे हैं. नगर विकास विभाग के हर बैठक में बॉस बन कर बैठने वाले सुशील मोदी ने इस बार बहुत कुछ खोया है. मीडिया से मुंह छिपाकर भागने वाले उन्हें लगता है कि बात आई- गई हो जाएगी. लेकिन वग चाहे स्मार्ट सिटी हो या नमामि गंगे सब का श्रेय लेने वाले सुशील मोदी ने एक ट्वीट कर लोगों को खेद जताया. उनकी प्रशासनिक पकड़ कितनी हैं उसका नमूना देखने को मिला जिन लोगों के कारण, जिन अधिकारियों की लापरवाही से पटना के लाखों लोग परेशान रहे वो उन्ही के साथ बैठ कर समीक्षा करते रहे और उसके फ़ोटो ट्वीट करते रहे क्योंकि प्रचार और अख़बार में जगह कैसे मिलेगा. 

3-सुरेश शर्मा :  यह बिहार के नगर विकास मंत्री हैं. इनका कारोबार भी है. ज़्यादा समय मुज़फ़्फ़रपुर में देते. जब पटना डूब रहा था तो ये मुज़फ़्फ़रपुर में ही थे. इनकी सक्रियता और गंभीरता का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सुबह से बचाव और राहत कार्य का जायज़ा लेते हैं लेकिन ये बारह बजे से पहले घर से नहीं निकलते.  पटनावासियों के लिए ऐसे नगर विकास मंत्री अभिशाप हैं. लेकिन इनका रोना है कि सुशील मोदी रिमोट कंट्रोल से विभाग चलाते हैं और इनकी कोई सुनता नहीं और आजकल ये भी दोषियों को सज़ा दिलाने की मांग कर रहे हैं.

4-पटना नगर निगम और मेयर सीता साहू : ये भले भाजपा से हैं और मेअर हैं लेकिन शहर में जल निकासी के लिए कितनी मशीन हैं उन्हें नहीं मालूम. इनका बेटा असल मेयर  है. लेकिन इनका सारा ध्यान केवल ख़रीददारी और अपने लोगों को कैसे लाभ पहुंचाया जाए इस पर है. इन्हें आप रबर स्टांप कह सकते हैं.

5- केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद : हालांकि इन्हें सांसद बने मात्र कुछ महीने हुए हैं लेकिन इन्होंने जल जमाव के बीच वाहवाही लूटने के चक्कर में अपनी पार्टी, सरकार को जनता के बीच पानी-पानी कर दिया. सबसे पहले इन्होंने एक बयान दिया कि फ़रक्का के 119 गेट खुलवा दिये गए हैं जिस पर बिहार के जल संसाधन मंत्री संजय झा ने चुटकी ली कि मेरी जानकारी में 109 गेट हैं और उसके बाद 110वाँ गेट कब बना नहीं पता. इसके बाद पानी निकासी हो रही थी और रविशंकर ने बाहर से मशीन से हेलिकॉप्टर तक का क्रेडिट लेने की कसर नहीं छोडी जो फंसे लोगों के लिए जले पर नमक छिड़कने के समान था.  लेकिन भाजपा में प्रचार प्रसार सबसे अधिक महत्व का काम होता हैं तो वो आख़िर इसमें पीछे नहीं दिखना चाहते थे. 

6- बुडको : ये वो संस्था है जिसके ऊपर पटना से जल निकासी के सभी पंपहाउस के रख रखाव का ज़िम्मा है लेकिन जब पटना में मौसम विभाग के पूर्वानुमान के अनुसार तेज़ बारिश शुरू हुई तो अधिकांश पंप हाउस बंद पड़े थे. सबसे शर्मनाक बात यह है कि अधिकांश पंप हाउस को चलाने का ज़िम्मा जिन ठेकेदारों को दिया गया था उन्होंने सही तरीक़े के कर्मचारियों को भी नियुक्त नहीं किया था जब पानी निकासी की बात आयी तो कुछ पंप चले अधिकांश पम्प बंद रहे सबसे शर्मनाक बात तो यह है कि नालों से इंसान हाउस तक पानी भी नहीं पहुंच रहा था. जल जमाव से मुक्ति कैसे मिले प्रधान सचिव स्तर के अधिकारियों को जल जमाव के बीच नालों की सफ़ाई करनी पड़ रही थी. इस अकेली एजेंसी ने पूरे पटना में लाखों लोगों को पानी में क़ैद कर रखा था. नालों का नक़्शा किसी के पास था और ना कुशल कर्मचारी थे. पटना में जो कुछ भी हुआ वह मानव निर्मित घटना थी. इस एजेंसी ने बिहार के मुख्यमंत्री से लेके सरकार में बैठे मंत्रियों अधिकारियों को पानी-पानी कर दिया. कहा जाता है कि चूंकि पटना में पिछले पांच वर्षों से बारिश और जल जमाव नहीं हो रहा था इसके कारण इन संभावनाओं के रख रखाव पर किसी ने न ध्यान दिया और न नगर विकास की समीक्षा के दौरान चीज़ों को इतनी बारीकी से देखने की किसी ने ज़रूरत समझी.

हालांकि एक सच्चाई से न्याय व्यवस्था भी मुंह नहीं मोड़ सकती है. जब से हाईकोर्ट ने मॉनिटरिंग बंद कर दी तो सभी एजेंसियां हाथ पर हाथ धरकर बैठ गईं. जिसके कारण पटना के लाखों लोगों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा दूसरी बात यह थी कि शहर में जब भी अतिक्रमण या नालों के निर्माण करने वाली एजेंसियां शिथिल या घटिया काम किया तो हाईकोर्ट से उन्हें सजा नहीं मिली उसका एक बड़ा कारण राज्य सरकार द्वारा इन मामलों की कोर्ट के सामने सही तरीक़े से स्थिति की बयां करने में विफलता रही है. लोगों का मानना हैं कि  पटना हाईकोर्ट ही लोगों को निक्कमे अधिकारियों और अहंकारी राजनेताओं से मुक्ति दिला सकता हैं और उसे एक बार फिर सक्रिय भूमिका में आना होगा.

मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.


 

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