विज्ञापन
This Article is From Aug 30, 2017

पंचकूला में हिंसा और बदहवासी के वे 30 मिनट...

Mukesh Singh Sengar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 30, 2017 13:32 pm IST
    • Published On अगस्त 30, 2017 13:32 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 30, 2017 13:32 pm IST
वो 25 अगस्त की दोपहर करीब पौने तीन बजे का वक्त था. पंचकूला के बिस्टा विला चौक पर सैकड़ों पत्रकार जमा थे. हर कोई बैचेन था, क्योंकि इस चौक से करीब 500 मीटर की दूरी पर विशेष सीबीआई कोर्ट से एक बहुत बड़ी खबर आने वाली थी. तभी इस चौक से करीब 500 मीटर की दूरी पर हैफेड चौक के पास बैठे गुरमीत राम रहीम के हजारों समर्थकों का शोर सुनाई दिया. पता चला कि वे अपनी खुशी का इजहार कर रहे हैं क्योंकि बाबा बरी हो गया है. लेकिन जब हम लोगों ने पता किया तो जानकारी मिली कि अभी कोर्ट ने कोई फैसला नहीं दिया है. दरसअल यह खबर फैलाना रणनीति का एक हिस्सा था क्योंकि इसी बीच बाबा को हेलीकॉप्टर से रोहतक जेल विदा करना था. हालांकि बाबा कोर्ट ने नहीं निकल पाया उसके पहले ही सभी पत्रकार साथियों के फोन घनघनाने लगे. सभी कन्विक्ट.. कन्विक्ट कहकर चिल्लाने लगे. मतलब गुरमीत राम रहीम को कोर्ट ने दोषी करार दे दिया था. खबर आते ही मेरा फोनो शुरू हो गया. मैं कोर्ट के फैसले के बारे में मुश्किल से पांच मिनट ही ऑन एयर गया था कि जिमखाना क्लब बाग की ओर से आंसू गैस के गोले धांय-धांय बोलने लगे. मुझे पलक झपकते यह समझने में देर नहीं लगी कि हिंसा शुरू हो चुकी है.

मुझे जैसे ही फोनो की बीच में एक मिनट का गैप मिला, मैंने अपने सहयोगी शरद को फोन किया और पूछा कि हैफेड चौक,  जो मुझसे 500 मीटर की दूरी पर था, वहां क्या हालात हैं. शरद ने बताया कि अभी लोग शांत हैं लेकिन धीरे-धीरे माहौल बिगड़ रहा है. मैं अपने सहयोगी कैमरामैन संजय कौशिक के साथ फोनो करते-करते हेफेड चौक की तरफ बढ़ने लगा. वहां पहुंचकर देखा कि हेफेड चौक जंग मैदान बन चुका है. चौक से कोर्ट आने वाले रास्ते पर पुलिस और अर्धसैनिक बल खड़े हैं जबकि दूसरी ओर हजारों की संख्या में बाबा के समर्थक शोर मचा रहे हैं. मैं सुरक्षाबलों के पीछे खड़ा हो गया और कवरेज करने लगा. देखते ही देखते बाबा समर्थकों ने अपने बीच खड़े मीडिया वाहनों में तोड़फोड़ शुरू कर दी. कई मीडिया कर्मियों को पीटा. एनडीटीवी के ओबी इंजीनियर हरि कुमार को बुरी तरह पीटा और फिर कई लाइव ओबी वैनों में आग लगा दी. तब तक पुलिस और अर्धसैनिक बल पर खामोश ही खड़े थे.

इसी बीच लोग कोर्ट वाले रास्ते पर आगे बढ़ने लगे जहां अधिकतर मीडिया कर्मी सुरक्षाबलों के पीछे खड़े थे. तब पुलिस ने वाटर कैनन और आंसू गैस के गोलों का इस्तेमाल शुरू किया, लेकिन हजारों लोगों की भीड़ पर इसका कोई असर नहीं हुआ. भीड़ एकदम से हिंसा फैलाती हुई कोर्ट की तरफ भागने लगी. देखते ही देखते पुलिस और अर्धसैनिक बलों के जवानों में भगदड़ मच गई. हम लोग भी पीछे की तरफ भागे. आसपास सरकारी दफ्तर थे. लोग जान बचाने के लिए उन दफ्तरों में कूदने लगे. हालांकि दफ्तर उस दिन पहले से बंद थे और दफ्तरों के गार्ड पहले से ही गेट बंद कर छतों पर चढ़े थे. मैं भी हेफेड की इमारत का गेट कूदकर अंदर दाखिल हो गया. मेरे साथ कई मीडियाकर्मी और जान बचाते आ रहे पुलिसकर्मी भी थे. मेरे कैमरामैन संजय कौशिक शायद और आगे निकल गए थे. हेफेड की इमारत में घुसने पर देखा कि इमारत के दूसरी तरफ भी बाबा के समर्थक उत्पात मचा रहे हैं. छत पर खड़े इमारत के गार्डों ने नीचे सभी दरवाजे बंद कर रखे थे, इसलिए हम लोग ऊपर भी नहीं जा पा रहे थे. जो पुलिसकर्मी साथ भाग कर आए थे वे अपनी शर्ट उतारकर एक गेट का शीशा तोड़ने लगे. शीशा तो टूट गया लेकिन आगे फिर दीवार थी इसलिए छिपने की बहुत ज्यादा जगह नहीं थी. उस छोटी सी जगह में ही दोनों पुलिसकर्मी एक-दूसरे से चिपककर खड़े हो गए.

इसी बीच मेरे कैमरामैन संजय का फोन आया कि आप कहां हैं? मैंने बताया कि हेफेड की इमारत में नीचे खड़ा हूं. संजय मेरे पास आने के लिए इमारत के गेट पर पहुंचे ही थे कि छत पर खड़े इमारत के गार्ड ऊपर से पत्थर फेंकने की बात करने लगे क्योंकि वे नीचे खड़े सभी लोगों को निकालना चाह रहे थे. उन्हें लग रहा था कि ये रहेंगे तो उपद्रवी यहां भी आ जाएंगे. आखिरकार मुझे भी उस इमारत से निकलना पड़ा. लेकिन जैसे ही गेट कूदकर बाहर संजय के पास आया एक बार फिर भीड़ आती हुई दिखाई दी. सुरक्षकर्मी फिर जान बचाते भाग रहे थे. मैं अपने कैमरामैन के साथ कोर्ट की तरफ भागा और आगे जाकर दाहिनी तरफ एक गली में घुस गया. यह रिहायशी इलाका था, दोनों तरफ कोठियां बनी थीं. यहां भी कुछ जवान गलियों में भाग रहे थे.

खतरे को देखते हुए मैंने एक-दो घरों में अंदर जाने की कोशिश की लेकिन सभी ने अपने घर पहले से ही लॉक कर रखे थे. लोग काफी डरे हुए थे इसलिए किसी ने हमें अंदर बुलाने का रिस्क नहीं लिया. थोड़ा सा और आगे बढ़ा तो दो लोग एक कोठी के गेट पर खड़े थे. उनसे रिक्वेस्ट किया तो उन्होंने गेट के ऊपर से कूदकर अंदर आने की अनुमति दे दी. मैं फोनो करते हुए सीधा उनकी छत पर गया. आपाधापी में छत में मेरे साथ खड़े घर के लोगों से ज्यादा बात नहीं हो पा रही थी लेकिन एक अधेड़ उम्र के आदमी ने बताया कि वह सेना से रिटायर्ड कैप्टन देवेंद्र शर्मा हैं और यह घर उन्हीं का है. मेरा फोनो लगातार चल रहा था और बीच बीच मैं उनसे बात भी कर रहा था. वे हमारे लिए चाय, जूस, नाश्ता और दूध मंगाते जा रहे थे. उन्होंने यह भी कहा कि खाना एकदम रेडी है आप लोग खा लीजिए. उस समय दोपहर के साढ़े तीन या पौने चार बज रहे होंगे. मैं उनका आदर-सम्मान देखकर हैरान था. मैंने कहा सर न तो हमें भूख है और न ही ऐसे माहौल में खाना खा सकते हैं. आसमान में काले धुंए का गुबार था और लगातार गोलियों की आवाजें आ रही थीं. चूंकि मैं फोनो कर रहा था जिससे आवाज हो रही थी इसलिए कैप्टन के घर में मौजूद एक महिला बार-बार हमसे कह रही थी कि आप अंदर आकर फोनो कीजिए. पड़ोसी भी डर रहे हैं. इसी बीच कैप्टन ने कहा कि डरने की जरूरत नहीं घर में हथियार हैं. मैंने भी उस महिला से कहा कि कुछ नहीं होगा, वैसे भी हम पांच मिनट में निकल जाएंगे.

इसी बीच मेरे एक दूसरे कैमरामैन का फोन आ गया कि हमारा एक ड्राइवर पार्क में अकेले पड़ा है और उसका पैर टूट गया है. उसे उठाने वाला कोई नही है. मुश्किल से 10-15 मिनट में हम घर से बाहर आ गए. जाते-जाते मैं कैप्टेन का नंबर तो नहीं ले सका लेकिन उनके साथ एक सेल्फी जरूर ली और शुक्रिया कहा.

बाहर निकलकर देखा कि सड़क और दर्जनों गाड़ियां धूं-धूं कर जल रही हैं. कई दफ्तर और दुकानें तोड़ दी गई हैं. कई मीडियाकर्मी और पुलिसकर्मी खून से लथपथ हैं. मैंने अपने टैक्सी ड्राइवर को फोन किया तो पता चला कि किसी तरह अपनी कार को बचाते हुए वह चंडीगढ़ चला गया है और दिल्ली से आए दूसरे घायल ड्राइवर और अन्य स्टाफ को टूटी गाड़ी में मेरे एक सहयोगी अस्पताल के लिए ले रहे हैं. वहां 10-15 मिनट कवरेज करने के बाद मैं किसी तरह एक दूसरे मीडियाकर्मी की गाड़ी से अपने होटल पहुंचा.

मोबाइल इंटरनेट बंद होने से पता भी नहीं चल रहा था कि शहर में बाकी जगहों पर क्या चल रहा है.  होटल में जब वाई फाई के दायरे में आया तो पता चला कि पंचकुला में 25 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं. होटल की छत से देख पा रहा था कि किस तरह से बाबा के समर्थकों को पार्कों के अंदर से निकालकर पीटा जा रहा है. यह सिलसिला रात भर चलता रहा. रात में पंचकुला सेना के हवाले था और सुबह होते-होते शहर बाबा के समर्थकों से आजाद था. लेकिन हिंसा की भयावह तस्वीरें हर जगह दिखाई दे रहीं थीं. यूं तो ऐसे मौकों पर एक पत्रकार का काम जोखिम भरा ही होता है लेकिन मुश्किल हालात में कोई मदद कर दे तो ये इंसानियत की सबसे  बड़ी मिसाल होती है.

शुक्रिया मेरे सभी मीडिया के साथियों का, जो जान जोखिम में डालकर आप तक हर खबर पहुंचाते हैं और हर हालात में एक-दूसरे की मदद को तैयार रहते हैं. ...और अंत में, थैंक यू कैप्टन देवेंद्र शर्मा!


मुकेश सिंह सेंगर NDTV इंडिया में रिपोर्टर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com