आठ नवंबर के बाद आठ दिसंबर आ गया. बीते एक महीने में सरकार मजबूती से अपने जवाब पर कायम है कि यह फैसला 70 साल से जो चला आ रहा था उसे मिटाकर नए तरीके से चलने की बुनियाद रखने वाला है. नार्मल के बाद न्यू नार्मल आ गया है. 20 दिन बाद इस न्यू नार्मल का आगाज़ होगा फिलहाल जो चल रहा है क्या वह भी न्यू नार्मल है. उद्योग जगत उत्पादन और मांग में गिरावट की बात कर रहा है. नौकरियों पर संकट है. क्या यह भी न्यू नार्मल है. यह संकट कब न्यू नार्मल होगा. बैंकों के आगे खड़ी लाइनों और पीड़ा को दिखाने को लेकर एतराज को छोड़ दिया जाए तो तरक्की की खबरें एक महीने में मोबाइल वॉलेट कंपनियों के ग्रोथ की ही रहीं.
वित्त मंत्री का कहना है कि प्रधानमंत्री अन्य प्रधानमंत्रियों की तरह आसान रास्ता चुन सकते थे, मगर उन्होंने मुश्किल रास्ता चुना. इस संक्रमण काल में जो पीड़ा हुई है उसे लेकर अफसोस है लेकिन यह कदम साफ सुथरी अर्थव्यवस्था और बेहतर जीडीपी की तरफ ले जाएगा. इससे बैंकों को पास कर्ज देने के लिए अधिक फंड होंगे. आतंकवाद से लड़ने की बात की जगह अब कैशलेस, लेस कैश और बैंकों के पास फंड की बातों ने ले ली है. मगर बैंकों के पास फंड तो है लेकिन एक महीने बाद भी बैंकों के आगे कतारों में लगे लोग पूछ रहे हैं कि उनका फंड कहां हैं. कतारों तस्वीरें नोटबंदी की प्रतीक तस्वीर बनी हुई हैं. नोटों की सप्लाई का दावा है लेकिन जगह-जगह एटीएम बंद पड़े हैं. भारतीय रिज़र्व बैंक ने बताया है कि 10 नवंबर से 5 दिसंबर के बीच अभी तक 3 लाख 81 हजार करोड़ मूल्य के नए नोटों की सप्लाई की जा चुकी है. आठ नवंबर की नोटबंदी के रोज साढ़े 15 लाख करोड़ मूल्य की करेंसी चलन में थी. भारतीय रिजर्व बैंक का कहना है कि पिछले तीन साल में जितने नोटों की सप्लाई हुई है उससे ज्यादा तीस दिन से कम समय में की गई है. इस रफ्तार से भी औसत निकालें तो सरकार को पुराने नोटों के बदले नए नोट उतारने में चार से पांच महीने लग सकते हैं.
मीडिया रिपोर्ट में एटीएम मशीन से संबंधित एक कंपनी ने दावा किया गया है कि 95 प्रतिशत एटीएम मशीन को 500 और 2000 रुपये के नए नोटों के वितरण के योग्य बना दिया गया है फिर भी 35 फीसदी एटीएम में ही कैश है.ज्यादातर जगहों पर बैंकों ने स्थानीय पुलिस की मदद से व्यवस्था बनाए रखी फिर भी लाइन में लगने से स्वास्थ्य समस्याओं के उभर आने से मरने वालों की खबरें भी आती ही रहीं. लाइन में ही बच्चा पैदा होने की खबर भी आई. इसको लेकर एक पक्ष कह रहा है कि सब फैसले के समर्थन में है तो दूसरा पक्ष कह रहा है कि लोग काफी परेशान हैं. उनका पैसा उन्हीं को नहीं मिल रहा है.
लुधियाना में बेटी की शादी के लिए बैंक से पैसा निकलवाने गई महिला का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. सिंगार सिनेमा रोड स्थित पंजाब नेशनल बैंक की चंडीगढ़ शाखा के बाहर सुबह 6 बजे से ही लोग लाइन में लग गए थे. 48 साल की आशा रानी अपनी बेटी की शादी के लिए पैसा निकालना चाहती थीं. मृतक महिला के परिजनों ने सुरक्षा गार्ड पर धक्का मुक्की का आरोप लगाया है. नाराज लोगों ने बैंक के बाहर शव रखकर प्रदर्शन किया. लोगों ने सरकार से मुआवजे और इंसाफ की मांग की है.
कर्नाटक के बागलकोट जिले के एक बैंक के एटीएम के बाहर बुधवार को सिपाही ने रिटायर्ड फौजी 55 साल के नंदप्पा को धक्का दिया और मारपीट की. रिटायर्ड फौजी कैश लेने के लिए एटीएम के बाहर खड़े थे. जब वे अंदर जाने लगे तो सिपाही भड़क गया और उनके साथ बदसलूकी की. आरोपी सिपाही को सस्पेंड कर दिया गया है.
वैसे आमतौर पर बैंकों के आगे लोगों ने व्यवस्था बनाए रखी. पुलिस ने भी काफी मुश्किलों का सामना किया होगा. नोटबंदी को लेकर यह आरोप लग रहा था कि सरकार ने बिना तैयारी के यह फैसला ले लिया, कई लोग कह रहे थे कि फैसला ठीक था मगर लागू करने की तैयारी नहीं थी लेकिन बुधवार को भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा कि नोटबंदी का फैसला जल्दीबाजी में नहीं लिया गया था बल्कि विस्तार से हर पहलू पर विचार विमर्श के बाद लिया गया था. इस बीच सरकार कैशलेस सिस्टम को लेकर काफी सक्रिय हो गई है. लोग भी अपनी तरफ से सक्रिय हो गए हैं.
महानगरों से लेकर कस्बों तक में लोगों ने मोबाइल वॉलेट डाउनलोड किया है. इनकी मांग में काफी तेजी आई है. स्टेट बैंक आफ इंडिया को ही हर दिन 50,000 स्वाइप मशीन का आर्डर आ रहा है. मांग अधिक है और अब आपूर्ति की शिकायत है. बुधवार के इकोनोमिक टाइम्स में खबर छपी थी कि 8 नवंबर के पहले स्वाइप मशीन से हर दिन तीन लाख लेन-देन होता था, अब 15 लाख हो गया है. स्वाइप की संख्या तो बढ़ गई है मगर प्रति स्वाइप लेन-देन का औसत मूल्य काफी गिर गया है. पहले जब कम लोग डेबिट कार्ड का इस्तमाल करते थे तो प्रति लेन-देन 2700 रुपये खर्च करते थे. अब लोग प्रति स्वाइप 2000 की ही खरीदारी कर रहे हैं. अगर यह आंकड़ा सही है तो लोग कार्ड का इस्तमाल तो कर रहे हैं लेकिन खर्च नहीं कर रहे हैं. क्रेडिट कार्ड और डेबिट कार्ड से खर्च की भी सीमा होती है. उपभोक्ता की आर्थिक हैसियत से वह सीमा तय होती है.
वित्त मंत्री के ही शब्द हैं कि कैश के साथ-साथ डील करना इसका एक इकोनोमिक कास्ट भी है इसलिए सरकार और बैंक प्रयास करते हैं कि डिजिटल करेंसी का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल किया जाए. डिजिटल करेंसी मतलब डेबिट कार्ड क्रेडिट कार्ड. वित्त मंत्री ने कहा है कि कार्ड, ई-वॉलेट से पेट्रोल और डीजल खरीदने पर 0.75 प्रतिशत का डिस्काउंट मिलेगा. सरकार 10000 की आबादी वाले हर गांव को दो प्वाइंट आफ सेल मशीन मुफ्त देगी. इससे 75 करोड़ लोग इस मशीन के दायरे में आ जाएंगे. एक जनवरी से उपनगरों के रेलयात्रियों को डिजिटल माध्यम से टिकट खरीदने पर 0.5 प्रतिशत की छूट मिलेगी. आनलाइन टिकट खरीदने वाले रेल यात्रियों को 10 लाख का बीमा मिलेगा. आन लाइन रेल टिकट खरीदने पर केटरिंग और रेलवे रिटायरिंग रूम के किराये में 5 प्रतिशत की छूट मिलेगी. अगर कार्ड से 2000 की खरीदारी करेंगे तो कोई सेवा शुल्क नहीं लगेगा. आनलाइन के जरिए सार्वजनिक क्षेत्र की बीमा कंपनियों का प्रीमियम देने वालों को 8 से 10 प्रतिशत की छूट मिलेगी. टोल प्लाज़ा पर डिजिटल पेमेंट करने वालों को 10 प्रतिशत की छूट मिलेगी.
इन रियायतों के बगैर ही डिजिटल भुगतान के माध्यमों में उछाल की खबरें आ रही थीं. फिर सरकार ने कहीं मामूली तो कहीं 10 प्रतिशत तक की छूट क्यों दी है. होटल सेक्टर भी स्वाइप मशीन को लेकर चिंतित हैं कि अपनी कमाई से दो प्रतिशत क्यों दें. क्या सरकार उन्हें भी छूट देगी. यह भी साफ नहीं है कि यह छूट कब तक के लिए है. कुछ दिनों के लिए है या स्थाई रूप से. वित्त मंत्री ने कहा कि आप रोज 1800 रुपये का पेट्रोल डीजल खरीदते हैं. नोटबंदी के बाद 360 करोड़ की खरीदारी डिजिटल माध्यम से हो रही है. अगर यही खरीदारी 540 करोड़ की रोज़ होने लगे तो एक साल में पेट्रोल डीजल की खरीदारी में ही दो लाख करोड़ कैश की मांग घट जाएगी.
हम नहीं जानते कि बाकी सेक्टर में कितने सौ करोड़ का लेन-देन डिजिटल हुआ है और उसके आधार पर साल में कितने लाख करोड़ कैश की कमी आ जाएगी. हमें देखना होगा कि डिजिटल पेमेंट में जो वृद्धि हुई है, वह किस सेक्टर में हुई है. मतलब अगर 100 नए लोगों ने कार्ड का इस्तेमाल किया है तो इनमें से ज्यादातर पेट्रोल भरा रहे हैं या और भी चीजें खरीद रहे हैं. लघु से लेकर मध्यम और बड़े उद्योगों को जो इस दौरान घाटा हुआ है, वह किस खाते में हिसाब दिखाया जाएगा, उसकी भरपाई यह तमाम सेक्टर कैसे करेंगे. हम यह भी समझने का प्रयास करें कि नोटबंदी के रोज अगर साढ़े 15 लाख के आसपास करेंसी चलन में थी, अगर इनमें से अब तक साढ़े ग्यारह लाख करोड़ मूल्य की करेंसी बैंकों में आ गई है तो इसके क्या मायने हैं. अगर सारा पैसा बैंकों में आ गया तो क्यों माना जा रहा है कि सरकार का अभियान सफल नहीं होगा. क्या हमें यह भी मानना होगा कि बैंकों में जो पैसा आया वह सफेद ही था. सरकार कहती है कि खातों की सख्ती से जांच होगी. कुछ खातों की तो हो रही है लेकिन क्या आयकर विभागों में इतने कर्मचारी हैं जो इन करोड़ों खातों की जांच कर सकेंगे. कितने दिनों में कर लेंगे. दूसरा सवाल है कि वित्त मंत्री दो लाख करोड़ कैश के चलन को कम करके क्या हासिल करना चाहते हैं, साढ़े 15 लाख करोड़ की करेंसी में से अगर दो लाख करोड़ की करेंसी डिजिटल हो जाए तो सरकार का कौन सा मकसद पूरा होता है.
मीडिया कैशलेस लिख रहा है लेकिन ध्यान रखिएगा सरकार लेस कैश की बात कर रही है. बाद में मत कहिएगा कि सरकार ने कैशलेस कहा था. हम या आप एक आंकड़ा और देख सकते हैं कि 8 नवंबर से पहले जो डिजिटल भुगतान हो रहा था वह कितने लाख करोड़ का था. उससे कैश की जरूरत में कितनी कमी आ रही थी. यह सब सवाल हैं.
This Article is From Dec 08, 2016
प्राइम टाइम इंट्रो : नोटबंदी के एक माह में तरक्की सिर्फ मोबाइल वॉलेट कंपनियों की...
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:दिसंबर 08, 2016 21:53 pm IST
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Published On दिसंबर 08, 2016 21:41 pm IST
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Last Updated On दिसंबर 08, 2016 21:53 pm IST
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