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This Article is From Jan 14, 2015

निधि का नोट : दिल्ली चुनाव में भूमि अधिग्रहण कानून मुद्दा है?

Nidhi Kulpati, Rajeev Mishra
  • Blogs,
  • Updated:
    जनवरी 14, 2015 19:36 pm IST
    • Published On जनवरी 14, 2015 18:53 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 14, 2015 19:36 pm IST

दिल्ली में लोग वोट डालने अब 7 फरवरी को अपने घरों से निकलेंगे। उनके ज़हन में क्या मसले, क्या मुद्दे होंगे, बड़ी खबर में हम समझने निकले दिल्ली के दंगल को। पहला मु‌द्दा उठाया भूमि अधिग्रहण कानून का जिसे सरकार ने अध्यादेश के जरिये जनता के सामने लाकर रख दिया है। तो क्या ये मुद्दा दिल्ली के चुनावों पर असर डालेगा हमने जानने की कोशिश की।

देश की राजधानी दिल्ली में 360 गांव हैं। विधानसभा की 70 सीटों में से 24 ग्रामीण सीटें मानी जाती है और इनमें से भी आठ सीटों में 70 प्रतिशत इलाकों में खेती होती है, जैसे कि नरेला, बवाना, मुन्डका, नजफगढ़, विकासपुरी, मटियाला, नांगलोई और बुराड़ी।

जब हम रोहिणी से आगे खनंजावला कराला गांव पंहुचे तो वहां पर 2008 से प्रदर्शन कर रहे जन संघर्ष वाहिनी के तहत नए कानून का विरोध देखा। वे सरकार पर अपनी ज़मीन को जबरन हड़पने का आरोप लगाने लगे। कुछ समय पहले तक यूपीए के अधिग्रहण कानून की खामियां अब इस नए कानून के सामने फीकी पड़ती दिखी।

आज पूर्व ग्रामीण विकास मंत्री और कांग्रेस नेता जयराम रमेश, भट्टा परसौल में एनडीए के अधिग्रहण कानून के विरोध में प्रदर्शन करने पहुंचे थे, लेकिन असलियत यह है कि दिल्ली के इन ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस का सक्रिय होना बाकी है।

शायद प्रचार के शुरुआती दिन हैं, आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को पूरी तरह से अपना रही है और इसके द्वारा एनडीए सरकार पर किसानों के शोषण का आरोप लगा रही है।

बीजेपी कह रही है कि ये समाज के विकास की राह में युवाओं के लिए ज्यादा रोजगार और प्रशिक्षण संस्थान बनाने की दिशा में सहायता करेगा। बहरहाल नफा नुकसान बीजेपी को जनता के बीच जाकर इसे ठीक से समझाना होगा।

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