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This Article is From Apr 19, 2017

विनय कटियार ने कहा था- तुम बच गई हो न?

Nidhi Kulpati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 19, 2017 21:54 pm IST
    • Published On अप्रैल 19, 2017 21:54 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 19, 2017 21:54 pm IST
'तुम बच गई हो न? विनय कटियार ने कहा था.....खुली जीप को चलाते हुए 6 दिसम्बर 1992 को जब मैंने परेशान होकर उनसे कहा था कि मेरी टीम मुझसे बिछड़ गई है. भगदड़ और धूल के गुबार के बीच मेरे कैमरामेन और साउंड रिकॉर्डिस्ट बिछड़ गए थे....अयोध्या में बाबरी मस्जिद के गुंबद की ऊपरी परत भरभराकर गिर रही थी. मुड़कर देखा तो लोग पत्थर फेंक रहे थे कुछ ऊपर भी चढ़े हुए थे और हाथ में कुछ लिए तोड़ने की कोशिश कर रहे थे. मैं मस्जिद परिसर के बाईं ओर मौजूद थी और भीड़ मुझे धीरे-धीरे मस्जिद से दूर धकेल चुकी थी. चारों ओर जमीन पक्की नहीं थी इसलिए भीड़ की भगदड़ से धूल उड़ रही थी.....शोर भी बहुत था.......कुछ भागने वालों की तो कुछ उत्तेजित लोगों की. जमीन पर उतरे मिट्टी के बादलों ने सब धूमिल सा कर दिया था...

6 दिसम्बर 1992 के दिन तड़के सुबह लखनऊ से सीधे अयोध्या पहुंची थी. करीब दो घंटे का सफर था. तब मैं इंटरनेशनल प्राइमटाइम नेटवर्क के लिए काम करती थी, जो यूके, यूएस, कनाडा के लिए साप्ताहिक भारतीय न्यूज भेजा करता था. वो जमाना वीएचएस टेप का था. वीडियो कैसेट का दौर. जब लोग किराये पर कैसेट लेकर अपने वीसीआर के जरिए न्यूज़, फिल्में ,पाकिस्तानी नाटक आदि देखा करते थे. न्यूज चैनल तो बाद में, 1995 में शुरू हुए थे.

तो दिल्ली में खलीज टाइम्स से आए राजू नागराजन हमारे एक मात्र संपादक  थे और मैं पहली बार रिपोर्टर बनी थी. न्यूजट्रैक से कुछ महिनों पहले ही यहां आई थी. डेढ़ साल पहले ही काम करना शुरू हुआ था. यहां सभी क्षेत्रों में  रिपोर्टिंग करने का मौका मिलता था...राजनीतिक,आर्थिक, सामाजिक, कला...स्वास्थ्य इत्यादी. सुबह आफिस में स्टोरी पर चर्चा कर दिन भर के लिए निकल जाते थे.....कैमरापर्सन,साउंड रिकॉर्डिस्ट और ड्राइवर... जो एक छोटा सा परिवार बन गया था...सुबह से शाम तक का.

तो जब राम जन्मभूमि के आंदोलन का जोर चल रहा था... संघ के आचार्य गिरिराज किशोर से झन्डेवालान में कई बार मिलने का मौका मिलता था. रिपोर्ट बनाने के लिए उनकी बाइट अक्सर लिया करती थी. एक दिन जब मैंने जिक्र किया कि मैं अयोध्या जाना चाहती हूं तो उन्होंने मुझसे कहा था क्या करोगी जाकर? हट करते हुए मैंने कहा था कि वहां का अनुभव जरूरी होगा. तब इस पर उन्होंने ज्यादा कुछ कहा नहीं था. जाने की लालसा इसलिए थी क्योंकि दिल्ली के गलियारो में चर्चा थी कि कुछ बड़ा होगा...

अयोध्या शहर में हम अपनी मारुति वैन में सवार आसानी से घुसते चले गए. बांसों की बैरीकेडिंग थी. औसत संख्या में लोग सड़कों पर मौजूद थे...मेले का सा वातावरण था...गाड़ी हमने लखनऊ से ली थी तो बाबरी मस्जिद करीब दिखने पर हम उतर गए... हरीश परदेसी, रवि शर्मा और कैमरा असिस्टेंट मौर्या... हाईबैंड कैमरे का जमाना था जो भारी-भारी मशीनें थीं...साउंड रिकॉर्डर  8-10 किलो से कम का नहीं होगा. करीब पंहुचते ही कतारों के बीच होते हुए हमें बाईं ओर भेज दिया गया. हमारी आईडी चेक की गई थी. भीड़ बढ़ रही थी. पत्रकारों की संख्या काफी थी. विदेशी पत्रकार भी मौजूद थे, तरह-तरह के कैमरे लिए...एक नए पत्रकार के लिए हर लम्हा सीखने का अवसर था. वो बड़ा सा कैनवस नजर आ रहा था जिसके लिए देशी-विदेशी दिग्गज पत्रकार अपना अनुभव दर्ज कराने  मौजूद थे.

भीड़ के साथ नारे लगाते लोगों की संख्या भी बढ़ रही थी. बाईं ओर मुझे मस्जिद का एक सिरा नजर आ रहा था. उस तरफ कोई नेता नहीं थे हालांकि लाउड स्पीकर पर आवाजें खूब आ रही थीं. महिलाएं काफी तादाद में मौजूद थीं. बात करने पर उन्होंने मुझे बताया कि वे दुर्गा वाहिनी से हैं... महाराष्ट्र से आई थीं. उनका तालियां बजा-बजाकर गीत गाना आज भी याद है. कुछ ने कहा हमें तो ट्रेनिंग है लट्ठ चलाने, टीलों पर चढ़ने की. मेरे पीछे ढलान के बाद एक रोड सी याद है...मस्जिद एक ऊंचाई पर बनी थी.

नारेबाजी की आवाजों को शोर में बदलने में समय नहीं लगा क्योंकि  कुछ लड़के गुम्बद पर चढ़े नजर आने लगे. वे गुम्बद को तोड़ रहे थे...कुछ नीचे खड़े पत्थर फेंक रहे थे...कैमरा थामे राजेश और रवि ने कहा तुम यहां ठहरो हम कुछ क्लोज़अप लेकर आते हैं...वे आगे बढ़े ही थे कि दुर्गा वाहिनी की महिलाओं ने हाथों को पकड़ एक कड़ी सी बना ली. उन्होंने कहा कि इससे हम बिछड़ेंगे नहीं. धक्का तेज होना शुरू हो गया था. मैंने कुछ को कहते हुए सुना लड़कों को ही मौका क्यों मिल रहा है, हमें मिलता तो हम भी चढ़कर यह कर सकते थे...

मैं, राजेश और रवि के पास जाने की कोशिश में थी कि चिल्लाने की आवाजें आने लगीं...भगदड़ सी मच गई. कुछ मस्जिद की ओर भाग रहे थे तो कुछ उससे दूर. धूल की आंधी सी चलने लगी थी...आंख- नाक में घुसने लगी थी...राजेश रवि को नजरें खोज नहीं पा रही थीं...मेरे सामने सामने बाईं ओर का गुम्बद गिर रहा था...आगे-पीछे भीड़ और धूल ही नजर आ रही थी. सुबह के दस बजे होंगे लेकिन शाम का समय सा लग रहा था... ढलान से नीचे सड़क पर उतर ही रही थी तो विनय कटियार अकेले खुली जीप चलाते सामने से गुजर रहे थे. मैंने उनको रोककर कहा कि मेरे साथी बिछड़ गए हैं, उनको खोजना है...कुछ कीजिए... उन्होंने बस इतना कहा - तुम बच गई हो न?

परेशानी में सूझ नही रहा था क्या किया जाए...वापस ऊपर चढ़ी तो पता चला पत्रकारों की पिटाई हो रही है...कैमरे तोड़े जा रहे हैं...मैंने गाढ़ा नारंगी रंग का फिरन पहना था, तो शायद मुझ पर पत्रकार होने का शक नहीं हुआ...कुछ पलों में हांफते राजेश मिल गए. उन्होंने बताया कैसे मुश्किल से बचे...राजेश ने कहा गाड़ी ढूंढते हैं फिर उसमें बैठकर रवि को ढूंढेंगे. कुछ आगे ही अयोध्या का थाना था. वहां काफी विदेशी पत्रकार मौजूद थे. वे मदद मांगने लगे एफआईआर लिखने के लिए क्योंकि वहां हिन्दी में ही लिखी जानी थी. उनके कैमरों के मंहगे लेंस तोड़ दिए गए थे...बहुत बेहाल थे...

कुछ देर रवि का इंतजार करते हम मुख्य सड़क पर पहुंचे तो ड्राइवर मिल गया. गाड़ी में बैठते ही उसने पूछा आप लोग कैसे बच गए..? कहा अब तुरंत यहां से निकलना होगा... प्रेस का स्टीकर उसने हटा दिया था...हरीश कैमरे को रख ही रहे थे कि असिस्टेंट मौर्या भी मिल गया सड़क पर... राजेश हम सबसे ज्यादा अनुभवी थे. उन्होंने कहा रवि भी आगे मिल ही जाएगा... आगे बढ़ते चलो...हालांकि वह हमें नहीं मिला...

लखनऊ के रास्ते पर गाड़ियां ज्यादा नहीं थीं. हमारी मारुति वैन का जबरदस्त एक्सीडेंट भी होना था...साइकिल वाले को बचाने के चक्कर में गाड़ी पलट गई लेकिन किसी को चोट नहीं आई. खराब गाड़ी के बाद वहां के स्थानीय अखबार 'आज' की  जीप से हम लखनऊ पहुंचे. लेकिन बड़ा झटका तब लगा जब रात में पता चला की रवि की बहुत पिटाई हुई थी...पैर टूट गया था और सिर पर भी मारा गया था...वह अस्पताल में मौजूद था. साउंड रिकॉर्डर टूट गया था और टेप डैमेज हो गया था. बहुत पत्रकारों की पिटाई हुई थी. कुछ महिला पत्रकारों से बदसलूकी भी...

दिल्ली वापसी पर सीबीआई के लोग पूछताछ के लिए अक्सर आफिस आते थे...कुछ बचे हुए टेप ले लिए थे...रवि को तो बार-बार सीबीआई के दफ्तर भी जाना पड़ता था. दिल्ली में राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा ने सभी पत्रकारों को मिलने के लिए बुलाया था. अपना विरोध दर्ज कराने के लिए एक ज्ञापन भी सौंपा था. लेकिन तब भी यह चर्चा थी और अब भी बनी हुई है कि इतने सारे कैमरों के बावजूद वो तस्वीरे कहां गई? एक दो स्टिल तस्वीरों के अलावा वीडियो कहां गए...?


(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है
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(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)

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