एक कैमरामैन मारा गया....दो जवान भी...न्यूजरूम में खबर गूंजी ही थी की टीवी स्क्रीन पर फ्लैश होने लगा......छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नीलवाया में नक्सली हमले में तीन लोग मारे गए... न्यूजरूम में आवाजें कुछ ऊंची हो रही थी...जिसको जो भी जानकारी मिल रही थी दे रहा था...वो दूरदर्शन से था...नाम अच्युतानंद साहू था...वह ओडिशा से था... अरे, उसके आखरी फेसबुक पोस्ट को देखो...कुछ समय पहले ही शादी हुई थी...खबरों की दुनिया में रहने से लगातार अच्छी बुरी खबर आती रहती है, लेकिन दुख को अपनाने की शायद एक आदत सी हो जाती है...जब तक सोच अच्युतानंद के परिवार, उसकी गर्भवती पत्नी तक पंहुचती तब तक घटनास्थल की एक फोटो आ गई...तुरंत नज़रे नीलवाया के जंगलों को देखने में जुट गईं... कैसे घात लगाकर 100 नक्सलियों ने इस हमले को अंजाम दिया था...एक वीडियो आ गया, उसके सहयोगी धीरज कुमार का जो बता रहा था कि साहू कुछ 50 मीटर आगे था...गोलियां चलते ही वह गढ्ढे में जा गिरा...45 मिनट तक कई राउंड गोलियां चली...ग्रेनेड भी फेकें गए... 7-8 सुरक्षा बल थे जो 100 से मुकाबला कर रहे थे...
वारदात के दूसरे दिन कुछ और वीडियो भी सामने आए, जिसमें डीडी टीम के लोग पानी मांगते सुनाई दिए... पुलिस वाले समझाते हुए दिखे कि अभी तो लेटे रहो...बीच-बीच में गोलियों के चलने की आवाजें भी सुनाई देती रहीं... एक और वीडियो में एक साथी अपनी मां को संदेश देता दिखा...उसे लगा शायद आखरी बार मां से बात कर रहा हो... मां हालात खतरनाक है...चारों तरफ से नक्सलियों ने घेर लिया है, बचना मुशकिल है लेकिन पता नहीं क्यों डर नहीं लग रहा.. वो बस लेटा हुआ हिलने पर सूखे पत्तों के साथ गोलियों की आवाज के बीच अपनी मां को याद कर रहा था... इधर न्यूजरूम में इसके बचने की खुशी बस एक राहत सी महसूस हुई...लेकिन अंदाजा लगाईये उस मां की खुशी का जिसका बच्चा ऐसे हमले में बच निकल आया था...
मीडिया की टीम तो अपना काम कर रही थी, लेकिन नक्सली इलाकों में रिपोर्टिंग के कुछ अनलिखे कायदे होते हैं. हमारे अनुभवी सहयोगियों का कहना था कि नक्सलियों का खुफिया सूचना तंत्र बहुत मजबूत माना जाता है. ऐसे में सुरक्षाबलों के साथ निकलना घातक होता है, क्योंकि वह हमेशा ही निशाने पर रहते हैं... बहुत संभलकर दूरी बनाकर रिपोर्टिंग करनी होती है...नीलवाया में पहली बार वोट पड़ने थे...आजाद भारत के इतिहास में पहली बार.....यहां एक सड़क भी बन रही है जो सुकमा तक पहुंचती... वो ज़रिया जिससे स्थानीय लोगों की ज़रूरतें पूरी होती, विकास होता लेकिन नक्सलियों के पकड़ वाले क्षेत्र को भी जा भेदती... अपने साथियों को खोने पर एसपी अभीषेक पल्लव बिलबिला कर रो रहे थे....अरे, बीमार पड़ने पर यहां के लोगों के लिए एम्बुलेंस आसानी से आ जाती....बच्चे शिक्षा के लिए बाहर जा सकते....क्यों ऐसे जान ले ली... चुनौतियां कम नहीं है.. प्रशासन ऐसे इलाकों को समाप्त करना चाहता है, जहां जीरो वोटिंग होती आई है...कुछ दिन पहले खबर आई थी कि सुरक्षा के मद्देनजर प्रभावित इलाकों में प्रशासन ने कहा था कि कुछ इलाकों में वोटरों की उंगलियो में स्याही न लगाऐं....जिसका विपक्ष ने विरोध भी किया था...
छत्तीसगढ़ में 12 और 20 नवंबर को वोट पड़ने हैं...पहले चरण में 18 चुनावी क्षेत्रों में वोट पड़ेंगे, जिनमें 8 नक्सल प्रभावित हैं... बस्तर, कांकेर, सुकमा, बीजापुर, दंतेवाड़ा, नारायणपुर, कोन्डागांव और राजनांदगांव...नक्सलियों ने प्रभावित इलाके के लोगों से चुनाव बहिष्कार की अपील की है...ये हादसा दंतेवाड़ा में हुआ है, हालांकि बीजापुर और सुकमा में नक्सलियों की पकड़ ज्यादा मजबूत है.. चुनाव नक्सलियों की नजर में हमेशा खटकते रहे हैं जो उनके वर्चस्व में हस्तक्षेप हैं...
बहरहाल चुनाव करीब आते ही सुरक्षाबल भी बढ़ रहे हैं... CRPF, BSF, ITBP और SSB की 500 कंपनियां तैनात की गई हैं...36 कंपनियां पहले से ही काम कर रही हैं...जो 11 छत्तीसगढ़ आर्म्ड पुलिस फोर्स से अतिरिक्त है... करीब 50 ड्रोन, जिनमें 25 दंतेवाड़ा ,सुकमा और बीजापुर जिलों में निगरानी कर रहे हैं...करीब 1000 सैटेलाइट बेस्ड ट्रैकर्स सुरक्षाकर्मियों को दिए गए हैं, जो पोलिंग पार्टियों के साथ रहेगें...ये तैनाती बदल भी सकती है...
कुछ दिन पहले सीआरपीएफ के 4 जवान शहीद हो गए, जब उनका ट्रक उड़ा दिया गया... रविवार को बीजेपी के नेता नंदलाल मुदामी पर हमला किया...पहले उनके घर में रेड की फिर उनको घारधार हथियार से घायल किया गया...अब ये तीसरी वारदात थी...हमले को देखते हुए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने अपना दौरा फिलहाल रद्द कर दिया है... प्रधानमंत्री को यहां 9 तारीख को रैली करनी है...
नक्सलियों से खाकी के साथ खादी को भी खतरा रहा है...मई 2013 में कांग्रेस ने विधानसभा चुनावों से ठीक पहले अपने 25 शीर्ष नेताओं को खोया था....दरभा घाटी हमले में परिवर्तन यात्रा पर निकले विद्या चरण शुक्ल अपने साथियो के साथ गाड़ियों में मार दिए गए थे...पीसीसी चीफ नंद कुमार का तो शव बाद में मिला था....इसमें आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा भी मारे गए थे, जिन्होंने 2006 में सलवा जुडुम शुरू किया था....जिसका असर दिखा....लेकिन बाद में विवादों में आने के कारण 2011 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इसे बंद कर दिया गया...हालांकि सुरक्षा में लगे लोगों का कहना था कि अगर ये बंद नहीं होता तो बीजापुर, दंतेवाड़ा में नक्सलवाद समाप्त हो जाता.....इससे पहले 2012 में सुकमा के कलेक्टर ऐलेक्स पॉल मेनन को अगवा कर लिया गया था...12 दिन बाद उन्हें छोड़ा गया था...फिर 2010 में 72 सीआरपीएफ के जवानों को मारे जाने की घटना को तो सुरक्षा बल आसानी से भुला नहीं पाएंगे... पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिह ने 2006 में कहा था कि नक्सलवाद सबसे बड़ा आंतरिक सुरक्षा खतरा है...
VIDEO : दूरदर्शन के कैमरामैन ने मां के लिए रिकॉर्ड किया संदेश
जानकारों का कहना है कि नक्सलियों का रेड कॉरिडोर अब नहीं रहा...पशुपति से तिरुपति का दायरा सिमट गया है...पूरे देश में इससे प्रभावित 44 जिलों से सिमटकर ये 30 में ही रह गया है...केंद्रीय गृह मंत्रालय के आकंड़ों के अनुसार नक्सली वारदातों में 60 प्रतिशत की कमी आई है...ये 2009 में 2258 हुईं तो 2017 में 908... लेकिन इनमें सुरक्षाकर्मियो के मारे जाने की संख्या 27 प्रतिशत बढ़ी है... 2015 में 59 मारे गए तो 2017 में 75....फिर अप्रैल 2017 में 35 सीआरपीएफ वाले मारे गए...ये सही है कि नक्सलियों का दायरा लगातार सिमट रहा है, लेकिन इसको समाप्त करने के प्रयासों में भ्रष्टाचर और स्थानीय माफिया भी अहम कारण रहा है... समानांतर सरकार से फायदे की बात कही गई.....कभी नेताओं के भ्रष्टाचार पर उंगली उठी तो कभी खनन माफिया पर... नेताओं की शय पर भी....इन इलाकों में रहने वाले एक तरफ चुनाव के बहिष्कार के ऐलान से खौफज़दा रहने को मजबूर है तो इस बार भी नीलवाया में हितैशी दिख रहे उन पर्चों से जिसमें लिखा मिला...गांवों पर पुलिस के हमले, जनता पर फर्जी मुठभेड़, महिलाओं पर अत्याचार, भाकपा माओवादी, दरभा डिविजन कमेटी...
निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं.
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This Article is From Oct 31, 2018
चुनावों पर नक्सली साया...
Nidhi Kulpati
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 31, 2018 20:13 pm IST
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Published On अक्टूबर 31, 2018 20:13 pm IST
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Last Updated On अक्टूबर 31, 2018 20:13 pm IST
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