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This Article is From Aug 16, 2018

शाहनवाज हुसैन की कलम से : मेरे नेता अटल...

Shahnawaz Hussain
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 17, 2018 12:35 pm IST
    • Published On अगस्त 16, 2018 21:53 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 17, 2018 12:35 pm IST
अटल जी से मेरी पहली और निजी मुलाकात 1987 में हुई थी. तब से तकरीबन 30 सालों में उनसे जुड़ी मेरी तमाम यादें इस वक्त मेरी आंखों के सामने तैर रही हैं. अटल जी का जाना न सिर्फ देश के लिए बल्कि मेरी निजी जिंदगी के लिए भी बहुत बड़ी क्षति है. निकट भविष्य में उनके जैसा महान नेता, उनके जैसा बेहतरीन कवि, लेखक और वक्ता मिलना बेहद मुश्किल है. वो अच्छे नेता थे, अच्छे इंसान थे और मेरे लिए सबसे अच्छे अभिभावक.

1987 की बात है... पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता आरिफ बेग साहब ने एक मंच पर अटल जी से मेरी मुलाकात कराई थी. उसके बाद जल्द ही अटल जी से आमने-सामने मुलाकात का मौका मिला. और उसी मुक्कमल मुलाकात में अटल जी की आत्मीयता मुझे छू गई. उस मुलाकात के बाद से जो अटल जी से रिश्ता बना वो गहरा ही होता गया, कभी खत्म नहीं हुआ. उनका जाना मेरे लिए मेरे गुरु, मेरे आदर्श, मेरी ऊर्जा का चले जाना है.

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4 दिसंबर 1997 की बात है... सुश्री उमा भारती जी के नेतृत्व में दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में भारतीय जनता युवा मोर्चा का एक मुस्लिम सम्मेलन था. उस कार्यक्रम में मुझे वाजपेयी जी के सामने भाषण देने का मौका मिला. बाद में उमा भारती जी ने बताया कि वाजपेयी जी हमारे भाषण से काफी खुश थे. उसी के बाद मुझे किशनगंज से लोकसभा चुनाव ल़ड़ने का मौका मिला. 1998 में सिर्फ 6000 वोटों से हार गया लेकिन 1999 में मेरी जीत हुई. 1999 में जब अटल जी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली तो उन्होंने पहले मुझे राज्य मंत्री बनाया और फिर हिन्दुस्तान का सबसे कम उम्र का कैबिनेट मंत्री बनाया और पूरा विश्वास किया.

2001 में जब मैं मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री था तो एक दिन सुबह सुबह उनका फोन आया और कहा कि स्वतंत्र प्रभार के साथ कोयला मंत्री बनाने जा रहे हैं. मेरे लिए ये किसी अचरज से कम नहीं था.

8 फरवरी 2001 से 1 सितंबर 2001 तक मैं स्वतंत्र प्रभार के साथ कोयला मंत्री रहा. बतौर कोयला मंत्री अटल जी को मेरा काम अच्छा लगा और उन्होंने 1 सितंबर 2001 को मुझे नागरिक उड्यन मंत्रालय में कैबिनेट मंत्री बना दिया.

अटल जी के बारे में मैं जितना बयां करूं वो कम है. उनकी शख्सियत इतनी बड़ी थी, उनका रुतबा इतना बड़ा था कि विरोधी भी उनके सामने आने के बाद उन्हीं के हो जाते थे.

केंद्र में एनडीए की सरकार बनने के बाद बतौर प्रधानमंत्री अटल जी की पहली इफ्तार पार्टी उन्हीं के आवास पर हुई लेकिन बाद में उन्होंने मुझसे कहा- रमज़ान का रोज़ा आप रखते हैं तो इफ्तार की पार्टी भी आप ही के यहां होगी. उसके बाद जब तक केंद्र में अटल जी की सरकार रही, इफ्तार की पार्टी मेरे यहां ही हुई और उसमें अटल जी दिल से शिरकत करते रहे. मेरे यहां इफ्तार की एक दावत में ही पत्रकारों के पूछने पर अटल जी ने अयोध्या पर एक बयान दिया था और उस बयान ने इतना तूल पकड़ा कि 13 दिन तक संसद में गतिरोध रहा.

अटल जी के साथ मेरी इतनी यादें जुड़ी हैं कि जितना बयां करूं कम है. एक बार दिल्ली के ही एक मस्जिद में मैं नमाज के लिए गया था. वहां कुछ लोगों के साथ हल्की कहासुनी हुई... लेकिन इसे अखबार में काफी घुमा फिराकर और बढ़ाकर चढ़ाकर लिखा गया. अटलजी चिंतित हो गए, उन्होंने मुझे फोन किया. अगले दिन शनिवार को उन्होंने संसद में बुलाकर मुझसे मुलाकात की और हालचाल पूछा. इसी दौरान उन्होंने कहा कि - आपको संसद में बोलना है. और इसी के बाद संसद में मेरी मेडेन स्पीच हुई थी – जो अयोध्या मसले पर थी. जब मैं संसद में बोल रहा था, अटल जी अपने कमरे में मेरा भाषण सुन रहे थे. अपनी मेडेन स्पीच पूरी करते ही मेरे पास उनकी एक पर्ची आई. मैं संसद में उनके कमरे में गया. अटल जी काफी खुश लग रहे थे, उन्होंने मेरी पीठ थपथपाई और गले से लगा लिया.

इतनी आत्मीयता, इतने स्नेह के बावजूद अटल जी की शख्सियत इतनी बड़ी थी कि उनके सामने जाते ही मैं सब कुछ भूल जाता था इसलिए मंत्री रहने के बावजूद मैं सबकुछ हाथ पर लिख कर जाता था ताकि उनसे बात करते वक्त कुछ छूट न जाए. अटल जी का प्रभाव इतना जबरदस्त था कि कुछ विवाद तो सिर्फ उनके बयान से खत्म हो जाते थे. मुझे याद आता है कि मदरसे को लेकर एक रिपोर्ट आई थी. मैं कई मुस्लिम बुद्धिजीवियों के साथ अटल जी से मिलने गया. अटल जी ने इतना कहा कि ‘मदरसे तो इल्म का सर-चश्मा हैं’ और इसी पर सारा विवाद खत्म हो गया.

एक बार यूपी के चुनाव के दौरान मैं क्षेत्र में था. प्राइवेट कोटा से जाने वाले कुछ हाजियों के लिए जहाज का इंतज़ाम नहीं हो पाया था. मैंने अटलजी के सामने हज यात्रा पर जाने वाले हाजियों की मुश्किलें बयां की और अटलजी ने तपाक से कह दिया – जरुरत है तो मेरे जहाज से हाजियों को भिजवाओ.

लेकिन 14वीं लोकसभा के लिए ही भागलपुर के उपचुनाव में जब मैं मैदान में उतरा तो फिर उन्होंने शुभकामनाओं की चिट्ठी मेरे लिए लिखी. भागलपुर के अखबारों में तब वो चिट्ठी प्रकाशित हुई थी और लोगों ने खूब सराहना की थी. अटल जी के आशीर्वाद से और भागलपुर के लोगों के प्यार से मैं भागलपुर से 14वीं लोकसभा का उपचुनाव जीता और फिर 15वीं लोकसभा में भी चुनकर संसद पहुंचा.

उनका हृदय विशाल था, उनकी शख्सियत बहुत बड़ी थी. मैं खुशनसीब महसूस करता हूं कि मुझे अटल जी जैसे अभिभावक मिले. अटल जी की एक कविता मेरे दिल के बेहद करीब है... छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता. एक महान जननायक, कवि, लेखक, वक्ता और भारत रत्न श्री अटलजी को विनम्र श्रद्धांजलि.

सैयद शाहनवाज हुसैन
(लेखक बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और पूर्व केंद्रीय मंत्री हैं)


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