दोपहर के खाने के बाद शुरू हुआ हमारा श्रीनगर भ्रमण। आबिद से कहा, 'ठीक से घुमाना। कोई चीज छूटनी नहीं चाहिए।'
'अब आप चाहो तो मुझ पर यकीन करो या अपने दोस्त से पूछ लेना, जिसने मेरा नंबर दिया है'
'भईया भरोसा किया है, तभी तो तुम्हें बुलाया है। वैसे हमारे पास भी विकी ट्रैवेल्स का प्रिंट आउट है।' हमने भी थोड़ी तल्ख़ी दिखाई।
हमारी गाड़ी गुज़री एक शांत मगर पॉश इलाके से। उस इलाके में ज़बरदस्त सुरक्षा व्यवस्था थी। पूछने पर आबिद ने बताया, यहां उमर अब्दुल्ला रहते हैं। कहा जाता है कि करीब साढ़े तीन करोड़ में बने उनके बंगले में एक बुलेट प्रूफ़ ग्लास रुम भी है।
'अच्छा तो चुनावी शिकस्त के बाद यहीं रह कर जूनियर अब्दुल्ला हर मुद्दे पर ट्वीट करते रहते हैं।', मन ही मन ख़याल आया। यहां तक की बिहार के स्कूलों में जब नकल की तस्वीरें खबरों की सुर्खियां बनी तब भी उमर ने ट्वीट किया था।
ज़ाहिर है चुनावी मैदान में शिकस्त खाने के बाद उमर के पास इन सब चीजों के लिए काफ़ी वक्त है। जब प्रधानमंत्री से भी ज्यादा सख्त सुरक्षा घेरा मिला हुआ हो तो भला वे वादी का खुशनुमा मौसम को छोड़कर कहीं और जाना क्यों पसंद करेंगे। थोड़ा आगे बढ़ने पर आबिद ने हमें मौजूदा मुख्यमंत्री मुफ़्ती मोहम्मद सईद का बंगला दिखाया। वहां अपेक्षाकृत कम सुरक्षा नज़र आई।
बतौर पर्यटक हमारी पहली मंजिल थी चश्म-ए-शाही। यहां बच्चों के लिए 5 और बड़ों के लिए 10 रुपये के टिकट थे। ये मैं भी नहीं जानता था कि कश्मीर में तीन मुगल गार्डंन हैं। चश्मे शाही इनमें सबसे छोटा है। मुगल सम्राट शाहजहां ने इसे सन् 1632 में बनवाया था। झरने से निकलने वाला पानी पीकर लगा कि मिनरल वाटर होता क्या है। शहरों में मिनरल वॉटर के नाम पर बिकने वाले पानी में न स्वाद है और न वैसी खुशबू।
हमारा अगला पड़ाव था परी महल। शाहजहां के बड़े बेटे दारा शिकोव ने अपने सूफ़ी टीचर मुल्ला शाह के लिए इसे बनवाया था। पहले परी महल बुद्ध मठ हुआ करता था। दारा शिकोव ने इसे ज्योतिष स्कूल में बदल दिया। यहां एक जमाने में कई झरने थे, जो अब सूख चुके हैं। यह एक टीले पर स्थित है, जहां से घाटी का बड़ा शानदार नज़ारा दिखाई दे रहा था। नीचे एक अहाते में एक हेलीकॉप्टर भी नज़र आया।
यहीं नाक के नीचे एक और दिलचस्प नज़ारा दिखा और वह यह कि दिल्ली के पार्क की तरह परी महल के घास पर प्रेमी-प्रेमिकाओं की जोड़ी। (वैसे दिल्ली में रोमांस की जगह अब पार्क से मॉल में शिफ़्ट हो गई है) कश्मीर में संगीन के साए और मजहब के तलवार के बीच भी प्यार बखूबी पनप रहा है। प्यार पर पहरा जमाना भी भला कहां लगा पाया है। यहां के कर्मचारियों ने बताया कि रात में यहां की शानदार लाइटिंग काफी मशहूर है।
इसके बाद हम पहुंचे सिराज बाग चश्म-ए-शाही, जिसे इंदिरा गांधी पार्क भी कहा जाता है। देश के हर कोने में नेहरु-गांधी के नाम को चस्पा करना भी कई बार कड़वाहट का कारण बनाता रहा है। पार्किंग दूर थी। हमें पैदल चल कर जाना था और वह भी करीब 10 मिनट तक। थके होने के कारण हमारा चलना मुश्किल हो रहा था। रास्ते में सुरक्षा की बेहद कड़ी व्यवस्था थी। हर एक को कड़ी निगाहों से गुज़रना पड़ रहा था। रास्ते में कश्मीरी फलूदा और कुल्फ़ी के ठेले थे। कुछ शॉल के भी फेरीवाले थे। जब हम गेट पर पहुंचे तो दो-तीन गाड़ियां नज़र आई। अपने ड्राइवर पर गुस्सा आया कि हमें इतनी दूर क्यों छोड़ दिया।
पास पहुंचे तो पता चला कि ये आम नहीं खास लोग थे। वीआईपी कल्चर से यहां भी दर्शन हुआ। दूरदर्शन के किसी आला अधिकारी का परिवार था। वैसे तो गाड़ी लाने पर पाबंदी थी। लेकिन इतने खतरे और सुरक्षा के बीच भी वीआईपी गाड़ी को आने दिया गया।
बहरहाल, हम अंदर पहुंचे तो एकबारगी यकीन नहीं हुआ। सब के सब स्तब्ध रह गए। क्या सचमुच ये इतना ख़ूबसूरत है या यह कोई पेंटिंग है! नीले जब्रवान पहाड़ की गोद में 90 एकड़ में फ़ैले एशिया के सबसे बड़े ट्यूलिप गार्डन की सुंदरता देखते ही बनती है। सारी थकावट अब दूर हो गई थी। इस जहां में जितने भी रंग हैं, उतने ही रंग के ट्यूलिप यहां खिले हुए थे। यहां 100 से भी ज़्यादा किस्म के 20 लाख से भी ज़्यादा ट्यूलिप खिलते हैं। हॉलैंड के केकनहॉफ़ को दुनिया का सबसे सुंदर स्प्रिंग गार्डन माना जाता है। रोमांस पर आधारित फिल्मों का निर्देशन करने वाले मशहूर डायरेक्टर यश चोपड़ा की फ़िल्म 'सिलसिला' का मशहूर गाना देखा एक ख़्वाब...' यहीं के ट्यूलिप के बीच शूट किया गया था। अगर 1981 में श्रीनगर का ट्यूलिप गार्डन होता तो शायद यश चोपड़ा को हॉलैंड नहीं जाना पड़ता। 2007 में कांग्रेस के शासन काल में इसे विकसित किया गया, जब गुलाम नबी आज़ाद मुख्यमंत्री थे।
हॉलैंड में भी ट्यूलिप देखने का सबसे सही समय अप्रैल ही होता है। हम भाग्यशाली रहे क्योंकि श्रीनगर का ट्यूलिप गार्डन भी अप्रैल में सिर्फ एक महीने के लिए खुलता है। आजकल ये पर्यटकों के आकर्षण का सबसे बड़ा केंद्र है, लोकप्रियता में मुगल गार्डन और डल लेक पीछे छूट चुके हैं। कहवा का स्वाद तो चखा था, लेकिन काफ़ी पहले वो भी दिल्ली में। कश्मीर आकर इस कश्मीरी ड्रिंक का लुत्फ़ लेना तो बनता था। लेकिन बच्चों को तो बस चिप्स चाहिए होता है। जंक फूड नहीं खाने का यहां लेक्चर देना मुनासिब नहीं लगा।
आगे हमें आबिद निशात बाग ले जाता है। अब तक हम थक चुके थे, लेकिन आए थे तो देखना बनता था। यहां एक म्यूज़िकल ट्रूप का प्रोग्राम चल रहा था। करीब दो-ढ़ाई सौ लोग बैठ कर गाना सुन रहे थे। गायक बहुत सुर में तो नहीं थे लेकिन फिर भी लोग बॉलीवुड के हिट गानों ने मानो सबको बांध कर रखा दिया था। निशात बाग के बारे में आपको बता दूं कि यहां से डल का नज़ारा साफ़ दिखता है। इसे 'गार्डन ऑफ़ ब्लिस' यानी आनंद का बाग भी बोलते हैं। इसके बैकड्रॉप में भी ज़ब्रवान पहाड़ है। नूरजहां के भाई असफ़ ख़ान ने इसे वर्ष 1633 में बनवाया था।
निशात के पास ही है शालीमार गार्डन। सम्राट जहांगीर ने अपनी पत्नी नूरजहां के लिए वर्ष 1616 में शालीमार गार्डन बनवाया था। इसे प्यार का बाग भी कहा जाता है। शाहजहां के शासन काल में यहां एक और गार्डन जोड़ा गया, जिसे फ़ैज़ बक्श कहा जाता है। कुल मिलाकर चार ऊंचाइयों पर चार बाग हैं। उस जमाने में चौथा बाग कभी सिर्फ़ महारानियों के लिए हुआ करता था। इतिहास और खूबसूरती को समेटे हुए यह बाग बेहद दिलचस्प लगे।
शालीमार बाग के पास लगीं दुकानों पर हमने एक नज़र डालने की सोची। एक शिकारा का मॉडल पसंद आया। मोल-भाव के बाद कुछ यादगार (सुवेनियर) खरीदे। मुझे भी अपने दोस्तों के लिए कुछ खरीदना था, लेकिन बाद में ले लूंगा सोच कर लिया नहीं और ये बाद भी कभी आ नहीं पाया। लिहाज़ा जब आपको कोई चीज पसंद आ जाए तभी ले लेनी चाहिए। (जारी है)
This Article is From May 15, 2015
संजय किशोर की कश्मीर डायरी-3 : टेंशन, ट्यूलिप और संगीन के साए में 'देखा एक ख़्वाब तो सिलसिले हुए'
Sanjay Kishore
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Updated:मई 15, 2015 14:01 pm IST
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Published On मई 15, 2015 13:40 pm IST
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Last Updated On मई 15, 2015 14:01 pm IST
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