दुनिया के तमाम देशों में आर्थिक वृद्धि की संभावना की अटकल लगाना बहुत ही मुश्किल काम है. यही काम रेटिंग एजेंसी मूडी करती है. यह दुनिया की तीन बड़ी एजेंसियों में से एक है और अपने शोध सर्वेक्षण के ज़रिए निवेशकों का मूड बनाने बिगाड़ने का काम करती है. यह एजेंसी 14 साल से भारत की रेटिंग बहुत ही खराब बताती आ रही थी. इस बार उसने सुधरी हालत का अनुमान दिखाया है. उसने इस तरह के आकलन के लिए अपने पैमाने बना रखे हैं. इस तरह से वह दुनिया के तमाम देशों को एक मशविरा देने का काम करती है कि किन-किन क्षेत्रों में सुधार वगैरह करके वे अपने-अपने देशों में आर्थिक वृद्धि कर सकते हैं.
बहरहाल मूडी के हिसाब से हमारी बहुत ही खराब रेटिंग इस साल कुछ कम खराब बताई गई है. बेशक हमारे लिए यह खुश होने का कारण है. लेकिन अगर गौर से देखेंगे तो समझा जा सकता है कि यह हमारी सफलता का ऐलान नहीं बल्कि सफल होने के लिए शुभकामना जैसी चीज़ है.
किस काम की है यह रेटिंग
यह इस काम की है कि विदेशी निवेशकों का मूड बदलती है. अर्थशास्त्रियों का एक तबका यह सिद्ध करता है कि आर्थिक गतिविधियों को बढ़ाने के लिए फीलगुड भी बड़े काम की चीज़ है. इस तरह से विदेशी निवेशकों में फीलगुड के लिए मूडी की यह रेटिंग काम की चीज़ मानी जाती है. इससे यह संदेश जाएगा कि भारत में निवेशकों के अनुकूल सुधार हो रहे हैं लिहाज़ा वहां निवेश करना ठीक रहेगा. इस तरह से यह मानकर चलने में कोई हर्ज़ नहीं कि मूडी की रेटिंग से विदेशी निवेशकों में यह संदेश भेजने का काम सफलतापूर्वक हुआ होगा. लेकिन सवाल यह है कि क्या इतना भर काफी है. यानी आगे अब मूडी को यह देखना है कि हमारी सरकार मूडी के बनाए इस माहौल का फायदा उठाने के लिए क्या करती है. यानी सरकार के लिए काम हुआ नहीं है बल्कि शुरू होने की तैयारी हुई है. लेकिन सरकार के पास इसके तात्कालिक लाभ लेने के ढेरों मौके ज़रूर पैदा हो गए हैं. मसलन देश के भीतर भी फीलगुड के मौके.
देश के भीतर अपनी छवि सुधारने का काम
अब तक जो भी सुना पढ़ा गया उसके मुताबिक यह रेटिंग सबसे ज्यादा इस प्रचार के काम आ रही है कि देश की माली हालत अच्छी है. सारा प्रचार देश के लोगों को संबोधित है. अपने घटते सकल घरेलू उत्पाद से परेशान सरकार को कहने के लिए मूडी का सहारा मिल गया है.
सरकार को कैसा लगा रेटिंग देखकर
सरकार को बिल्कुल उसी तरह अच्छा लगा जिस तरह विश्वबैंक के जरिए डूइंग बिजनेस का सूचकांक बेहतर होने के आकलन को सुनकर लगा था. सरकार की तरफ से सबसे ज्यादा आधिकारिक व्यक्ति के रूप में वित्तमंत्री की प्रतिक्रिया गौरतलब है. इस प्रतिक्रिया में एक अफसोस भी उन्होंने जोड़ा है कि भारत में सुधारों को मान्यता देरी से मिली. इस मामले में गौर करने की बात यह है कि इस रेटिंग का आकलन जिन सुधारों के आधार पर हुआ है वे मूर्त रूप में हुए ही एक साल के भीतर हैं. सो इससे कम समय में यह मान्यता मिलती भी कैसे. हालांकि वित्तमंत्री ने या देश के किसी सक्षम पदाधिकारी ने यह नहीं बताया कि अगला कदम क्या होगा जिससे सुधरी रेटिंग का फायदा उठाया जा सकेगा. लेकिन तात्कालिक लाभ के तौर पर सरकार मूडी की रेटिंग को देश की आर्थिक बेहतरी का ऐलान बताने की कोशिश में है. गौर करें तो यह रेटिंग फीलगुड के तौर पर तो काम आ ही रही है.
सरकार पर निगरानी रखने वालों की प्रतिक्रिया
ये निगरानी रखने वाले दो प्रकार के हैं. एक तो राजनीतिक विपक्ष और दूसरे वे जिन्हें हम आर्थिक मामलों के प्रशिक्षित जानकार कहते हैं. क्योंकि सुधरी रेटिंग का मामला नया-नया है सो जानकारों की प्रतिक्रियाएं एक-दो रोज़ बाद ही आना शुरू होंगी. लेकिन विपक्ष के नेताओं की बातें फौरन ही आईं. इनमें एक है कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजीव शुक्ला का बयान. उन्होंने कहा है कि मोदी जी और मूडी की जोड़ी भारत में वित्तीय सुधार की जो बात कर रही है वह देश की ज़मीनी सच्चाई से दूर है. यानी उन्होंने एक तरह से यह कहा है कि इस रेटिंग का देश के भीतर की हकीकत से कोई लेना देना नहीं है. अब अगर यह सवाल बड़ा बना तो अर्थशास्त्र के विद्वान ही निपटारा कर पाएंगे कि रेटिंग का यह मामला कितना इंटरनेशनल है और कितना इंट्रानेशनल है, या दोनों. जहां तक जानकारों की प्रतिक्रिया का सवाल है तो इसमें कोई शक नहीं कि अब मूडी की उस पद्धति को गौर से देखना शुरू होगा जिसके आधार पर वह किसी देश की रेटिंग करती है. इस जांच-पड़ताल में यह बात निकलकर आ सकती है कि मूडी जैसी एजेंसियों के ऐसे काम होते किस मकसद से हैं.
मूडी के आकलन की सबसे खास बात
मूडी के आकलन से खुश होने वालों का बड़ा जोर इस बात पर है कि यह आकलन आंकड़ों के आधार पर है. लेकिन खुद मूडी ने साफ कहा है कि उनका आकलन एक उम्मीद पर आधारित है. उम्मीद यह कि भारत अपने यहां सुधारों की प्रकिया लगातार चलाता रहे. यानी मूडी ने आर्थिक सुधारों के लिए आंशिक शाबासी इस मकसद से दी है कि भारत अपने यहां आगे और आर्थिक सुधार करता रहे. यानी इशारों में मूडी यह भी कह रही है कि हम सिर्फ मूड ही बदल रहे हैं इससे आपको अपने देश के भीतर आर्थिक सुधारों को तेजी से करने में सुबीता हो जाएगा. यानी आर्थिक सुधारों के खिलाफ देश के भीतर का विरोध कम हो जाएगा.
सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्त्री हैं...
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This Article is From Nov 18, 2017
मूड बदलने में कितना काम आएगी मूडी
Sudhir Jain
- ब्लॉग,
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Updated:नवंबर 18, 2017 17:35 pm IST
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Published On नवंबर 18, 2017 17:35 pm IST
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Last Updated On नवंबर 18, 2017 17:35 pm IST
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