BLOG : कांग्रेस की बैठक से ही स्पष्ट है, कितने बड़े संकट में है सबसे पुरानी पार्टी

कांग्रेस के मौजूदा हालात में यह टोटका सरीखा लगता है कि पार्टी ने आज की बैठक ऐसे एजेंडे के साथ की, जिससे न सिर्फ उसके प्रतिद्वंद्वी चकरा जाएंगे, बल्कि उसके अपने नेता भी.

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कांग्रेस के शीर्ष नेताओं की बैठक की अध्यक्षता पार्टी की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने की...

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने गुरुवार को अपनी पूरी टीम से मुलाकात कर पार्टी के सदस्यता अभियान, प्रशिक्षण मॉड्यूल तथा महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मनाने की योजनाओं के बारे में चर्चा की.

वैसे यह भविष्यवाणी आसानी से की जा सकती है कि चाहे कांग्रेस आज कोई भी योजना बना ले, महात्मा गांधी को 'अपने पूजनीयों' की श्रेणी में शामिल करने में जुटी BJP उन्हें मात दे ही देगी, क्योंकि उनके पास इस अवसर के लिए व्यापक योजना पहले से तैयार है. 

विचार-विमर्श के लिए की गई आज की बैठक में पार्टी महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा शामिल थीं, लेकिन उनके भाई और पूर्व पार्टी प्रमुख राहुल गांधी नदारद थे.

कुछ ही हफ्तों के बाद तीन राज्यों - महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड - में होने जा रहे विधानसभा चुनाव को लेकर टीम सोनिया किसी भी तरह की टिप्पणी करने की इच्छुक नहीं है. कांग्रेस को सदस्यता अभियान की ज़रूरत इससे ज़्यादा कभी नहीं रही - क्योंकि महाराष्ट्र में तो कई नेता एक के बाद एक पार्टी से बाहर निकल गए हैं. इनमें फिल्मस्टार उर्मिला मातोंडकर भी शामिल हैं, जो सिर्फ पांच माह पहले ही पार्टी में शामिल हुई थीं, और बाहर निकलते वक्त उन्होंने 'ओछी अंदरूनी राजनीति' को अपने फैसले की वजह करार दिया.

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संजय निरूपम के साथ उर्मिला मातोंडकर (फाइल फोटो)...

नाराज़गी का मुज़ाहिरा उस समय भी बहुत साफ-साफ हुआ, जब कांग्रेस की मुंबई इकाई के पूर्व प्रमुख मिलिंद देवड़ा और उनसे पहले मुंबई कांग्रेस के मुखिया रहे संजय निरूपम ने सोशल मीडिया पर एक दूसरे पर जमकर हमले किए. वैसे, सोशल मीडिया अब कांग्रेस का नया और पसंदीदा मैदान-ए-जंग बन गया है - दरअसल, किसी भी लड़ाई को ज़मीन पर ले जाने के लिए पार्टी के पास कार्यकर्ता ही नहीं हैं.

निरूपम ने एक साक्षात्कार में NDTV से कहा था कि पार्टी महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव हार जाएगी. इस तरह के दोस्तों के रहते.

बेशक, वह गलत नहीं कह रहे हैं. तीनों राज्यों में कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए BJP पूरी तरह तैयार है, लेकिन कांग्रेस की तैयारी कहीं है ही नहीं, क्योंकि तीनों ही राज्यों में पार्टी के नेता एक दूसरे पर कीचड़ उछालने में ही पूरी तरह व्यस्त हैं. काफी उठापटक के बाद भूपेंद्र सिंह हुड्डा को चुनाव कमेटी प्रमुख के तौर पर हरियाणा का प्रभार दिया गया है, लेकिन उनके करीबी नेताओं का कहना है कि अब काफी देर हो चुकी है, और वह भी असर डालने में कामयाब नहीं हो पाएंगे. वे इस मौके पर पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह का उदाहरण देते हैं, जो चुनाव से एक साल पहले से ही बगावती तेवर अपनाए बैठे थे, ताकि उन्हें विधानसभा चुनाव के संदर्भ में पूरी आज़ादी मिलना सुनिश्चित हो सके.

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पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह...
यह बात समझने में कांग्रेस नेताओं के अलावा सभी का दिमाग चकरा जाता है कि किसी को चुनाव में कामयाबी पाने के लिए अपनी ही पार्टी के खिलाफ बगावत क्यों करनी पड़ती है. लेकिन जो लोग कांग्रेस हाईकमान की 'दरबार संस्कृति' से परिचित हैं, या उसमें शामिल रहे हैं, उनका कहना है कि कांग्रेस में इसके अलावा कोई रास्ता ही नहीं है. महाराष्ट्र के एक नेता ने व्यंग्यात्मक तरीके से कहा, "पहले आपको कांग्रेस में मौजूद प्रतिद्वंद्वियों से जीतना होगा, फिर दिल्ली में बैठे हाईकमान के खिलाफ, और उसके बाद ही आप अपना ध्यान चुनावी लड़ाई में अपनी प्रतिद्वंद्वी पार्टी की ओर दे सकते हो..."

एक ओर जहां BJP और अमित शाह इस बात की योजना बना रहे हैं कि महाराष्ट्र में सहयोगी दल शिवसेना को नाराज़ किए बिना बड़ी पार्टी बनकर कैसे उभरें, और साथ ही यह भी जता दिया जाए कि 'बॉस' कौन है, वहीं कांग्रेस अब तक सिर्फ शरद पवार के साथ सीट-बंटवारे को अंतिम रूप दे पाई है. यह भी तब हो पाया, जब शरद पवार ने सोनिया गांधी से बात की और चेताया कि जब तक समझौता नहीं होगा, दोनों ही पार्टियों से नेताओं का BJP में जाना बंद नहीं होगा. पवार बिल्कुल सही थे. उर्मिला मातोंडकर के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में कांग्रेस का उत्तर भारतीय चेहरा कहे जाने वाले कृपाशंकर सिंह भी पार्टी छोड़ चुके हैं, और अब BJP में शामिल होने की योजना बना रहे हैं.

बताया जा रहा है कि पवार खुद भी ठाकरे परिवार की दोनों शाखाओं - उद्धव तथा राज - को यह समझाने में व्यस्त हैं कि अमित शाह से सबसे फायदेमंद 'समझौता' कैसे किया जा सकता है. वह शायद इसलिए यह कर रहे हैं, क्योंकि वह समझते हैं कि कांग्रेस के साथ गठबंधन की बातचीत में समय खर्च करने की तुलना में विजेता टीम की रणनीति को अपने मुताबिक चलाने में लगाया गया वक्त ज़्यादा उपयोगी होगा.

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राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख शरद पवार तथा कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी (फाइल फोटो)...

टीम सोनिया ने कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए ट्रेनिंग मॉड्यूल पर बात ज़रूर की, लेकिन पार्टी में शीर्ष पर मौजूद वैचारिक शून्य बेहद स्पष्ट नज़र आता है. कांग्रेस को यही पता नहीं है कि आज वह कहां खड़ी है, क्योंकि उसके नेता सार्वजनिक रूप से पदों को छोड़कर जा रहे हैं. RSS की व्यवस्था की नकल करना भी उनके लिए रामबाण सिद्ध नहीं हो सकता. RSS का कार्यकर्ता बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित विचारधारा में विश्वास करता है, लेकिन कांग्रेस कार्यकर्ता के पास यह सुविधा उपलब्ध नहीं है.

यहां तक कि कश्मीर में किए गए शटडाउन तथा फारुक और उमर अब्दुल्ला जैसे मुख्यधारा के नेताओं को हिरासत में लिए जाने का विरोध भी कांग्रेस की ओर से बहुत कम रहा, और वह भी पार्टी के सोशल मीडिया हैन्डलों तक ही सीमित रहा.

पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम तथा कर्नाटक के पार्टी नेता डी.के. शिवकुमार की गिरफ्तारी का विरोध भी बेहद कमज़ोर रहा. आज की बैठक में दोनों में से किसी पर भी चर्चा नहीं की गई. नरेंद्र मोदी सरकार के रहते CBI और ED जैसी जांच एजेंसियों और कर विभाग के बेहद सक्रिय होने का सोनिया गांधी से ज़्यादा विरोध तो पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने किया है.

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पी. चिदम्बरम INX मीडिया केस में न्यायिक हिरासत में हैं...

कांग्रेस के एक नेता ने मुझसे कहा, "यहां तक कि रोज़ाना मिल रही बुरी ख़बरों के बीच अर्थव्यवस्था के डूब जाने पर भी हमारी ओर से कोई विरोध नहीं किया गया... इस मुद्दे पर हमें पूरी ताकत के साथ विरोध जताने की ज़रूरत थी, लोगों को नौकरियों की किल्लत के बारे में बताने की ज़रूरत थी, लेकिन इस मुद्दे पर एक बार डॉ मनमोहन सिंह के बात करने के बाद हम बिल्कुल चुप हो गए..."

संकट पर मुहर लगाते हुए पार्टी कोषाध्यक्ष अहमद पटेल ने राज्य इकाइयों तथा प्रत्याशियों को चेतावनी भी दी कि फंड की भारी कमी का अर्थ है कि उन्हें चुनाव में अपनी मदद खुद ही करनी होगी. आज की बैठक में इस पर भी चर्चा नहीं की गई.

कांग्रेस के मौजूदा हालात में यह टोटका सरीखा लगता है कि पार्टी ने आज की बैठक ऐसे एजेंडे के साथ की, जिससे न सिर्फ उसके प्रतिद्वंद्वी चकरा जाएंगे, बल्कि उसके अपने नेता भी. इससे पहले, कभी भी पार्टी अपनी या देश की ज़रूरतों को लेकर इतनी कटी-कटी कभी महसूस नहीं हुई थी.

स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...

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