बिहार में परीक्षाओं में नकल आम बात है। बिहार में मैट्रिक यानि 10वीं की परीक्षा में अपने बच्चों को नकल कराना मां-बाप, भाई, चाचा, मामू सबका पारिवारिक दायित्व होता है। सारे दूरदराज के संबंधी मैट्रिक की परीक्षा दिलाने के लिए इकट्ठा होते हैं।
नकल करने के नए-नए तरीके इजाद किए जाते हैं। हरेक कैंडिडेट के लिए बाहर एक मास्टर या कोई तेज विद्यार्थी होता है जो सवाल का जवाब हल करता है। उससे पहले यह सुनिश्चित किया जाता है कोई एक कैंडिडेट परीक्षा हॉल से प्रश्नपत्र बाहर फेंक दे फिर बाहर बैठे लोग उसका उत्तर तैयार करते हैं। उसके बूाद अलग-अलग तरकीबों से उत्तर को परीक्षा हॉल में पहुंचाया जाता है। इसमें स्कूल की बिल्डिंग की दीवार चढ़ना, छत पर जाना, वेंटिलेटर से पर्चा फेंकना, साथ में यह भी सुनिश्चित करना कि पर्चा आपके ही बच्चे को मिले।
यह सब काफी मेहनत का काम है और जोखिम भरा भी। सबसे आसान है वहां तैनात पुलिस वाले को पैसा या घूस देना और अपने बच्चे की पहचान बताना। एक और आसान तरीका है, वह है मास्टर साहब को घूस देना या उनसे रिश्ता निकालना चाहे वो दूर का ही क्यों न हो। यहां भी बात न बने फिर अपनी जाति का मास्टर साहब ढूंढना।
ऐसा नहीं है कि केवल मां-बाप या नाते रिश्ते वाले ही नकल करवाते हैं इसमें प्यार करने वाले, भाभियों को मदद करने वाले लड़के भी होते हैं। वैसे आपको बता दूं ऐसा पूरे बिहार में नहीं होता हाजीपुर, नवादा, समस्तीपुर, छपरा, सीवान, गोपालगंज जैसी जगह नकल कराने के लिए कुख्यात हैं। वहां नकल कराना खासकर लड़कियों के लिए इसलिए भी जरूरी है कि मैट्रिक पास लड़कियों की शादी करने में आसानी होती है।
बात यहीं खत्म नहीं होती परीक्षा के बाद जब कॉपी जांच के लिए जाती है तो सारे संबंधी यह पता लगाने में जुट जाते हैं कि वह किस जिले में किस स्कूल के किस मास्टर साहब के पास जा रही है। फिर वही पैरवी का सिलसिला, यहां भी पैसे से लेकर नाते रिश्ते निकालने का खेल दोहराया जाता है।
बिहार के शिक्षामंत्री ने साफ कर दिया कि केवल सरकार नकल को नहीं रोक सकती इसमें अभिभावकों का भी सहयोग चाहिए। मगर सरकार को यह भी स्वीकार करना पड़ेगा कि नकल का न रुकना बिहार के लचर और भ्रष्ट्र व्यवस्था का नतीजा है। जहां प्रशासन, पुलिस, टीचर सभी बिके हुए। ये बिहार के सुशासन का भी इम्तिहान है।
आखिर ये रुकेगा कैसे यह तभी बंद होगा जब कॉलेजों में दाखिले के वक्त टेस्ट लेने की प्रथा शुरू होगी या फिर पूरे शिक्षा तंत्र को दुरुस्त करना होगा। मगर जहां प्राथमिक शिक्षा का पूरा ढांचा मैट्रिक पास शिक्षा मित्रों पर निर्भर है जिन्हें केवल 4 हजार की पगार मिलती हो वहां व्यवस्था कैसे बदलेगी। यह सोचना सरकार के साथ स्थानीय प्रशासन के साथ हम सब का है। अंत में इतना ही कहूंगा कि शर्म करो बिहारियों फेल हो जाने दो इनको मगर चोरी की नींव मत डालो 10वीं की परीक्षा के वक्त। यही आगे जा कर बोझ बनेंगे आपके लिए।