मनोरंजन भारती की कलम से : पीएम मोदी के भाषण के रंग

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लोकसभा में भाषण कुछ ऐसा था, जो उनको दिल्ली के चुनाव में देना चाहिए था। वैसे यह भाषण विपक्ष के लिए तो था ही, मगर उससे से अधिक बीजेपी के सांसदों और कार्यकर्ताओं के लिए था, जिनका मनोबल दिल्ली चुनाव में हार के बाद गिर गया था। प्रधानमंत्री पूरे चुनावी मूड में दिखे, हालांकि अभी कहीं चुनाव नहीं होने वाले हैं।

भाषण एक ऐसी कला है, जिसमें प्रधानमंत्री को महारत हासिल है और इसमें उनको शतप्रतिशत नंबर मिलेगें। मगर विपक्ष के मल्लिकार्जुन खडगे की टिप्पणी को नहीं भूलना चाहिए कि केवल भाषण से पेट नहीं भरता।

सोशल मीडिया पर जो प्रतिक्रिया आ रही है, उसमें प्रधानमंत्री की ढेरों तारीफ है। मगर साथ में लोग अब चाहने लगे हैं कि कुछ ठोस धरातल पर भी दिखाई दे। लोग बदलाव की उम्मीद कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री ने मनरेगा की बात की साथ में यह भी संकेत दिया कि इस योजना को बंद नहीं किया जाएगा, मगर इसमें बदलाव किया जाएगा। दरअसल बीजेपी में मनरेगा को लेकर कई सवाल हैं। इसमें खर्च होने वाले पैसे को लेकर भी सवाल है। ये चिंता चिदंबरम के समय भी दिखी, उनके वक्त भी पैसे के आवंटन पर खूब खींचतान होती थी। यही हालात इस सरकार के वक्त भी है।

केंद्र सरकार लोगों को मिलने वाली रियायतों यानि सब्सिडी के बोझ को कम करना चाहती है, तभी सरकार विकास दर को 8 फीसदी तक ले जा सकती है।

प्रधानमंत्री के भाषण का एक महत्वपूर्ण पहलू था सांप्रदायिक बयानबाजी पर टिप्पणी करना। प्रधानमंत्री ने साफ तरह जताया कि इस तरह के बयानों को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। ऐसा लगता है कि हाल के दिनों में बीजेपी नेताओं के तरफ से जो बयानबाजी हुई, उससे प्रधानमंत्री की छवि पर असर पड़ा।

चर्च पर हमले, ओबामा की टिप्पणी इस सबसे लग रहा था कि प्रधानमंत्री संघ के साए से निकल नहीं पा रहे हैं। इस मौके पर प्रधानमंत्री की राज्यसभा में चुप्पी और सदन का न चलना, कुछ ऐसे मसले थे कि प्रधानमंत्री या तो बेबस दिख रहे थे या लग रहा था कि वह इन मुद्दों पर बचना चाहते हैं। फिर वह नाम लिखे सूट का मसला आया, मगर जैसे ही प्रधानमंत्री को मौका मिला उन्होंने चौका जड़ दिया।

प्रधानमंत्री ने भूमि अधिग्रहण बिल पर विपक्ष से सहयोग मांगा यहां पर उनकी मजबूरी है। आकडें राज्यसभा में उनके अनुकूल नहीं हैं। बिना विपक्ष के सहयोग के यह बिल राज्यसभा में फंस सकता है। दूसरे सरकार किसान विरोधी की छवि से निकलना चाहती है।

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यही वजह है कि प्रधानमंत्री का हाव भाव इस सत्र के शुरुआत में बदला-बदला सा था। उन्होंने सत्र के पहले दिन विपक्षी नेताओं का अभिवादन भी किया। मुलायम सिंह के भाई के पोते के तिलक में सैफई गए, शरद पवार से मुलाकात की और आज फिर कहा कि हाथ जोड़ता हूं मदद किजिए इस बिल पर, यानि एक ही भाषण में वह दहाड़े भी, धमकाया भी और प्रार्थना भी की। मगर लोग अब उम्मीद में बैठे हैं कि अब तो अच्छे दिन आ जाएं।