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This Article is From Jan 24, 2018

'पद्मावत' का विरोध, मगर किसके शह पर

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 24, 2018 18:09 pm IST
    • Published On जनवरी 24, 2018 18:01 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 24, 2018 18:09 pm IST
पद्मावत फिल्म का विरोध जारी है. करणी सेना के लोगों ने अहमदाबाद में एक मॉल के बाहर करीब 50 मोटर साईकिलों को जला डाला. इसी तरह अब सबकी निगाहें गुड़गांव और नोएडा पर है, जहां बडी संख्या में और बड़े- बड़े मॉल हैं और इन सबके बीच सबसे हैरान करने वाली बात ये है कि करणी सेना के किसी भी प्रतिनिधि ने इस फिल्म को नहीं देखा है. यह केवल अपने देश में हो सकता है कि बिना फिल्म देखे, बिना किताब पढ़े लोग उस पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हैं, आंदोलन करते हैं, गाडियां जलाते हैं, बंद का आह्वाहन करते हैं. जिन्हें पद्मावत देखने का मौका मिला है, उनके अनुसार इस फिल्म में राजपूताना ठाठ को दिखाया गया है. खासकर राजपूतों की मर्यादा और उनके जुबान के पक्के होने की आदत को.

फिल्म में खिलजी और पद्मावती का एक भी सीन साथ में नहीं है. खिलजी को बहुत ही बुरे चरित्र का दिखाया गया है. उसका रोल काफी निगेटिव है. यहां तक की फिल्म में खिलजी की पत्नी को पद्मावती को मदद करते हुए दिखाया गया है. अब सवाल उठता है कि जब फिल्म में कुछ है ही नहीं, तब भी विरोध क्यों है? देखनेवाली बात ये है कि पद्मावत का सबसे ज्यादा विरेोध राजस्थान, हरियाणा और गुजरात में हो रहा है, जहां लोग सड़कों पर उतर आए हैं. 

यदि आप गौर करगें तो पाऐंगे कि इन सभी राज्यों में बीजेपी सत्ता पर काबिज है. राजस्थान की वसुंधरा सरकार की तो मजबूरी है कि वहां पर दो लोकसभा सीटों के लिए उपचुनाव होने हैं- अजमेर और अलवर में. जबकि भीलवाड़ा के मांडलगढ़ में विधानसभा के लिए उपचुनाव है. इसलिए वसुंधरा सरकार से कोई भी कार्रवाई की उम्मीद करना ही बेमानी है. यदि वसुंधरा को कार्रवाई करनी होती तो करणी सेना के प्रमुख कालवी पर उसी दिन मुकदमा कर देती, जिस दिन उनके लोगों ने पद्मावत के सेट को तोड़ा था और भंसाली को थप्पड़ जड़े थे. यदि उस वक्त कालवी पर मुकदमा हो जाता तो आज ये नौबत ही नहीं आती. मगर करणी सेना को छुट मिलती गई और वो आम जनता के लिए एक मुसीबत बन गया. जबकि राजस्थान सरकार को यह सब सूट करता है. 

तो क्या पद्मावत आंदोलन के बहाने इस आंदोलन को एक संप्रदायिक टोन भी देने की कोशिश नहीं हो रही है? आखिर सरकोरों की ये चुप्पी किसको पसंद आ रही है. गोरक्षा के बहाने हिंसा, पद्मावत के बहाने तोड़-फोड़ ये सब उसी उग्र हिंदुत्व की ओर इशारा कर रहा है, जिसका अंदाजा समाज को हाल के दिनों में हुआ है. मगर सरकारें कार्रवाई के बजाय मूक दर्शक बनी है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का क्या, वो तो संविधान में ही है, मगर तब तक जब तक कि सरकारें उसकी अनुमति दें.

(मनोरंजन भारती एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एक्जीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल, न्यूज हैं)

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