बिहार में राजनीतिक उठा-पटक अपने चरम पर है। नीतीश कुमार ने राज्यपाल से मिल कर नई सरकार बनाने का दावा पेश कर दिया है। इस दौरान लालू यादव भी उनके साथ थे। दोनों ने राज्यपाल से जल्दी फैसला करने की अपील की है। अब सबकुछ राज्यपाल केसरी नाथ त्रिपाठी के हाथों में ही है।
केसरी नाथ त्रिपाठी राजनीति के मंझे हुए खिलाडी हैं। उत्तर प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष रह चुके हैं और जब उत्तर प्रदेश विधानसभा में माइक फेके गए थे, हंगामा हुआ था, तब विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी पर त्रिपाठी ही थे।
बीजेपी की रणनीति साफ है या तो वह मांझी की सरकार बनवाए और उसे चलाए, जिसकी संभावना कम दिखती है। मगर बीजेपी यह जरूर चाहेगी कि मांझी को सदन में बहुमत सिद्ध करने का मौका मिले, जिससे यह साबित होगा कि मांझी के साथ कितने विधायक हैं। अगर विधायक मांझी के साथ जाते हैं, तो बीजेपी चाहेगी कि वह एक नई पार्टी बनाए, जिसमें आरजेडी के पप्पू यादव भी जा सकते हैं।
बीजेपी मांझी की पार्टी को फंड करेगी और महादलित नेता के रूप में स्थापित करने की कोशिश करेगी और नीतीश कुमार के महादलित वोट में सेंध लगाने की कोशिश करेगी।
बीजेपी की दिक्कत है कि बिहार के सभी सीटों पर उनके पास मजबूत उम्मीदवार नहीं है। वजह यह है कि पिछले चुनाव तक बीजेपी और जेडीयू साथ-साथ लड़ती थी। साल 2010 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 102 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और जेडीयू 141 सीटों पर, बीजेपी इन 141 सीटों पर दांव खेलना चाहती है। वह तो चाहेगी कि जेडीयू के ज्यादा से ज्यादा लोग लाए जाए और बीजेपी के टिकट पर चुनाव लडें।
अभी बिहार का संकट लंबा चलाया जाएगा, ताकि नीतीश कुमार को सत्ता का लालची साबित किया जाए, क्योंकि मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद नीतीश कुमार के साथ त्याग की छवि जुड़ गई थी, जो बीजेपी के किसी भी रणनीति पर भारी पड़ रही थी।
बीजेपी यह भी चाह सकती है कि वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाए और परोक्ष रूप से शासन किया जाए। बीजेपी यह कभी नहीं चाहेगी कि नीतीश नवंबर तक मुख्यमंत्री रहें और एक बार फिर चीजों को ठीकठाक कर दें।
हालांकि नीतीश कुमार के पक्ष में यह जरूर हुआ है कि लालू यादव खुल कर उनके साथ आ गए हैं। जहनी तौर पर लालू को नीतीश को मुख्यमंत्री के तौर पर स्वीकार करने में वक्त लगा, यही चीज अगर पार्टी कार्यकत्ताओं में हो जाए तो नीतीश कुमार की राह आसान हो जाएगी।
यह भी जरूर है कि अगर बीजेपी ने मांझी की सरकार बनवाई तो उसे उसका साथ निभाना पड़ेगा। चुनाव के वक्त मांझी को छोड़ना बीजेपी के लिए भी घातक होगा। इसलिए बिहार का खेल इतमीनान से रणनीति के तहत बीजेपी खेलेगी, क्योंकि दिल्ली चुनाव से फ्री होने के बाद बीजेपी का सारा ध्यान बिहार पर ही होगा और अमित शाह नीतीश को जरूर सबक सिखाना चाहेगें, क्योंकि नीतीश हमेशा से मोदी पर हमला करने से नहीं हटते।
This Article is From Feb 09, 2015
बाबा की कलम से : मझधार में मांझी
Manoranjan Bharti, Saad Bin Omer
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Updated:फ़रवरी 09, 2015 18:43 pm IST
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Published On फ़रवरी 09, 2015 18:36 pm IST
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Last Updated On फ़रवरी 09, 2015 18:43 pm IST
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