मायावती ने एकला चलो रे का एलान कर दिया है मतलब उत्तर प्रदेश में जो 11 उपचुनाव होन वाले हैं उसमें बीएसपी अपने उम्मीदवार खड़े करेगी मगर जो तर्क मायावती ने दिए उसकी जांच पड़ताल करनी जरूरी है. मायावती ने कहा कि उनके एकला चलो रे के पीछे वजह है कि समाजवादी पार्टी के वोट बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवारों को नहीं मिले. अब जरा मायावती के इसे दावे की छानबीन करते हैं. आंकड़ों के मुताबिक बीएसपी ने उत्तर प्रदेश के जिन 38 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे उसमें से 37 सीटों पर बीएसी के वोटों में इजाफा हुआ है और कई जगह तो बीएसपी को 2014 के मुकाबले 2019 में दुगने वोट मिले हैं. 38 में से केवल एक सीट फतेहपुर सीकरी में बीएसीपी का वोट प्रतिशत गिरा है वरना सहारनपुर, बिजनौर, नगीना, अमरोहा, मेरठ, फर्रूखाबाद, लालगंज, गाजीपुर जैसे लोकसभा क्षेत्र में बीएसपी को 2014 के मुकाबले दोगुना वोट मिले हैं. और यह सब समाजवादी पार्टी के वोटों के बिना संभव नहीं हो सकता था. यही नहीं, बीएसपी जो 10 सीटें जीती है उसमें से 7 सीटों पर बीएसपी का वोट प्रतिशत 2014 के सपा और बसपा के मिले इकट्ठा वोटों से भी अधिक है. क्या इसके बाद भी मायावती शिकायत कर सकती हैं.
यदि आंकड़ों को देखें तो शिकायत अखिलेश यादव को करनी चाहिए क्योंकि उनकी सीटें इस लोकसभा चुनाव में नहीं बढीं. सपा के पास 5 सीटें ही हैं इसबार जो 2014 में भी थी. यही नहीं समाजवादी पार्टी कन्नौज, जहां से अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव, बदायूं जहां से चचरे भाई धर्मेन्द्र यादव और फिरोजाबाद से एक और भाई अक्षय यादव चुनाव हार गए. ऐसे में मायावती ने अखिलेश पर कैसे यह इल्जाम लगाया इसका जवाब वही दे सकती हैं.
वैसे उत्तर प्रदेश की राजनीति पर नजर रखने वाले कुछ लोग यह जरूर मानते हैं कि यह जरूर हुआ होगा कि यादवों ने एकमुश्त बीजेपी के उम्मीदवार को वोट ना दिया हो. इसकी वजह यह है कि यादव पिछली मायावती सरकार के दौर को नहीं भूले हैं और इसबार शायद बीएसपी को वोट करने से परहेज किया हो. जिन 11 सीटों के उपचुनाव पर मायावती अकेले अपने उम्मीदवार खड़े करने की बात कर रही हैं उनमें से केवल एक सीट जलालपुर वह जीतने की हालत में हैं. वहां पर बीजेपी और बीएसपी के बीच 5 फीसदी वोटों का अंतर है. उसी तरह रामपुर की सीट सपा अकेले जीत सकती है मगर बाकी नौ सीटों पर अगर बसपा और सपा अलग-अलग लड़ते हैं तो उनकी हार निश्चित है क्योंकि बाकी बची सीटों पर बीजेपी सपा या बसपा से काफी ज्यादा मतों से आगे है.
मायावती के अखिलेश से अलग होने की वजह यह भी है कि अब वे उत्तर प्रदेश की राजनीति ही करना चाहती हैं. लोकसभा चुनाव में गठबंधन के पहले मायावती ने यह सपना देखा था कि यदि गठबंधन को 50 के करीब सीट आती है तो वो प्रधानमंत्री बनना चाहेगीं और ये बात उन्होंने चंद्रबाबू नायडू जैसे नेताओं को बातचीत में बोल भी दिया था. मगर लोकसभा चुनाव के नतीजों ने मायावती के मंसूबों पर पानी फेर दिया. तब यह तय हुआ था कि मायावती केन्द्र की राजनीति करेंगी और अखिलंश उत्तर प्रदेश की.
लोकसभा चुनाव में हार के बाद मायावती को लगा कि अगले पांच साल तक अकेले बैठने की बजाए 2022 के विधानसभा चुनाव की तैयारी की जाए मगर अखिलेश को आगे करके नहीं, खुद को उससे अलग करके, खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश करके. यही वजह है कि मायावती ने अखिलेश को बीच मझधार में छोड़ दिया. अब हाथी अकेला चल पड़ा है, उसे साईकिल की जरूरत नहीं है. देखते हैं अकेला हाथी आज के राजनैतिक हालात में कहां तक पहुंचता है और अखिलेश की अकेली साईकिल कहीं रास्ते में पंचर तो नहीं हो जाती है.
(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...)
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