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This Article is From May 02, 2021

'दीदी-ओ-दीदी' पर लोगों ने कर दिया 'खेला हौबे'...

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 07, 2021 19:13 pm IST
    • Published On मई 02, 2021 17:04 pm IST
    • Last Updated On मई 07, 2021 19:13 pm IST

दिल्ली से 3 अप्रैल को जब मैं बंगाल चुनाव के कवरेज के लिए कोलकाता पहुंचा तो मन में एक धारणा थी. मैंने कोलकाता में एनडीटीवी के अपने वरिष्ठ सहयोगी मोनीदीपा को कहा कि यहां तो बीजेपी ही जीतेगी तो उसने मुझे घूर कर देखा.. मानो कह रही हो कि अभी अभी दिल्ली से आए हो, पहले थोड़ा घुमो, थोड़ा गांव देहात की ओर जाओ फिर बात करेंगे. उसके बाद मैंने बंगाल में अपनी रिर्पोटिंग के सिलसिले में घुमना शुरू किया. सिंगूर गया जहां से सीपीएम से 26 साल के सृजन भट्टाचार्य लड़ रहे थे. हमने उनसे पूछा कि आपने सिंगूर क्यों चुना, यह तो सीपीएम के लिए वाटरलू साबित हुआ था, तारकेश्वर भी गया जहां से स्वपन दासगुप्ता चुनाव लड़ रहे थे, वो भी राज्यसभा से इस्तीफा दे कर. उनको भी पूछा कि सर आप राज्यसभा छोड कर चुनाव लड़ रहे हैं, यदि नहीं जीते तो आपका पॉलिटिकल करियर शुरू होने के पहले ही खत्म हो जाएगा. उन्होंने कहा कि बीजेपी के लिए बंगाल का चुनाव एक यज्ञ है जिसमें सबको आहूति देनी है और मैंने भी दी है. बहरहाल 15 दिनों तक घूमने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा था कि ममता बनर्जी जीत रही हैं.

इसकी कई वजह थी. पहला बीजेपी का आक्रामक प्रचार जिसमें बीजेपी ने अपनी सारी ताकत झोंक दी थी. मैं जिस होटल में ठहरा था वहां बीजेपी के तमाम नेता थे. यकीन मानिए मुझे बिहार, यूपी और मध्यप्रदेश के वो तमाम नेता मिले जो बीजेपी में कुछ भी पद पर थे, कोलकाता में मौजूद थे. यानी बीजेपी ने कारपेट बांबिग कर दी थी. उपर से प्रधानमंत्री की 4-4 रैलियां हो रही थीं. गृहमंत्री अमित शाह रोड शो कर रहे थे. पहली बार बंगाल के लोग जय श्री राम का नारा सुन रहे थे.

शायद बीजेपी भूल गई थी कि बंगाल मां दुर्गा और मां काली की धरती है. यहां इन दोनों देवियों की कहानी बच्चा बच्चा बचपन से सुनता है, पूजता है. फिर वो हुआ जो होना नहीं चाहिए था. प्रधानमंत्री ने 'दीदी ओ दीदी' का नारा लगाया तो बंगाल की जनता ने कहा ये क्या, ये कौन सी भाषा है. हमारे यहां तो ऐसी भाषा का इस्तेमाल नहीं होता है. लोगों को बुरा लगा कि मां दुर्गा और काली की धरती पर औरत का अपमान. और जब वोटिंग के दिन मैं जब रिपोर्टिंग के लिए निकलता था तो महिलाओं की लाईन देख कर दंग रह जाता था. आधा किलोमीटर तक महिलाओं की कतार और किसी ने शायद इन्हें अपने सर्वे में जगह नहीं दी होगी. इन महिलाओं के लिए ममता एकमात्र महिला मुख्यमंत्री, बीजेपी से अकेली लडती महिला, सब ने एक ऐसी छवि बनाई जो सब पर भारी पड़ गई.

दूसरे ममता ने इस चुनाव को लोकल स्तर पर रखा यानी उनकी रैली में फुटबाल होता था जो वो दर्शकों की तरफ फेकती थीं. उनका भाषण बांग्ला में होता था जबकि बीजेपी के बड़े नेता हिंदी बोलते थे. इन्हीं सब की वजह से ममता ने वही किया जो मोदी गुजरात विधानसभा चुनाव में किया करते थे. चुनाव को राज्य की अस्मिता से जोड़ना. ममता ने भी यही किया. उन्होंने इस चुनाव को बंगाल की अस्मिता से जोड़ दिया और खुद को बंगाल टाईगर घोषित कर दिया. दूसरी तरफ परदे के पीछे प्रशांत किशोर अपनी रणनीति के साथ तैयार थे. उनका फार्मूला साफ था,  महिलाओं और अल्पसंख्यकों का पूरा वोट और बंगाली हिंदुओं का वोट. एक बार यह समीकरण बैठ गया कि बंगाल में खेला हो गया.

यह चुनाव जाहिर तौर पर देश की राजनीति की दिशा तय करेगा और यह भी तय करेगा कि मर्यादा जरूरी है चाहे वो जीवन हो या चुनाव. और अतिआत्मविश्वास और येन केन प्राकरेण चुनाव नहीं जीते जाते. अंत में जब मैं कोलकाता से चलने लगा तो मोनीदीपा को बोला कि आप सही थीं, ममता जीत रही हैं. दिल्ली पहुंचने तक कोई भी पूछता था कि क्या होगा बंगाल में तो मैं कहता था कि मुकाबला बहुत कड़ा है मगर ममता थोड़ा आगे हैं. डरता था पता नहीं गलत न हो जांऊ, इसलिए थोडा बीच का रास्ता रखता था मगर क्या पता था ये जीत ऐसी है जो पूरी बीजेपी को लंबे समय तक चुभेगी...

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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