राजस्थान में सचिन पायलट धरने पर बैठने जा रहे हैं. इसको लेकर सियासी हलकों में तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं. साथ ही कई तरह के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं. लेकिन सचिन पायलट ने साफ कर दिया कि वे अकेले धरने पर बैठेंगे, कोई और विधायक उनके साथ नहीं होगा यानि इससे पायलट गुट के सर्मथन वाले विधायकों की संख्या का अनुमान नहीं लगाया जा सकेगा.
दूसरा पायलट का यह धरना वसुंधरा सरकार के दौरान कथित तौर पर हुए भ्रष्ट्राचार और अभी तक उस पर कुछ कार्रवाई ना होने के खिलाफ किया जा रहा है. धरने के दौरान कोई भाषण नहीं होगा केवल भजन होगा. इससे सचिन पायलट एक तीर से कई शिकार करना चाहते हैं. मगर उनको भी मालूम है कि इसमें जोखिम भी कम नहीं हैं.
अशोक गहलोत अपनी कुर्सी पर मजबूती से डटे हैं और ज्यादात्तर विधायक उनके साथ बताए जाते हैं. यही नहीं, दिल्ली में बैठे नेता भी गहलोत के साथ है वजह चाहे जो भी हो. यह महज संयोग ही है कि एक वक्त में तब की कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मल्लिकार्जुन खरगे और अजय माकन को अपना दूत बनाकर जयपुर भेजा था. उन्हें विधायकों की रायशुमारी के लिए भेजा था, लेकिन वह बैठक नहीं पाई. खरगे और माकन बैरंग लौट आए. अपनी रिपोर्ट सोनिया गांधी को दी और बात आई गई हो गई.
मजेदार बात है कि खरगे साहब अब कांग्रेस अध्यक्ष है और उनकी अपनी रिपोर्ट ही उनकी टेबल पर होगी. पता नहीं उसमें उन्होंने क्या लिखा है मगर उस रिपोर्ट की कोई चर्चा नहीं करता हैं. हां, कभी-कभी अजय माकन और कभी-कभी पायलट का बयान उस रिपोर्ट को लेकर जरूर आता है. अब जब पायलट धरने पर बैठने जा रहे हैं तो कांग्रेस आलाकमान जरूर असहज होगा कि इसे कैसे टाला जाए?
लेकिन सचिन पायलट के साथ दिक्कत है कि आखिर कब तक इंतजार किया जाए. 2018 में सरकार बनाने के लिए आंकड़े जुटाने के लिए अनुभवी व्यक्ति चाहिए के नाम पर अशोक गहलोत के नाम पर सहमति बनी और सचिन पायलट उपमुख्यमंत्री बने. उससे पहले प्रदेश अध्यक्ष थे. सरकार चलती रही सचिन के पास बाद में उप-मुख्यमंत्री की कुर्सी भी नहीं रही. विधायकों का शक्ति परीक्षण भी होता रहा और विधायकों की खेमेबंदी भी. दिन बीतते गए फिर सोनिया गांधी ने खरगे और माकन को जयपुर भेजा.
पहले कहा गया कि कांग्रेस के नए अध्यक्ष का चुनाव हो जाए, फिर 'भारत जोड़ो' यात्रा को राजस्थान से निकलने दीजिए कहा गया, फिर कहा गया कि 'भारत जोड़ो' यात्रा को खत्म होने दीजिए. फिर हुआ कि अशोक गहलोत अपने इस कार्यकाल का आखिरी बजट ले आए. जिसकी बड़ी चर्चा हुई कि लोगों के लिए इतनी योजनाएं ले आए हैं.
अब बातें हो रही हैं कि कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष व्यस्त रहने वाले हैं. वह उनका गृह राज्य तो इसके रिजल्ट आने के बाद. उधर, जाहिर है राजस्थान के मुख्यमंत्री के तौर पर गहलोत अपनी स्थिति को लगातार मजबूत करने में लगे हैं. विधायकों के साथ-साथ अब अपने बजट के साथ वो दूसरी बाजी जीतने की कोशिश में लगे हैं. तो अब कांग्रेस आलाकमान क्या करेगा. खास कर राहुल और प्रियंका गांधी क्योंकि सचिन पायलट अभी तक लगातार उनके द्वारा मिले आश्वासन की ही बात करते रहे हैं.
कांग्रेस अध्यक्ष खरगे हों या राहुल और प्रियंका गांधी सभी को लगता है कि अभी किसी एक का साथ दिया तो वे दूसरे को खो देगें और पार्टी का नुकसान होगा या पार्टी बिखर जाएगी.
सचिन पायलट के साथ दिक्कत है कि वह बीजेपी में जा नहीं सकते क्योंकि वहां वसुंधरा हैं, गजेन्द्र सिंह शेखावत हैं. दूसरा उनका धरना भी वसुंधरा के खिलाफ ही है तो विकल्प क्या है सचिन के पास? क्या वे हनुमान बेनीवाल की तरह अपनी पार्टी बना लें या फिर केजरीवाल की आम आदमी पार्टी का दामन थामकर बेनीवाल के साथ एक मोर्चा बना लें. या कांग्रेस में रहते हुए अपनी बात कहते रहें.
लेकिन तब क्या होगा अगर अशोक गहलोत फिर से चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बन जाते हैं. यानि कांग्रेस और सचिन पायलट के लिए यह समस्या किसी चक्रव्यूह से कम नहीं है. और इसका खामियाजा अंत में कांग्रेस को ही उठाना पड़ेगा. कहीं राजस्थान भी पंजाब की राह पर तो नहीं चल पड़ा है?
मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...
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