राजस्थान में चल रहे सत्ता के शह और मात के खेल में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को पटकनी दे दी है. मगर खेल अभी खत्म नहीं हुआ है क्योंकि सचिन पायलट अभी भी कांग्रेस में हैं. गहलोत को राजस्थान में वहां की राजनीति का जादूगर भी कहा जाता है वजह है कि गहलोत के पिता जादूगर थे और गहलोत ने भी बचपन में कुछ गुण उनसे सीखे हैं. यही वजह है कि हर बार वे अपनी सरकार बचा ले जाते हैं. कभी बीएसी तो कभी निर्दलीय तो कभी दोनों गहलोत को अपना सर्मथन दे देते हैं.
गहलोत तीन बार राजस्थान के मुख्यमंत्री रहे हैं. पहली बार तो तब बने थे जब उन्होंने बीजेपी के कद्दावर नेताओं में से एक भैरोंसिंह शेखावत को हराया था. राजस्थान की राजनीति में नीचे से ऊपर तक का उनका सफर उन्होंने बड़ी मेहनत से तय किया, वह भी राजस्थान में जहां जाति मायने रखती है. गहलोत माली जाति से आते हैं और उनकी सफलता के पीछे भी यही कारण है. किसी को भी नहीं लगा कि एक माली जाति के नेता से किसी को नुकसान होगा क्योंकि उनकी जाति राजनीतिक रूप से उतनी वजनदार नहीं मानी जाती. दिल्ली के 10 जनपथ में गहलोत की अच्छी पैठ है और सोनिया,राहुल और प्रियंका तीनों गांधी से उनके अच्छे संबंध हैं.
दूसरी तरफ सचिन की राजनीति को देखते हैं... 36 साल में सांसद बन गए. उसके पहले राजेश पायलट अपनी विरासत उनके लिए छोड़ गए थे. मां रमा देवी भी सांसद रहीं. उनके श्वसुर फारूक अब्दुल्ला और साले उमर अब्दुल्ला, दोनों ही जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री रहे. कहने का मतलब है कि सचिन के पीछे एक मजबूत राजनैतिक विरासत है जो उन्हें बहुत सारे कांग्रेस नेताओं से अलग करती है और उन्हें बाकियों से ऊंचे पायदान पर बैठाती है. मगर राजस्थान के इस संकट ने यह साबित कर दिया कि युवा सचिन अपनी राजनैतिक गोटियां शतरंज की बिसात पर ठीक से खेलने में विफल रहे. अब यह तय हो गया है कि सचिन के पास विधायक नहीं हैं. जाहिर है सचिन को लगा होगा कि वे पार्टी अध्यक्ष हैं
इसलिए उनके पास विधायक आ जाएंगे, मगर यह हो ना सका.
दूसरी तरफ बीजेपी, या कहें वसुंधरा ने साफ कर दिया कि बीजेपी में सचिन के लिए कोई जगह नहीं है, खासकर राजस्थान में. हां, उन्हें बीजेपी में आना है तो दिल्ली की राजनीति करें. फिर अशोक गहलोत का यह कहना कि सचिन सरकार में उप मुख्यमंत्री रहते हुए सरकार गिराने की कोशिश में जुटे रहे और विधायकों को खरीदने की कोशिश करते रहे हैं जिसका सबूत उनके पास है. जाहिर है सरकार उनकी है तो सबूत भी होगा, फोन की रिर्काडिंग भी होगी. ऐसे में पायलट का केस कमजोर होता गया.
मगर कांग्रेस आलाकमान ने सचिन को एक डूबते को सहारा देने की तरह एक और मौका देने का काम किया. सचिन फिलहाल कांग्रेस में हैं मगर राजस्थान की राजनीति से बाहर रहेंगे. थोड़े दिन चुप रहने के लिए भी कहा गया है. सभी विधायकों को हरियाणा से जयपुर भेजने को कहा है. कांग्रेस ने यह भी कहा है कि सचिन जुझारू साथी रहे मगर भाजपा के चंगुल में फंसकर भटक गए थे. साथ ही सचिन के लिए कांग्रेस के दरवाजे 48 घंटे पहले भी खुले थे और अब भी खुले हैं. कांग्रेस मानती है कि सुबह का भूला शाम को घर लौट आए तो भूला नहीं कहलाता.
दरअसल कांग्रेस अभी मानती है कि पार्टी को युवा नेताओं की जरूरत है लेकिन उन्हें अपनी महत्वाकांक्षा पर संयम रखने की भी जरूरत है. कांग्रेस का यह भी मानना है कि युवा नेताओं को मेहनत का फल मिलेगा मगर सही समय का इंतजार कीजिए. सचिन और बीजेपी को भी पता चल गया कि यह राजस्थान है, मध्यप्रदेश नहीं. यहां एक जादूगर बैठा है जो तीन बार मुख्यमंत्री रह चुका है ..कमलनाथ की तरह पहली बार विधायक नहीं बना है. वैसे कमलनाथ नौ बार सांसद रहे हैं. मध्यप्रदेश में सिंधिया थे जो केन्द्र की राजनीति करने के लिए तैयार थे और राज्यसभा सांसद बन गए जबकि राजस्थान में सचिन मुख्यमंत्री बनने की जिद पकड़ बैठे थे. वैसे सचिन के साथ उम्र है और कांग्रेस में रहे तो काफी आगे तक जाएंगे. मगर फिलहाल यही कह सकते हैं कि अभी न घर के रहे ना घाट के.
(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं.)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.