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This Article is From Dec 11, 2014

मनीष शर्मा की कलम से : सिर्फ अल्पसंख्यकों के धर्म परिवर्तन पर हल्ला क्यों?

Manish Sharma, Rajeev Mishra
  • Blogs,
  • Updated:
    दिसंबर 11, 2014 22:02 pm IST
    • Published On दिसंबर 11, 2014 21:57 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 11, 2014 22:02 pm IST

कई दिनों से आगरा में हुए 57 मुस्लिम परिवारों का धर्म-परिवर्तन का मामला न्यूज़ पेपर और टेलीविज़न में चर्चा का विषय बना हुआ है। बात इतनी बढ़ी कि संसद तक पहुंच गई और सांसदों के हाथ काम न करने का एक और बहाना लग गया। अब आगे की खबर है कि 25 दिसम्बर यानि क्रिसमस के दिन अलीगढ़ में 5000 लोगों की हिन्दू धर्म में 'घर-वापसी' की तैयारी हो रही है।

कुछ लोग ऐसी घटना को भारत के सेक्युलर ढांचे के खिलाफ बता रहे हैं और कुछ लोग इसे 'घर-वापसी' कह रहे हैं और कहते हैं कि अगर कोई अपनी भूल सुधारकर स्वेच्छा से घर वापसी करना चाहता है तो इसमें किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।

धर्म-परिवर्तन सही है कि गलत, इस पर चर्चा बाद में करेंगे पर फ़िलहाल बात करेंगे सोशल नेटवर्किंग साइट में आए ऐसे ट्वीट  की जो संसद में माहौल गर्म करने वाले नेताओं और सड़क पर उतरे लोगों के विचारों से बिलकुल भिन्न है।

ट्वीट में था, 'भारतीय पत्रकार तब हंगामा नहीं करते जब हिन्दुओं का ज़बरदस्ती धर्म-परिवर्तन कराया जाता है। तब बड़ी खबर क्यों बन जाती है, जब मुसलमानों को हिन्दू बनाया जाता है।' ये कहना किसी संघी, भाजपाई का नहीं बल्कि बांग्लादेश की प्रसिद्ध लेखिका तस्लीमा नसरीन का है। तस्लीमा नसरीन आगे कहती हैं, 'पहले मुसलमानों और ईसाइयों ने लोगों को खाने और पैसे का लालच देकर ज़बरदस्ती धर्म-परिवर्तन करवाया, अब हिन्दू भी वही कर रहे हैं। बिना ज़बरदस्ती धर्म-परिवर्तन के इस्लाम का अस्तित्व ही नहीं होता।"

अब तस्लीमा विविदित लेखिका हैं तो ये भी ज़रूरी है कि समय-समय पर 'विवादित' बात भी करेंगी। उनके आज के ट्वीट से कुछ लोग सहमत होंगे तो कुछ लोग असहमत। पर कितना सच है, आइए यह जानने की कोशिश करते हैं।

25 जून 2012 को केरल के मुख्यमंत्री ओमन चांडी ने विधानसभा को जानकारी दी कि 2006 से 2012 तक 7713 लोगों ने इस्लाम धर्म को अपनाया जबकि 2803 लोग ही हिन्दू बने। 2009-2012 के बीच 2687 महिलाएं मुस्लिम बनीं, जिसमें 2195 हिन्दू थीं और 492 ईसाई थीं। इतनी बड़ी खबर को तब लोकल और नेशनल दोनों मीडिया ने भाव नहीं दिया और न ही यह इतनी गंभीर बन सकी की संसद में चर्चा का विषय बन सके।

दूसरी जानकारी है, ओडिशा के कन्धमाल की, जिसे भी मीडिया ने संवेदनशील नहीं समझा। शायद यह अल्पसंख्यकों के खिलाफ का मामला नहीं था। सिर्फ इक्का-दुक्का समाचार पत्रों ने अपने पन्नों में इसे जगह दी। कन्धमाल बहुत समय से ईसाई और हिन्दू संगठनों के बीच शक्ति प्रदर्शन का एक केंद्र बन कर रह गया है।

राष्ट्रीय अल्पसंखयक आयोग ने 2008 में हुए कन्धमाल दंगों की रिपोर्ट में माना कि इस क्षेत्र में हिन्दुओं के मुकाबले ईसाइयों की जनसंख्या में भारी इज़ाफ़ा हुआ है। भारतीय जनगणना के मुताबिक कन्धमाल में ईसाइयों की जनसंख्या 1961 में सिर्फ 19,128 थी जो 2001 में बढ़कर एक लाख 17 हज़ार हो गई, चालीस सालों में 66 प्रतिशत की बढ़ोतरी। हालांकि ओडिशा के फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट 1967, जबरदस्ती धर्म परिवर्तन के खिलाफ है। पर यह कानून यह भी कहता है, मजिस्ट्रेट की मंजूरी लेकर कोई भी अपना धर्म-परिवर्तन कर सकता है। इतने साल बीत जाने के बाद सिर्फ दो लोगों ने ही धर्म-परिवर्तन के लिए आवेदन किया है। इस इलाके में ईसाइयों की जनसंख्या में थोड़े ही समय में भरी वृद्धि का जवाब राज्य सरकार के पास भी नहीं है।

राष्ट्रीय अल्पसंखयक आयोग ने अपनी 2008 की रिपोर्ट में कहा की राज्य में 40 सालों से फ्रीडम ऑफ़ रिलिजन एक्ट लागु है पर अभी तक ज़बरदस्ती धर्म-परिवर्तन का एक भी केस दर्ज़ नहीं हुआ है। भले ही किसी ने ज़बरदस्ती का प्रयोग नहीं किया, पर बहकाने और फुसलाने के कई मामले सामने आए हैं। ये तो बात थी हमारी मीडिया की कि उसे कौन सी खबर संवेदनशील लगती है और कौन सी नहीं।

अब बात करते हैं, धर्म-परिवर्तन की जिसे इंग्लिश में प्रोज़ीलिटिज़्म कहते हैं और आरएसएस की भाषा में घर वापसी। आर्यसमाजियों में शुद्धिकरण, ईसाइयों में बपतिस्मा की विधि होती है। आप 'ल  इलाहा इलल-अल्लाह' और 'मुहम्मद-उर रसूल अल्लाह' कह कर इस्लाम में आ सकते हैं। पर हिन्दू संगठन वाले ये नहीं जानते कि हिन्दू धर्म में धर्म-परिवर्तन करवाने की कोई विधि नहीं है, कोई व्यवस्था नहीं है। अब हिन्दू संगठन वाले कौन सा वेद मन्त्र पढ़ कर धर्म परिवर्तन करवा रहे हैं ये वही जाने।

आज़ादी के बाद से ही धर्म-परिवर्तन का मुद्दा संवेदनशील बना हुआ है। केंद्र में हालांकि कोई कानून नहीं बन सका है, पर कुछ राज्यों ने इसको लेकर कानून बनाए हैं, जैसे ओडिशा, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात और छत्तीसगढ़। फिर भी लोगों को लालच दे कर या बहला फुसलाकर उनका धर्म-परिवर्तन आज भी करवाया जा रहा है। दुःख की बात है  भारत की मीडिया को तब तक ये मुद्दा गंभीर या कहे भारत की धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ नहीं लगता जब तक इसका शिकार कोई अल्पसंख्यक समुदाय से न हो। आज भी पूरे विश्व में इस्लाम और ईसाई धर्म का विस्तार हो रहा है, नहीं तो ईसाइयों की संख्या आज दो अरब और मुसलमानों की संख्या एक अरब 80 करोड़ नहीं होती।

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