अपने पिछले लेख 'क्या अब संभलेगा पाकिस्तान...?' में मैंने ज़िक्र किया था कि आतंकवाद को लेकर पाकिस्तान ने किस तरह दोगली नीति अपनाई हुई है। किस तरह 'अच्छा आतंकवाद' और 'बुरा आतंकवाद' में फर्क कर रखा है। भारत में अशांति और अस्थिरता फैलाने वाले और जगह-जगह बम धमाके करके निर्दोष भारतीयों को मारने वाले आतंकवादियों को पाकिस्तान हमेशा से स्वंतत्रता सेनानी कहता आया है और उन्हें सरंक्षण देता रहा है। एक कड़वा सच यह भी है कि पाकिस्तान का अस्तित्व ही भारत विरोधी नीति के कारण बचा हुआ है, वरना यह कब का टूटकर बिखर जाता।
मंगलवार को पेशावर के स्कूल में हुए आत्मघाती आतंकवादी हमले के बाद दुनिया को लगा कि पाकिस्तान अब सुधर जाएगा। पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ ने भी ऑल पार्टी मीटिंग में जब फैसला लिया कि अब पाकिस्तान अच्छे और बुरे तालिबान में फर्क नहीं करेगा और जब तक आखिरी आतंकवादी को खत्म नहीं कर देगा, चैन से नहीं बैठेगा, तो हर 'टीवी-निर्मित' डिफेंस एक्सपर्ट कहने लगा कि पाकिस्तान के नवाज़ शरीफ सही दिशा में कदम उठा रहे हैं, लेकिन जल्द ही उन एक्सपर्ट महानुभावों की गलतफहमी दूर हो गई। पाकिस्तान में आम लोगों को बताया जा रहा है कि ये हमले भारत ने करवाए हैं।
आज भारत के विश्वास को उस समय गहरा धक्का लगा, जब पाकिस्तान की एक कोर्ट ने मुंबई हमले के आरोपी और हाफिज सईद के दाहिने हाथ ज़की-उर-रहमान लखवी को जमानत पर रिहा कर दिया। दलील थी की लखवी के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं हैं। लखवी ने ही अजमल कसाब समेत नौ लोगों को ट्रेनिंग दिलवाई थी और उन्हें हथियार मुहैया करवाए थे और उन्हें समुद्र के रास्ते मुंबई पहुंचने में मदद की थी।
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This Article is From Dec 18, 2014
मनीष शर्मा की नज़र से : भारत की समझ से परे पाकिस्तान
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