यह ख़बर 16 दिसंबर, 2014 को प्रकाशित हुई थी

मनीष शर्मा की नज़र से : क्या अब संभलेगा पाकिस्तान...?

पेशावर में बच्चों को बचाकर ले जाते फौजी

नई दिल्ली:

पाकिस्तान में पेशावर के आर्मी स्कूल में आत्मघाती हमलावर घुस गए, और सवा सौ बच्चों को काल का ग्रास बना दिया। इस हमले ने पाकिस्तान को ही नहीं, पूरी दुनिया को झकझोर डाला है। इस वारदात की चौतरफा निंदा हो रही है, लेकिन पाकिस्तानी इतिहास में किसी भी स्कूल पर हुए सबसे बड़े आतंकवादी हमले के लिए क्या सिर्फ आतंकवादी ही ज़िम्मेदार हैं, या खुद पाकिस्तान भी...?

आज का इंसान अपने दुःख से इतना दुखी नहीं है, जितना दूसरों के सुख को देखकर होता है, और यह बात पाकिस्तान पर पूरी तरह लागू होती है। जब से पाकिस्तान बना है, उसे भारत की शांति और तरक्की रास नहीं आ रही। कभी पंजाब में, कभी कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देकर भारत की शांति को भंग करने पर तुला रहता है पाकिस्तान... वही हाल है कि अपना घर कभी संभला नहीं, लेकिन पराये घर में दखलअंदाज़ी ज़रूरी है...

वर्ष 2010 में पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति आसिफ अली ज़रदारी ने माना था कि पाकिस्तान ने कुछ उदेश्यों की पूर्ति के लिए आतंकवादियों को बनाया और आश्रय दिया। पिछले महीने वाघा सीमा के करीब 55 लोगों की जान लेने वाले बम धमाके, और अब पेशावर के स्कूल में हुआ हमला इसी बात का सबूत है कि 'भस्मासुर' अब बनाने वाले को ही खत्म करने पर आमादा हो गया है।

साउथ एशिया टेररिज्म पोर्टल के मुताबिक, पाकिस्तान में 12 घरेलू आतंकवादी संगठन हैं, और उसने 32 अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी संगठनों को पनाह दे रखी है। वर्ष 2002 से लेकर अब तक पाकिस्तान में 405 आत्मघाती हमले हुए हैं, जिनमें 6,120 लोग मारे जा चुके हैं और 12,791 घायल हुए हैं। अब पाकिस्तान को समझना ही होगा कि जब बबूल का पेड़ बोया गया था, तो आम कहां से मिलेंगे।

यहां एक बात और हास्यास्पद लगती है कि पाकिस्तान ने अपनी सहूलियत के हिसाब से आतंकवाद की व्याख्या की हुई है - अच्छा आतंकवाद, बुरा आतंकवाद... जो भारत में हमला करते हैं, वे पाकिस्तान के लिए स्वतंत्रता सेनानी (जेहादी) हैं, और जो पाकिस्तान पर हमला कर रहे है, वे आतंकवादी हैं। अब जो पाकिस्तान के अनुसार आतंकवादी हैं, उनके खिलाफ उसने कई अभियान छेड़ रखे हैं। आज पेशावर में जो हमला हुआ, वह उन्हीं में से एक अभियान की प्रतिक्रिया है। हमले की जिम्मेदार तहरीक-ए-तालिबान के अनुसार, उसने पाक सेना द्वारा उत्तरी वजीरिस्तान में चल रहे ऑपरेशन 'ज़र्ब-ए-अज़ब' का बदला लिया है। उल्लेखनीय है कि पिछले छह माह से चल रहे इस फौजी ऑपरेशन में 1,858 तालिबानी मारे जा चुके हैं।

लेकिन दूसरी ओर, पाकिस्तान 26 नवंबर के मुख्य आरोपी हाफिज सईद और दाऊद इब्राहिम जैसे उन आतंकवादियों के लिए स्पेशल ट्रेन चलाता है, और उन्हें घर में रखकर वीआईपी ट्रीटमेंट देता है, जो भारत में 'मोस्ट वॉन्टेड' हैं... पाकिस्तान कश्मीरी अलगाववादियों से वार्ता करता रहता है और भारत के खिलाफ उकसाता रहता है।

फिर भी देखने वाली बात यह है कि पाकिस्तान की इतनी कोशिशों के बावजूद कश्मीर का हाल पाकिस्तान जितना बुरा नहीं हुआ है। जो कश्मीरी अलगाववादी भारत और भारतीय सेना को बुरा-भला कहते रहते हैं और पाक का गुणगान करते नहीं थकते, क्या वे इस सच्चाई से अनजान हैं कि भारतीय  सेना की कोशिशों के कारण ही कश्मीर नर्क बनने से बचा हुआ है। वरना वह भी बर्बादी की कगार पर पहुंच गया होता। जब भी कश्मीर पर कोई विपत्ति आई है, भारतीय सेना ही ढाल बनकर खड़ी हुई है। वह भारतीय सेना ही थी, जिसने बाढ़ में लोगों के जान-माल की रक्षा की। बीच में ऐसी ख़बर भी आई कि लोगों को बचाने गई सेना की टुकड़ियों पर पथराव हुआ और कुछ सैनिकों पर हमला भी किया गया।

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पेशावर के स्कूली हमले में जो बच्चे मारे गए हैं, क्या पाकिस्तान उनके मां-बाप का दर्द समझ पाएगा...? क्या पाकिस्तान अब भी सबक नहीं लेगा और आतंकवाद के प्रति अपनी दोहरी नीति को नहीं बदलेगा...? और भारत में जो लोग सिर्फ धर्म के आधार पर अपने आपको पाकिस्तान से जुड़ा समझते हैं, घरों में पाकिस्तान का झंडा लगाते हैं और पाकिस्तान टीम के लिए चीयर करते हैं, क्या वे अपने भविष्य का ऐसा हाल देखना पसंद करेंगे...?