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This Article is From Dec 25, 2019

झारखंड के चुनाव का असर नीतीश कुमार के सत्ता पर क्यों नहीं होगा?

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 25, 2019 10:02 am IST
    • Published On दिसंबर 25, 2019 10:02 am IST
    • Last Updated On दिसंबर 25, 2019 10:02 am IST

झारखंड में नए मुख्यमंत्री के रूप में हेंमत सोरेन रविवार को शपथ लेंगे, लेकिन उनके सता संभालने से पहले ये क़यास लगाये जाने लगे हैं कि आख़िर बिहार की सता पर इसका क्या असर होगा. खासकर क्या नीतीश कुमार जो अगले साल सता में पंद्रह वर्ष पूरे करेंगे और एक बार फिर जनता से जनादेश मांगेंगे. क्या उनके ऊपर बगल के राज्य के सत्ता परिवर्तन का ताप पड़ेगा? इस सवाल का जवाब आपको झारखंड और बिहार की राजनीति के तीन उदाहरण से मिल जायेगा.

पहला जिस दिन झारखंड में विपक्षों दलों का गठबंधन हुआ और उस समय सीटों के संख्या और हेमंत सोरेन ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनने को लेकर घोषणा होनी थी. वो प्रेस कांफ्रेंस इसलिए विलंब हुआ क्योंकि तेजस्वी यादव रांची शहर में रहने के बावजूद इस प्रेस कांफ्रेंस का बॉयक़ाट किया, क्योंकि वो कुछ और सीट चाहते थे, लेकिन उनकी मान मनोबल करने के बजाय उस प्रेस कान्फ्रेंस में हेमंत सोरेन और कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह ने घोषणा किया कि कोई फ्रेंडली मुक़ाबला नहीं होगा और कोई दल अगर उम्मीदवार खड़ा करेगा तो उसे गठबंधन से बाहर जाना होगा. दरअसल लोकसभा चुनाव में ये दोनों नेता गठबंधन के अधिकारिक प्रत्याशी के ख़िलाफ़ राजद के उम्मीदवार का मैदान में रहने से ख़फ़ा थे. चुनाव के दौरान हालांकि तेजस्वी ने सहयोगी दलों के प्रत्याशियों के लिए प्रचार किया लेकिन राजद का उम्मीदवार एक ही जीता जिसके कारण सरकार में उनकी भूमिका सीमित होगी.

दूसरा झारखंड के परिणाम आने के दो दिन पहले पूरे बिहार में राजद द्वारा बंद कराया गया. इस बंद के समर्थन में कांग्रेस के नेता, उपेन्द्र कुशवाहा सब रोड पर उतरे लेकिन बिहार बंद को सफल बनाने के लिए जो धन्यवाद प्रेस विज्ञप्ति आया उसमें सहयोगी दलों के न तो नाम और न ही नेता का कोई ज़िक्र था. जो सहयोगियों के अनुसार उनका घमंड ख़ासकर तेजस्वी जो ख़ुद दोपहर बाद पटना की सड़कों पर उतरे. दर्शाता हैं कि उन्होंने लोकसभा के हार से ना सीखा हैं और ना उनमें वो इच्छाशक्ति हैं.

अब परिणाम के बाद बिहार के उप मुख्यमंत्री और भाजपा के वरिष्ठ नेता सुशील मोदी के ट्वीट देखिए. उन्होंने पहले झारखंड विधानसभा के चुनाव में सफलता के लिए झामुमो के नेता हेमंत सोरेन को बधाई दी और कहा कि मुझे उम्मीद है कि एनडीए सरकार ने राज्य के विकास की जो योजनाएं शुरू कीं, उसे वे तेजी से पूरा करेंगे और केंद्र सरकार की योजनाओं को लागू करने में राजनीतिक मतभेद को आड़े नहीं आने देंगे. इसके बाद सुशील मोदी, जिन्हें अपने पार्टी का झारखंड में हश्र का अंदाज़ा था; ने कहा कि झारखंड में झामुमो नेतृत्व वाले गठबंधन की सफलता से बिहार में जिनके मन में लड्डू फूट रहे हैं, वे जान लें कि दोनों राज्यों की सामाजिक, भौगोलिक और राजनीतिक परिस्थितियां बहुत भिन्न हैं. सब-कुछ समान होता, तो राज्य पुनर्गठन की आवश्यकता ही नहीं पड़ती.

लेकिन मोदी ने जो सबसे महत्वपूर्ण बात ये कही कि बिहार में एनडीए एकजुट है, सीट बंटवारे को लेकर कोई समस्या नहीं है और यहां गठबंधन का नेतृत्व पांच बार के अनुभवी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कर रहे हैं. दूसरी ओर महागठबंधन का नेतृत्व ऐसे शख्स के हाथ में नहीं, जो हेमंत सोरेन की तरह पढ़ा-लिखा, सादगी भरा और विनयी हो, बल्कि ऐसे युवा के हाथ में है, जिसपर 29 साल की उम्र में 54 बेनामी सम्पत्ति बनाने के आरोपपत्र दाखिल हैं.

इन तीनों अलग-अलग घटनाक्रम से साफ़ हैं कि बिहार में नीतीश कुमार को चुनौती देने वाले तेजस्वी यादव में राजनीतिक परिपक्वता की कमी हैं. वहीं भाजपा ने झारखंड के चुनाव से सबक़ सीखते हुए तुरंत गठबंधन पर स्थिति स्पष्ट कर दी. ऐसा नहीं कि नीतीश सरकार में सब कुछ ठीक चल रहा हैं, लेकिन उसे उजागर करने के लिए तेजस्वी यादव को सदन से सड़क तक सक्रिय होना होगा, लेकिन पिछले छह महीनों में उन्होंने कोई भी ऐसा उदाहरण नहीं दिया, जिससे लोगों को लगे कि वो बिहार के नीतीश कुमार के विकल्प हो सकते हैं. वो चाहे चमकी बुखार हो या पटना का जलजमाव सब नीतीश कुमार सरकार की असफलता की मिशाल हैं, लेकिन जहां नीतीश कुमार ने अपने इन नाकामियों पर अपने सत्ता के अहंकार में ना लोगों से और ना मीडिया से बात करना उचित समझा वैसे ही तेजस्वी ने जनसरोकर के इन मुद्दों से किनारा थाम ट्विटर से अपनी राजनीतिक दुकान चालू रखी हैं.

दूसरा नीतीश कुमार ने अपने कई वादों को काफ़ी गंभीरता से पूरा किया हैं. वो चाहे हर घर बिजली हो या हर घर नल का जल या अब जल जीवन हरियाली कार्यक्रम के बहाने जो जलश्रोत को जीवित किया जा रहा हैं, उसका बिहार के हर व्यक्ति के जीवन पर असर दिखता हैं. इसलिए नीतीश कुमार से लोग नाराज़ नहीं बल्कि शिकायत ज़्यादा करते हैं. उनके अपने व्यक्तित्व का कुछ जटिलपन हैं जिसका ख़ामियाज़ा उन्हें ख़ुद उठाना पड़ता हैं. लेकिन जब तक उनके साथ भाजपा और पासवान हैं और सामने तेजस्वी यादव की राजद हैं तब तक वो अगर वो भांग पीकर सो भी जाये तो भी बिहार में ना उनकी सत्ता और ना ताज को कोई ख़तरा हैं.

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