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This Article is From Oct 09, 2020

चिराग पासवान- भाजपा की बी-टीम बनकर भी नीतीश कुमार को हरा नहीं सकते

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    October 09, 2020 15:29 IST
    • Published On October 09, 2020 15:29 IST
    • Last Updated On October 09, 2020 15:29 IST

बिहार में, आधिकारिक तौर पर हार और जीत का फैसला तो 10 नवंबर को होगा, जब विधान सभा चुनाव के नतीजे आएंगे लेकिन इस गला काट प्रतियोगिता में- नीतीश कुमार पांचवीं बार फिर से मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं. यह भाजपा के साथ उनके गठबंधन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का साझा लाभदायी परिणाम हो सकता है.

विपक्षी गठबंधन, जिसने 30 वर्षीय तेजस्वी यादव को अपना मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किया है और इसमें कांग्रेस और वाम दल शामिल हैं, के प्रति आकर्षण बहुत कम है. और अगर, तीन हफ्ते पहले तक, चुनाव एक सौदा लग रहा था, तो 36 वर्षीय चिराग पासवान ने अब उसमें बहुत धार दे दी है.

नीतीश कुमार और भाजपा के खिलाफ पिछले हफ्ते उन्होंने विद्रोह फूंकते हुए ऐलान किया कि वो अब बिहार में एनडीए गठबंधन का हिस्सा नहीं रहेंगे. उनके इस दांव ने इस सिद्धांत को और हवा दे दी है कि वह नीतीश कुमार के खिलाफ भाजपा की छह फुट लंबी गुप्त मिसाइल हैं. चिराग पासवान ने यह एलान किया कि उनकी पार्टी लोजपा, भाजपा के खिलाफ उम्मीदवार नहीं उतारेगी और उनका पूरा जोर जेडीयू उम्मीदवारों को हराने पर होगा. चिराग पासवान नीतीश के वोट बैंक में सेंधमारी करेंगे. ऐसे में भाजपा राज्य में सबसे अधिक सीटें जीतेगी और उसके पास यह तय करने की क्षमता हो जाएगी कि उसे मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश कुमार की वापसी की अपनी प्रतिबद्धता पर कायम रहना चाहिए.

हालांकि, बिहार भाजपा के लोग इन बातों को सिरे से ख़ारिज कर रहे हैं. लेकिन कोई भी यह नहीं कह पा रहा कि चिराग पासवान भाजपा के साथ जुड़ी एक टीम का हिस्सा नहीं हैं. चिराग पासवान के 'एकला चलो रे' की नीति की घोषणा करने के बाद शनिवार से लेकर आज तक पटना से लेकर दिल्ली तक भाजपा के एक भी नेता ने कोई भी ट्वीट नीतीश कुमार के समर्थन और बचाव में नहीं किया है. चिराग पासवान द्वारा नीतीश सरकार के शासन की आलोचना के खिलाफ निंदा का बयान भी भाजपा की तरफ से 50 घंटे बाद आया.

सोमवार को, नीतीश कुमार और भाजपा द्वारा सीट बंटवारे का एलान के मुद्दे पर संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेन्स को संबोधित करने से कुछ घंटे पहले, भाजपा के जो नेता मुख्यमंत्री आवास पर उनसे मिलने पहुंचे थे, उन्होंने पाया था कि नीतीश खिन्न हैं और शायद प्रेस कॉन्फ्रेन्स में नहीं शामिल हो सकते हैं. उन्हें फिर से आश्वस्त किया गया था कि चुनाव परिणाम चाहे जो भी आए, असमान सीटों के बावजूद अगर टीम जीतती है तो नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री होंगे. इसके बाद तूफान टल गया. फिर प्रेस कॉन्फ्रेन्स हुई लेकिन भावनाएं आहत होने की वजह से इसमें देरी हुई.

बिहार के भाजपा नेताओं ने निजी तौर पर संकेत दिए हैं कि चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने ही चिराग पासवान को ऐसे कदम उठाने के लिए उकसाया है.  प्रशांत किशोर सालों तक नीतीश कुमार के विश्वसनीय सहयोगी बने हुए थे, जिन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल था. लेकिन दस महीने पहले, विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम के समर्थन में नीतीश के बयान को मुस्लिम विरोधी करार दे आलोचना करने पर उनकी पार्टी से छुट्टी कर दी गई थी.

भाजपा सूत्रों का कहना है कि चिराग पासवान के चुनावी नारे और विज्ञापन पर प्रशांत किशोर की विशिष्ट छाप दिखती है, लेकिन युवा राजनेता के करीबी सूत्रों का कहना है कि वह दो साल से चुनावी रणनीतिकार से नहीं मिले हैं और यह नीतीश कुमार पर चिराग पासवान के हमले में खुद को निर्दोष साबित करने का भाजपा के लिए एक सुविधाजनक तरीका है.

पिछले तीन महीनों में, नीतीश कुमार और भाजपा के बीच के संबंध विश्वासपात्र की परिभाषा के तहत नहीं आते हैं. 69 वर्षीय मुख्यमंत्री ने भाजपा की लंबी बातचीत के दौरान यह महसूस किया कि उसे कितनी सीटें दी जाएं ताकि सत्ता पर नियंत्रण और हिस्सेदारी स्पष्ट तौर पर उनके पास ही रहे.

सहयोगियों और गठबंधन के प्रति नीतीश कुमार का दृष्टिकोण बस पर चढ़ने-उतरने जैसा रहा है. भाजपा के साथ 18 साल का गठबंधन उन्होंने साल 2015 में तोड़ दिया था. इसके बाद उन्होंने लालू यादव और कांग्रेस के साथ मिलकर चुनावी गठजोड़ कर लिया था. उनकी टीम के सूत्र इस बात की ओर ध्यान दिलाते हैं कि लालू यादव जैसे एक चिड़चिड़े नेता  के साथ सीट-बंटवारे और उम्मीदवारों की सूची पर उन्होंने दो बार लगातार प्रेस कॉन्फ्रेंस किया था. 2017 में नीतीश कुमार ने फिर पलटी मार ली और बीजेपी के साथ हो लिए. पिछले साल लोकसभा चुनावों के दौरान भी उन्होंने 2015 का ही पैटर्न दोहराया- जब दो बार साझा प्रेस कॉन्फ्रेन्स कर सीट बंटवारे और उम्मीदवारों के नामों का एलान किया गया. इस बार जेडीयू ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए,  भाजपा द्वारा प्रत्याशियों का नाम फाइनल करने से पहले, जेडीयू उम्मीदवारों के नामों का एलान बुधवार को कर दिया. एनडीए परिवार के लिए खुशी का यह पल सामने नहीं आ सका.

अगर नीतीश कुमार के पास सुकून देने वाला, कथित या वास्तविक बनाने के लिए, कुछ है, तो वह यह कि भाजपा के साथ उनके गठबंधन का अंकगणित और सामाजिक रसायन शास्त्र जमीन पर आज भी बरकरार है. चिराग पासवान से दो-दो हाथ करने के लिए उनके पास नई बी-टीम हो सकती है लेकिन यह वास्तविक खतरा नहीं है. पासवान जाति का वोट बैंक मात्र पांच फीसदी है. ये समुदाय चिराग पासवान को वोट करेगा लेकिन  गैर पासवान दलित वोट जिसे नीतीश ने महादलित कैटगरी का दर्जा दिया है, उसका वोट शेयर 11 फीसदी है. माना जाता है कि इस कैटगरी का वोट नीतीश और बीजेपी के खाते में जाएगा (पासवान दलितों में दबंग जाति है, जबकि बाकी पिछड़े हैं). भाजपा ऊंची जाति के वोटरों को भी लुभाएगी. यादवों (जो लालू यादव के कोर वोटर और समर्थक रहे हैं) को छोड़कर अन्य पिछड़ी जातियों जैसे कुर्मी (नीतीश कुमार की जाति), कोयरी-कुशवाहा और अन्य अति पिछड़ी जातियों (जिनमें 40 से ज्यादा जातियां आती हैं) के वोटर नीतीश कुमार और बीजेपी को वोट कर सकते हैं. लालू यादव के समर्थक समुदाय की आबादी करीब 35 फीसदी है.  एक बार, लालू यादव के इन समर्थकों ने, नीतीश कुमार के प्रति अपनी वफादारी जताई थी, जब उन्होंने ग्राम पंचायतों और अन्य जमीनी निकायों में उनके लिए आरक्षण शुरू कर उन्हें सशक्त बनाया था.

दूसरी तरफ, तेजस्वी यादव और कांग्रेस मुसलमानों, सवर्णों और यादवों के छोटे वर्गों को फिर से संगठित करने में जुटे हैं.

नीतीश कुमार ने बिहार के उन प्रवासी मजदूरों की आलोचना की थी जो लॉकडाउन के समय घर लौट आए थे; कोरोनोवायरस संकट से निपटने में भी उनकी सरकार की गहरी खामियां उजागर हुई थीं; और जब राज्य में बाढ़ फिर से विपदा बनकर आई तो वो लाचार प्रशासक ते तौर पर नजर आए. लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं ने उन्हें फीडबैक दिया है कि वो अभी भी लोकप्रिय हैं और उनका चुनावी अंकगणित मजबूत है क्योंकि सामने कोई विकल्प नहीं है. जब से लालू यादव को रांची में अस्पताल में भर्ती कराया गया (उन्हें 2018 में भ्रष्टाचार के लिए दोषी ठहराया गया और फिर बाद में अस्पताल ले जाया गया), उनकी टीम अपने चतुर और सबसे करिश्माई खिलाड़ी की अनुपस्थिति महसूस कर रही है. 1980 के बाद यह पहला विधानसभा चुनाव है, जहां लालू यादव चुनाव प्रचार नहीं करेंगे.

नीतीश कुमार ने डायरेक्ट कैश ट्रांसफर के जरिए राज्य के गरीबों के खाते में पिछले छह महीनों में 12000 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि ट्रांसफर करवाए हैं. परिवारों को साइकिल, स्कूल यूनिफॉर्म खरीदने और  स्कॉलरशिप के लिए भी अग्रिम भुगतान किए गए. लॉकडाउन में स्कूल बंद होने पर मिड-डे मील की राशि के पैसे भी उन्हें दिए गए ताकि बच्चे इस योजना के लाभ से वंचित न हो सकें.

यह सब मतदाता के गुस्से को रोकने में मदद कर सकता है. और फिर पीएम मोदी का बहुत बड़ा लाभ है जिनकी लोकप्रियता सबसे ऊपर है. इसलिए जब चिराग पासवान सार्वजनिक तौर पर काम कर रहे होंगे और नीतीश कुमार निजी तौर पर, तब भी यह भाजपा ही होगी जिसकी धड़कनें तेज होंगी. पहली बार, भाजपा नीतीश कुमार के करीब-करीब बराबर सीटों पर चुनाव लड़ रही है, जो उनकी व्यवस्था में बढ़ते प्रभुत्व को साबित करता है.

(मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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