Mukhtar Ansari: पहले कुछ किरदारों को जानते हैं. पहला किरदार- ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान...वे भारत के पहले महावीर चक्र विजेता रहे हैं...'नौशेरा के शेर' के नाम से मशहूर मोहम्मद उस्मान की बहादुरी से बौखलाए पाकिस्तान ने उनके सिर पर 50 हजार का इनाम रखा था. दूसरा किरदार- मुख्तार अहमद अंसारी- वे साल 1927 में कांग्रेस के अध्यक्ष रह चुके हैं. उनके नाम का प्रस्ताव खुद महात्मा गांधी ने रखा था. अहमद अंसारी जामिया मिल्लिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के 1928 से 1936 तक चांसलर रहे. दिल्ली में अंसारी नगर और अंसारी रोड इन्हीं के नाम पर हैं.तीसरा किरदार- हामिद अंसारी ...वे भारत के उपराष्ट्रपति रहे हैं. इन तीनों शख्सियतों ने अपने-अपने क्षेत्र में आला मुकाम हासिल किया है...लेकिन अफसोस ये है कि इनका सिरा एक ऐसी जगह जुड़ता है जिसके बारे में शायद ही उन्होंने कभी सोचा होगा, वो सिरा है माफिया डॉन मुख्तार अंसारी. ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान इसी मुख्तार अंसारी के नाना, मुख्तार अहमद अंसारी उसके दादा और हामिद अंसारी उसके चचेरे चाचा रहे हैं...इन अजीम शख्सियतों के खानदान से ताल्लुक रखने वाले मुख्तार अंसारी ने पूर्वांचल के अपराध की दुनिया में ऐसी मुख्तारी हासिल की जो किसी को भी डरा सकता है.NDTV इतिहास की नई कड़ी में आज हम जानेंगे मुख्तार अंसारी की क्राइम कुंडली.एक ऐसा अपराधी जो चाहे जेल में रहे या बाहर, चुनाव जीतना और जीतवाना उसके लिए मामूली बात थी.ताउम्र वो जिस भी जेल में रहा पूरे ऐशोअराम से रहा.
उधर मुख्तार के पीछे-पीछे उसका पूरा परिवार भी रोपड़ शिफ्ट हो गया और किराए के मकान में रहने लगा. सबकुछ ठीक चल रहा था कि एक दिन जेल का निरीक्षण करने एक आला अधिकारी पहुंची. उन्होंने पाया की जेल का एक बैरक बंद है. जब पूछताछ की तो जेल के कर्मचारियों ने कहा- वहां काम चल रहा है इसलिए बंद है लेकिन उस अधिकारी ने जब गहराई से जांच की तो पता चला कि निरीक्षण के वक्त मुख्तार की पत्नी जेल में ही उसके साथ मौजूद थी और अधिकारी से ये बात छुपाने के लिए उस कमरे को बंद रखा गया था. इसके बाद पंजाब में जब AAP सरकार आई तो जांच-पड़ताल में पता चला कि तब की कांग्रेस सरकार ने मुख्तार की खातिरदारी पर 2 साल 3 महीने में करीब 55 लाख खर्च किए थे. दरअसल पंजाब के रोपड़ जेल में जाने के बाद ही मुख्तार के बुरे दिन शुरू हुए.यूपी में योगी सरकार आने के बाद मुख्तार को लेकर लंबी कानूनी लड़ाई चली और फिर उसे यूपी के बांदा जेल लाया गया.
अब बात मुख्तार द्वारा अंजाम दिए गए सबसे बड़े हत्याकांड की.वो तारीख थी-तारीख़ 25 नवंबर 2005.मौसम में गुलाबी सर्दी घुली हुई थी. इसी माहौल में मोहम्मदाबाद सीट से बीजेपी विधायक कृष्णानंद राय क्रिकेट टूर्नामेंट का उद्घाटन कर लौट रहे थे. रास्ते में रेलवे फाटक के पास कृष्णानंद का काफिला रूका. एक सिल्वर ग्रे कलर की एसयूवी उनके सामने आकर खड़ी हुई. क़रीब 7-8 लोग एसयूवी में से उतरे. उनके हाथ में कट्टा-वट्टा नहीं बल्कि एके-47 था. सभी ने राय की कार घेरा और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी. ख़बरें बताती हैं कि इस घटना में 500 राउंड से ज़्यादा गोलियां चलीं थीं.विधायक कृष्णानंद राय, गनर निर्भय उपाध्याय, ड्राइवर मुन्ना, रमेश राय, श्यामशंकर राय, अखिलेश राय और शेषनाथ सिंह की इस हमले में मौत हो गई.. इस दौरान हमलावर चिला रहे थे- मारो इनको, इन लोगों ने भाई को बहुत परेशान कर रखा है. पोस्टमार्टम में सातों लोगों के शरीर से कुल 67 गोलियां निकली. पूर्वांचल में तब पहली बार किसी ने AK-47 जैसे हथियार का इस्तेमाल किया था. हैरानी की बात ये है कि जब ये हत्याकांड हुआ तब मुख्तार अंसारी जेल में बंद था. बाद में अदालत ने इस हत्याकांड की साजिश रचने का मुख्तार को दोषी पाया और उसे 10 साल की सजा दी गई साथ में 5 लाख का जुर्माना भी लगाया गया.
इसी दौर में इलाके में एक और प्रभावशाली शख्स थे सच्चिदानंद राय. किसी बात को लेकर सच्चिदानंद और मुख्तार के पिता के बीच विवाद हो गया. सच्चिदानंद ने मुख्तार के पिता को भरे बाजार काफी भला बुरा कहा. इस बात की खबर जब मुख्तार को लगी तो उसने सच्चिदानंद राय की हत्या का फैसला किया. इस साजिश में उसकी सहायता की-साधु और मकनू सिंह ने. तब मुख्तार की उम्र महज 25 साल थी जब उसने सच्चिदानंद राय की हत्या की. उसने साधु और मकनू को अपना गुरु मान लिया.कहा जाता है एक बार दोनों ने उससे गुरुदक्षिणा मांगी. मुख्तार ने पूछा क्या- तो दोनों ने बताया रंजीत सिंह नाम के शख्स की हत्या करनी है. मुख्तार इसके लिए तुरंत तैयार हो गया. वो इतना हुनरमंद निशानेबाज था कि उसने पलक झपकते ही रंजीत सिंह की हत्या एक दीवार की सुराख से दूसरे दीवार की सुराख के पार गोली चलाकर हत्या कर दी.
इन घटनाओं के बाद मुख्तार पूर्वांचल में अपराध की दुनिया का बेताज बादशाह बन गया...बीच में ब्रजेश सिंह जैसे डॉन भी उभरे लेकिन मुख्तार कोई न कोई हथकंडा अपना कर सिढ़ियां चढ़ता गया. वो अब खुद हत्याकांड को अंजाम नहीं देता बल्कि इसके लिए उसने गुर्गों की एक पूरी फौज बना ली. पूर्वांचल का कोई भी ठेका निकले तो उसका ठेकेदार मुख्तार ही होता था. उसका रसूख इस कदर बढ़ता गया कि अलग-अलग पार्टियों में रहते हुए वो पांच बार विधायक बना. पूर्व जेलर एसके अवस्थी बताते हैं कि गाजीपुर जेल में मुख्तार के लिए जेल में ही अलग से बैडमिंटन कोर्ट बनाया गया था. जहां अधिकारी उसके साथ खेलते थे. अवस्थी अपने साथ घटे वाक्ये को भी बताते हैं कि एक बार जब जेल से मुख्तार में मिलने लोग आए थे उनके आदेश पर मुलाकातियों की तलाशी ली जा रही थी. तब बौखलाया मुख्तार बाहर आया और एक मुलाकाती का पिस्तौल निकालकर जेलर अवस्थी के सिर पर रख दिया और कहा- जेल से बाहर निकलो सबक सिखा दूंगा.
छोटा बेटा उमर अंसारी भी जमानत पर बाहर है. उसकी पत्नी अफशां अंसारी के खिलाफ भी कई मुकदमे दर्ज हैं और पुलिस ने उसके ऊपर 75 हजार रुपए का इनाम रखा हुआ है. अफशां फिलहाल फरार चल रही है.
मुख्तार अंसारी ने खुद की छवि रॉबिनहुड की बना रखी थी. गाजीपुर और मऊ में किसी को भी कोई समस्या हो वो मुख्तार से गुहार लगाता तो उसका काम होने लगता. इसी समाजसेवा की बदौलत मुख्तार और उसकी फैमली खुद को पाक-साफ बताते नहीं थकती. लेकिन दूसरा पक्ष ये है कि मुख्तार समेत उसके परिवार पर 101 केस दर्ज हैं. अकेले मुख्तार अंसारी पर कई जिलों में हत्या के 8 मुकदमे समेत 65 मामले दर्ज हैं और वो बांदा जेल में बंद था. भाई अफजाल अंसारी पर 7 मामले, भाई सिगबतुल्लाह अंसारी पर 3 केस, मुख्तार अंसारी की पत्नी अफसा अंसारी पर 11 मुकदमे, बेटे अब्बास अंसारी पर 8 तो छोटे बेटे उमर अंसारी पर 6 केस दर्ज हैं. मुख्तार अंसारी की बहू निखत पर भी 1 मुकदमा दर्ज है. दरअसल मुख्तार एंड फैमली का रसूख अपराध और राजनीति के गठजोड़ से पैदा हुआ है लेकिन अफसोस ये होता है कि इससे देश के अजीम शख्सियतों का नाम खराब होता है.