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This Article is From Jul 21, 2022

भूपेंद्र जी मेरी नजर से 

Madhavi Mishra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 21, 2022 20:09 pm IST
    • Published On जुलाई 21, 2022 20:09 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 21, 2022 20:09 pm IST

भूपेंद्र जी से मेरा पहला साक्षात्कार हुआ था  जब रात की नीरवता को भंग करता हुआ उनका एक गीत सुना आख़री ख़त फ़िल्म से रूत जवाँ जवाँ ...रात मेहरबाँ ...छेड़ो कोई दास्ताँ ...कैफ़ी आज़मी और ख़य्याम साहब का अनूठा शाहकार जो मकबूलियत  और तवज्जो के उस पायदान पर नही पहुँच सका जिसका वो हकदार था सारा फोकस लता जी का गीत बहारों मेरा जीवन भी संवारो ले गया । खैर, भूपेंद्र की आवाज मानो भरी भीड़ में एक नाजुक मख़मली एहसास की तरह है वह एक गैर पारंपरिक आवाज थी जो जो गायकी के लिए मुफ़ीद नही मानी जाती थी पर यही आवाज ही तो उनकी पहचान बन गई जो सदियों तक शिद्दत के साथ याद रहेगी । 


आज मैं भूपेंद्र के उन गीतों के बारे में बात नही करूँगी जो संगीत के सफ़र में मील का पत्थर बने हुए हैं बल्कि उन गीतों की बात करूँगी जो कम चर्चा में रहे पर अपनी उत्कृष्टता के नायाब नमूने हैं। जो  उन्होंने प्राणपण से निभाये हैं । भले ही फिल्मी दुनिया मे भूपेंद्र का आगाज़ एक गिटारिस्ट के तौर पर हुआ था पर जब भी वो अपनी आवाज़ के साथ किसी भी गीत में नमूदार हुए वो एक करिश्माई शाहकार के रूप में अंजाम तक पहुँचे हैं ।फ़िल्म सत्यम शिवम सुंदरम के गाने सैयाँ निकस गये मैं ना लड़ी थी में पिया कौन गली गए श्याम का विकल आर्तनाद उफ्फ क्या ही दिलकश टेर । होंठो पे ऐसी बात में ओ शालू ००० में भी वह अपनी मौजूदगी का बराबर एहसास कराते हैं । भूपेन हजारिका के साथ बाजरे की काली सी छोरियाँ गेहूँ जैसी गोरियाँ का असमिया रंग देखिये । उदासी को अपने गहनतम रूप में देखना हो तो याद करिये ...गली के मोड़ पर सूना सा कोई दरवाजा ..तरसती आँख से रस्ता किसी का देखेगा ...इस सूने पन को और कोई कैसे गाता भले ही उन्होंने गाया आजाये कोई शायद दरवाजा खुला रखना ....अब वो दरवाजा सूना ही रहेगा

आज बिछड़े है कल का डर भी नही ...थोड़ी से बेवफाई के इस गुलज़ारी गीत के साथ सिर्फ भूपेंद्र ही न्याय कर सकते थे । एक अनकहे दुःख की इबारत सिर्फ वही गुन सकते थे और उम्मीद जगा सकते थे ।भूपेंद्र शायरी की आवाज़ थे कहना ज्यादा मुनासिब होगा |

रूत जवाँ जवाँ सुनिये ...इसके आरोह अवरोह में में एक मायावी इंद्रजाल का आभास होता है जिसकी व्यूह रचना अनूठी है । बोलिए सुरीली बोलियाँ ( गृहप्रवेश )एक ही ख़्वाब (किनारा ) मेरे घर आना आना जिंदगी (दूरियां )सैयाँ बिना घर सूना सूना  जिंदगी में और जब तुम्हारे गम नही थे (किनारा ) जैसे कई गीत हैं जिनमे भूपेंद्र  शाइस्तगी से दर्ज  होते हैं और अभिव्यंजित होते हैं वह कमाल है । उन्हें ज्यादा की दरकार भी नही है ,उनका यही एप्रोच उन्हें नायक बनाता है । नायकत्व पर एक और बात याद आती है मिताली मुखर्जी ने जब गायन शुरू किया था तो महसूस होता था इतनी क्षीण आवाज के साथ मिताली अपने सफर को कैसे मुकम्मल जामा पहनाएँगी पर भूपेंद्र का साथ मिलते ही मानो चमत्कार हुआ और वो अपने सर्वोत्तम रूप में सामने आईं । जब भी मैं आत्मविश्वास से भरी मिताली को देखती थी तो मुझे धीरोदात्त भूपेंद्र याद आते थे ।

दो गानों के ज़िक्र के बिना मेरी बात अधूरी रहेगी । दिल ढूँढता है फुरसत के रात दिन  फ़िल्म मौसम से और घरोंदा फ़िल्म का दो दीवाने शहर में और एक अकेला इस शहर में ...हर फ्रेम में भूपेंद्र हैं  दोनों ही युगल गीतों में उनकी चहकती, चंचल आवाज उनकी जिंदादिली का प्रतिरूप हैं और दोनों ही एकल गीत मानो उदासी का मानवीकरण । क्या मदन मोहन क्या जयदेव क्या ख़य्याम सभी उनके मुरीद थे ।
अफसोस हम धीरे धीरे उस स्वर्ण काल के नायाब हीरों को धीरे धीरे अपनी आँखों के सामने काल के आगे बेबस होकर विदा कर रहे । लेकिन उनके रचे माधुर्य का रंग कभी निस्तेज नही होगा । आवाज ही तो उनकी पहचान है ।

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