लेह और लद्दाख का गोवा से सीधा संबंध है. आप ज़रूर जानना चाहेंगे कि आख़िर ये कैसे संभव है. दरअसल लेह के जिस होटल में रुका था वहां के मेस में काम करने वाले कर्मचारियों से बातचीत होने लगी. बातचीत में मालूम चला कि जो शख़्स वहां काम कर रहे हैं वो सारे बिहार-यूपी के लोग हैं. जब उनसे पूछा कि भाई आप लेह कैसे आ गए तो उनका बड़ा सीधा सा जवाब था कि हम अप्रैल-मई में आते हैं और हम अक्टूबर तक यहां पर काम करते हैं और हमें यहां के स्थानीय लोगों से कम पैसे भी मिलते हैं. फिर भी हम काम करने के लिए तैयार हो जाते हैं क्योंकि हम होटल व्यवसाय में काम करते हैं इसलिए हमारा रहने का और खाने का ख़र्च नहीं होता है. इसलिए वेतन स्थानीय लोगों से कम भी मिलता है तो हमारा वो सारा वेतन बच जाता है जो हम अपने गांव भेज देते हैं. यही वजह है कि यहां के होटलों में स्थानीय लोग कम और बाहर से आए लोग ज़्यादा काम करते हैं. फिर उसी शख़्स ने मुझे ये भी बताया कि जैसे ही यहां ठंड गिरती है तो अक्टूबर और नवंबर के महीने में वो गोवा चले जाते हैं. गोवा में तब तक सीज़न शुरू हो चुका होता है और गोवा का सीज़न जो है वो अप्रैल तक चलता है. वो गोवा में शैक (Shack) जो बीच के किनारे होटल होता है वहां पर वो काम करते हैं और फिर अप्रैल मई के महीने में वो लेह आ जाते हैं क्योंकि तब यहां सीज़न शुरू हो चुका होता है और पर्यटकों का तांता लगा रहता है. ये लोग यहां पर ठंड के वक़्त तक काम करते हैं और फिर ठंड शुरू होते ही गोवा निकल जाते हैं. तो इस तरह साल भर इनको काम मिलता रहता है.
जिस शख़्स ने ये बात मुझे बतायी उसका कहना था कि उसके कई दोस्त हैं जो मनाली जैसी जगहों पर या बाक़ी ठंडी जगहों पर गर्मी के दिनों में काम करते हैं और ठंड जब बढ़ती है तो फिर वो गोवा या फिर जो समुद्र किनारे बड़े शहर हैं जहां काफ़ी पर्यटक जाते हैं, वो वहां चले जाते हैं.
ऐसे लोग आपको कई जगह मिल जाएंगे जो गर्मियों में हिल स्टेशन में काम करते हैं और ठंड के दिनों में गोवा में खासकर लेह से क्योंकि ठंड में यहां होटल भी बंद हो जाते हैं. इसी तरह यह सिलसिला सालों से चलता आ रहा है और यही है लेह का गोवा कनेक्शन.
(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं...)
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