अमूर्त सत्य को मूर्त सम्मोहन में बदल देने वाले दार्शनिक, काल्पनिक, यथार्थवादी कलाकार/फिल्मकार का नाम है-किम की-डुक. एक खास तरह की चुभती हुई शैली है इनके सिनेमा की. दक्षिण कोरियाई फिल्म निर्देशक किम की-डुक की प्रशंसक होने से पूर्व मैं इनकी घोर आलोचक थी, क्योंकि इनके सिनेमा को सहन करने की क्षमता मुझमें न के बराबर थी लेकिन यह क्षमता विस्तारित होते 'Spring, Summer, Fall, Winter and Spring' पर आने तक अपने चरम पर पहुंच गई. यह अब तक की मेरी देखी एक महानतम सिनेमाई कृति है. जहाँ जीवन, मृत्यु, हमारे फैसलों, कृत्यों प्यार, पाप और पुण्य को एक घटित चक्र में किम ने अपनी दार्शनिक विद्वत्ता के साथ दिखाया है.
किम की-डुक का रचना संसार
इसके बहुत करीब मैं 'The Bow' को पाती हूँ. किम की यह फिल्म सम्मोहन, अविश्वनीय चमत्कार को कैरी करती है. किम की हर फिल्म में जीवन दर्शन कई बार विरोधाभास में भी दिखाई देता है- जैसे जहां अंधेरा है, वहीं पर प्रार्थना भी है. हम इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि यह एक खास तरह की काल्पनिक यात्रा होती है, जिसमें किम के चरित्रों के यथार्थवादी और आशावादी दृष्टिकोण अक्सर छलनी (पीड़ित) हुए होते हैं. वे एक धुरी पर खड़े होते हैं, जहां अतीत और वर्तमान की छलनाएं जीवन के समानान्तर दिखाई देती हैं. जहां पाप है तो प्रायश्चित की सिरहन भी है.
कहानी कुछ इस तरह है..
पचपन-साठ वर्ष का एक वृद्ध बोट पर रहता है. वह छोटे से मछली व्यापार में है. लोग उसकी बोट पर आते हैं, मछलियां पकड़ते हैं और चले जाते हैं. उसके साथ एक खूबसूरत कम उम्र लड़की बोट पर रहती है. वह तब से उसके साथ रह रही है जब वो सात साल की थी. अपने माँ-बाप से बिछड़ी. वह वृद्ध एक प्रोटेक्टर की तरह उसे बाहरी विषैले वातावरण (बुरी नजरों और लोगों) से बचा कर रखता है. वह सालों से उस लड़की की देखभाल करता आ रहा है, लेकिन उसके हृदय में प्रेम की आंच भी धीमे-धीमे सुलग रही है. 17 साल की होने पर वह उस खूबसूरत लड़की से विवाह करना चाहता है. उस खास दिन के लिए वह उसके लिए पोशाकें, जूते, बालों में लगाने वाले पिन आदि सब जोड़ता रहता है. लड़की बाहरी दुनियादारी से बेखबर है, वह न वह यह जान पाती है कि वृद्ध के हृदय में उसके प्रति कैसा प्रेम है?

कोरियाई फिल्मकार किम की-डुक की फिल्म 'दी बो' का एक दृश्य.
लेकिन उन दोनों की केमेस्ट्री 'फार्च्यून टेलिंग' के समय बहुत रूहानी होती है जैसे एक अन्तर्दृष्टीय कौशल दोनों के मध्य उस झूले की तरह अपना सन्तुलन बनाए है जिस पर बैठ कर वह लड़की उस वृद्ध के आस्थावान तीरों का सामना करती है.
प्रेम के अंकुर का उगना
इस कहानी में मोड़ तब आता है, जब एक नौजवान लड़का बोट पर आता है. पहली बार लड़की के हृदय में आकर्षण जन्म लेता है. इसी के साथ उस वृद्ध में भी पहली बार ईर्ष्या और क्रोध उसके तराशे प्रेम पर उगने लगता है. लड़के के लौट जाने पर लड़की उस नवयुवक की याद में डूबी वृद्ध से दूरी बनाने लगती है. और एक दिन खुद को वृद्ध के बंधन से मुक्त करते हुए वह उसे छोड़ नवयुवक के साथ जा रही होती है कि वह वृद्ध आत्महत्या करने का प्रयास करता है. लड़की लौट आती है. एक ठहरी मुस्कराहट जो उसके चेहरे पर सदा रहती है, उसी ठहरी मुस्कराहट के साथ वह वृद्ध से विवाह भी करती है.
अब क्योंकि यह किम की-डुक की फ़िल्म है तो कोई साधारण अंत तो इसका हो ही नहीं सकता. एक बार उस वृद्ध से घृणा होती है जब वह अपनी इच्छा पूरी न होने पर आत्महत्या करने का प्रयास करता है, लेकिन अंत में वह घृणा हमें भी मुक्त कर देती है जैसे उस वृद्ध को अपने अहम् से.
प्रेम में अलग-अलग तरह के अहम् होते हैं और अलग-अलग तरह की मुक्ति भी.
उस देह सहलाती बोट पर पारदर्शी, सफेद, अनोखा प्रथम संभोग, काया का नहीं होता. इस दृश्य-भेद को लिखा नहीं जा सकता और न ही भाषा में व्यक्त किया जा सकता है. किम भावनाओं को पैनी अनुभूतियों द्वारा व्यक्त करते हैं और शायद इसलिए ही वे संवादों का सहारा कम लेते हैं.
किम का सिनेमा सबसे अलग है. नैराश्य के नेपथ्य को रचने में वे उसी नियम का पालन करते हैं, जैसे एक चित्रकार, चित्र बनाते समय करता है और एक कवि, कविता लिखते समय. यानी रंग और कथा का अर्थ-'अविभाज्य'.
और मुक्त होने और मुक्त करने का यह सम्मोहन हथेली पर पिघले मोम की तरह, देर तक जमता नहीं.
यही है 'द बो'
डिस्क्लेमर: लेखिका की 'कामनाहीन पत्ता', 'नीला आईना' और 'परख' शीर्षक से किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं. इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार उनके निजी हैं, उनसे एनडीटीवी का सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.