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This Article is From Dec 21, 2015

कल्पना का ब्लॉग : जब बेटियों से आपका 'पेट' भर जाए तो क्या कीजिएगा...

Kalpana
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 23, 2015 13:50 pm IST
    • Published On दिसंबर 21, 2015 15:55 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 23, 2015 13:50 pm IST
कुछ दिनों पहले हिंदी समाचार वेबसाइट की एक रिपोर्ट देखी जिसमें महाराष्ट्र की उन लड़कियों के बारे में बताया गया जिन्हें पैदा होते ही ‘नाकुशा’ नाम दे दिया जाता है। नाकुशा का मतलब है अनचाही और जैसा कि नाम से ज़ाहिर है, इस प्रथा को चलाने वालों का मानना है कि लड़के की चाह में जब बार बार लड़की होती जाए तो उसे कुछ नाम देने से अच्छा है‘नाकुशा’ बुलाया जाए। हालांकि 2011 में राज्य के सतारा जिला परिषद ने इस कुरीति से लड़ने का बीड़ा उठाया और इन लड़कियों का नामकरण करने की शुरुआत की।

ख़ैर, एक दिन इस बारे में घर पर काम में हाथ बंटाने वाली अनीता से चर्चा कर रही थी तो पता चला कि उसकी बहन ने भी अपनी छोटी बेटी का नाम ‘राम भतेरी’ रखा है।  बता दूं कि हरियाणा में ‘भतेरी’ का मतलब होता है ‘बहुत’और अनीता की बहन, दो लड़कियों के बाद एक और और लड़की का ‘दुख’ उठाने के लिए तैयार नहीं थी इसलिए उसने अपनी दूसरी बेटी के नाम के आगे ‘भतेरी’ लगा दिया यानि अब और नहीं। वैसे एक सहेली ने भी बताया कि उसके घर भी सबसे छोटी बहन को ‘प्यार’ से भतेरी बोला जाता था। इन दोनों की बात सुनकर मुझे मेरी नानी याद आ गईं जो तीन बहनों में सबसे छोटी थी और उनका नाम घरवालों ने ‘धापली’ रखा था। हरियाणा, राजस्थान में इस्तेमाल होने वाले इस ‘धापली’ शब्द का मतलब होता है ‘पेट भर जाना’ और सोचिए जब आज के ज़माने में लोगों को लड़की‘भतेरी’ लगती है तो फिर तो वो नानी का ज़माना था।

इसी तरह बातों बातों में एक और दोस्त ने बताया कि उसके दादा उसे ‘कड़को’ नाम से बुलाते थे। वजह – एक तो लड़की, ऊपर से महीने के आखिर में पैदा हुई, ज़रूर किसी दुश्न की बद्दुआ लगी होगी।  ऐसे ही पिछले दिनों इंडियन एक्सप्रेस में हरियाणा के मेवात जिले के नीमखेड़ा गांव की ख़बर आई थी। सुप्रीम कोर्ट का फैसला है कि हरियाणा में अब पढ़े लिखे लोग ही पंचायत चुनाव लड़ सकेंगे। रिपोर्ट में नीमखेड़ा गांव की पंचायत के बारे में बताया गया जिसमें ज्यादातर सदस्य औरतें ही हैं और पढ़ी लिखी नहीं है। यहां तक की गांव की सरपंच भी औरत ही है जिनका नाम है ‘अशुभी..’

अब ज़रा बिहार चलते हैं, एक दोस्त के घर शादी का कार्ड आया जिसपर नज़र पड़ी तो दुल्हन का नाम था चिंता देवी। बात करने पर पता चला कि बिहार में कई लड़कियों के नाम ‘चिंता’ रखे जाते हैं, इसकी वजह बताने की ज़रूरत तो नहीं ही है। लिस्ट यहीं खत्म नहीं होती, एक परिचित की पांच बेटियां हैं जिसमें से सबसे छोटी बेटी का नाम एक पड़ोस वाली आंटी ने ‘आचुकी’ रख दिया था क्योंकि उन्हें लगता था कि जितनी (लड़कियां) आनी थीं, आ चुकी, अब और नहीं। एक काफी पढ़े लिखे परिवार की दादी ने अपनी पोती का नाम भंवरी  रखा क्योंकि उसके सिर में भंवर था और बकौल दादी जिसके सिर में भंवर होता है अगली बार उसको ‘भाई’ होता है। ‘इतिश्री’ और ‘मुक्ति’ इसी विचारधारा के साथ रखे गए नाम हैं।

बचपन में एक कहानी पढ़ी थी नाम बड़ा या काम।  बात भी सही है कि नाम में क्या रखा है आदमी की पहचान उसके काम से होनी चाहिए, लेकिन जिस समाज को सिर्फ लड़कों से ही काम हो और लड़की उन्हें हमेशा ज्यादा लगें वहां ध्यान जाना स्वाभाविक है । हो सकता है जो माता पिता अपनी लड़की को भतेरी बुलाते हों कल को वो ही उनकी जिंदगी में भतेरा सुख लाए। जो लड़की चिंता नाम से पुकारी जाती हो वहीं अपने परिवार को चिंता से मुक्ति दिलाए।

वैसे यह हाल सिर्फ भारत का ही नहीं होगा और भी कई पितृसत्तात्मक देश होंगे जहां लड़कियों के लिए इस तरह के नाम रखना बड़ी सामान्य सी बात होगी। इतनी सामान्य की कई बार तो हमारा-आपका इस तरफ ध्यान भी नहीं जा पाता। शायद ध्यान देना ज़रूरी भी नहीं है क्योंकि अगर सिर्फ ‘निर्भया’ नाम रख देने से लड़कियों का भला हो पाता तो बात ही क्या होती। इसलिए छोड़िए...जाने दीजिए..इग्नोर मारिए..

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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