अब दूर देश चीन से आए इस शख्स में मेरी दिलचस्पी और बढ़ने लगी थी। मैंने उनका नाम पूछा, जवाब मिला - फायो। तो मैंने फायो से पूछा कि इतनी अच्छी हिंदी कहां से सीखी तो जवाब मिला - बॉलीवुड फिल्में देखकर। फायो ने बताया कि उन्हें हिंदी सीखनी थी और उन्हें कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था। पचास साल की उम्र में वह किसी क्लास जॉइन करने के मूड में भी नहीं थे इसलिए उन्होंने बॉलीवुड फिल्मों का सहारा लिया। हर रोज़ हॉन्गकॉन्ग के अपने घर में खाना खाते वक्त, उठते, बैठते बॉलीवुड फिल्मों को देखते हैं और अब यह आलम है कि बिना किसी अंग्रेज़ी शब्द को बीच में लाए वह धारा प्रवाह हिंदी बोल लेते हैं। फायो की पत्नी (जिनका नाम मैं भूल गई) ने बताया कि वह अपने पति की इस 'पागलपंती' में शामिल तो नहीं होती लेकिन उन्हें इससे कोई दिक्कत भी नहीं है।
हैप्पी न्यू ईयर में शाहरुख और दीपिका एक साथ नज़र आए थे
हिंदी सीखते सीखते फायो को बॉलीवुड फिल्मों से इतना प्यार हो गया है कि उनके सामने आप किसी भी लोकप्रिय, समकालीन हिंदी फिल्म का नाम लीजिए और वह खट से उस पर अपनी राय देना शुरू कर देंगे। ऐसी कोई हिंदी फिल्म नहीं होगी जिसके बारे में मीडिया में बात चल रही हो और फायो को उसके बारे में कुछ पता न हो। फायो बनारस में बैठकर मसान फिल्म की बात करना भी नहीं भूले जिसकी कहानी इसी शहर के एक लड़के के बारे में थी। हालांकि फायो को मसान काफी 'डार्क' लगी और उसे देखकर वह काफी उदास हो गए थे। फायो ने बताया 'मुझे हैप्पी न्यू ईयर बहुत अच्छी लगी, अभिषेक बच्चन मुझे बहुत पसंद है।' मैंने कहा - लेकिन यहां तो अभिषेक बच्चन को बहुत ज्यादा पसंद नहीं किया जाता। उनकी फिल्में फ्लॉप होती हैं। तो जवाब में फायो ने श्रेयस तलपड़े का नाम ले दिया, कहा कि उन्हें श्रेयस भी बहुत पसंद है। अब यह कहकर मैं फायो का हौंसला नहीं गिराना चाहती थी कि वह जिन जिन कलाकारों के नाम ले रहे हैं, हिंदुस्तान में उन्हें फ्लॉप हीरो की श्रेणी में रखा जाता है।
खैर, मज़ेदार बात यह थी कि फायो को हिंदी सीरियल देखना भी उतना ही अच्छा लगता था। यह सुनकर मेरा मुंह खुला का खुला रह गया कि उनका पसंदीदा धारावाहिक 'ससुराल सिमर का है', वह सीरियल जो मैंने खुद कभी नहीं देखा लेकिन हां मेरी मां और उनकी सहेलियों की बदौलत उसका नाम बहुत सुना था। पाकिस्तानी सीरियल 'जिंदगी गुलज़ार है' भी फायो को बहुत बहुत पसंद है। लेकिन जब मैंने उनसे उनकी सबसे पसंदीदा फिल्म के बारे में पूछा तो जवाब मिला - वेलकम टू सज्जनपुर!! मैंने उसे 10 बार देखा है। फायो मुझे हैरान पर हैरान किए जा रहे थे। हिंदुस्तान में पता नहीं कितने लोगों ने श्याम बेनेगल की यह फिल्म देखी होगी लेकिन यह चीनी आदमी उस फिल्म की तारीफ करने में जुट गया तब जबकि उस फिल्म में हिंदी कम और क्षेत्रीय भाषा का ज्यादा इस्तेमाल हुआ है।
जि़ंदगी गुलज़ार है में फवाद ख़ान अहम रोल में थे
फायो ने और भी बहुत सारी हिंदुस्तानी फिल्मों के बारे में मुझे बताया था, हिंदी फिल्मों को लेकर उनके पागलपन ने मुझे इतना हैरान कर दिया कि मैं उनसे उनका ईमेल आईडी या पता लेना भी भूल गई। कुछ दिनों से ऑस्कर अवॉर्ड के बारे में खबरें पढ़ रही हूं, लिख रही हूं और हर साल की तरह इस साल भी यह लाइन सुन रही हूं कि 'हमारे यहां ऐसी फिल्में क्यों नहीं बनती?' लेकिन फिर आपकी मुलाकात फायो जैसे किसी शख्स से होती है।
बहुत समय तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बॉलीवुड फिल्मों को नकारा जाता रहा है। उसमें शामिल नाच-गाने, तेज़ डायलॉग और ऐसी कई बातों पर हंसा जाता है जो शायद पश्चिम द्वारा रची गई सिनेमा की परिभाषा में फिट नहीं बैठते। लेकिन चीन से लेकर जर्मनी और अन्य कई देशों में जिस तरह गैर भारतीयों के बीच बॉलीवुड लोकप्रिय हो रहा है, उसे देखकर लगता है कि शायद हमारी फिल्में फ्रांस और इटली के 'गंभीर' और अमेरिका की 'वक्त से आगे' चलने वाली फिल्मों के बीच के खालीपन को भरने का काम कर रही हैं। मेरी इस समझ को गलत ठहराया भी जा सकता है लेकिन फायो के बॉलीवुड प्यार का क्या करेंगे...
कल्पना एनडीटीवी ख़बर में चीफ सब एडिटर हैं
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