वो दुनिया के अलग-अलग अलग हिस्सों से आए, कोई इंग्लैंड, कोई अमेरिका, कोई ऑस्ट्रेलिया कोई डेनमार्क, कोई फिलीपींस. मदद की पेशकश हर जगह से. थाइलैंड के चिरांग राई में दो हफ्ते से गुफा में फंसे जूनियर फुटबॉल टीम के 13 सदस्यों के लिए. 18 गोताखोरों की जो टीम इन बच्चों को बाहर निकालने के लिए गुफा में उतरी उनमें 15 विदेशी और पांच थाई नेवी के सील गोताखोर रहे. रेस्क्यू टीम की अगुवाई गुफाओं में गोताखोरी के एक्सपर्ट रिक स्टैनटन और जॉन वोलैनदेन ने की. डेनमार्क के गोताखोर आइवन करैडजिच भी टीम का हिस्सा रहे और ऑस्ट्रेलियन डॉक्टर और गुफा में गोताखोरी के एक्सपर्ट रिचर्ड हैरिस भी टीम में रहे. 90 लोगों के बचाव दल में 50 विदेशी हैं और अधिकतर खुद अपनी इच्छा से आए हैं यानी वोलंटियर हैं.
पूरी दुनिया की नज़र इस घटना पर है और सोशल मीडिया पर दुनिया के हर हिस्से से इन सब के लिए दुआओं की झड़ी लगी है. और इन सब में उभर कर आया है इंसानियत का वो चेहरा जो आज की दुनिया में दुर्लभ लगती है. जब देश एक दूसरे के खिलाफ हो रहे हों, देशों के अंदर अलग-अलग समुदायों में रिश्ते टूट रहे हों, व्यापार युद्द हो रहे हों तो इंसानियत का ये चेहरा उम्मीद देता है. ये मामला शायद इसलिए भी बाकियों से अलग रहा क्योंकि बात बच्चों की थी. 11 से 16 साल तक के बच्चे वाइल्ड बोर्स नाम की इस फुटबॉल टीम के सदस्य हैं. टीम के कोच की उम्र महज़ 25 साल है और परिवार में सिर्फ दादी हैं.
23 जून 2018 को दुनिया के किसी भी कोने के बच्चों की तरह ही ये सभी खेल खेल में इस गुफा में घुसे- खतरे से अंजान. और जब गुफा के पानी ने रास्ता रोका तो चार किलोमीटर अंदर एक सुरक्षित जगह पर पहुंच मदद का इंतज़ार किया. काफी मेहनत के बाद और ब्रिटिश गोताखोरों की मदद से 2 जुलाई को ये मिले. गुफा के अंदर ली गई इन बच्चों की हंसती मुस्कुराती तस्वीरों ने सबको दंग कर दिया और फिर शुरू हुई इन्हें निकालने की एक अंतरराष्ट्रीय कोशिश. एक ऐसी कोशिश जहां पूरी दुनिया इन मासूमों के साथ खड़ी नज़र आई. खुद थाईलैंड में भी अपने इन बच्चों के लिए कोशिशों में कोई कोर कसर नहीं रखी गई.
रिटायर हो चुके थाई नेवी सील समन गुनान एक बार फिर वापस आए और इन बच्चों की मदद करते करते अपनी जान से हाथ धो बैठे. गुफा से पंप कर निकाला गया हज़ारों लीटर पानी चावल की खेती करने वाले गरीब किसानों के खेत में गया, फसल डूबती रही लेकिन उनका कहना था कि बच्चों को बचाया जाना ज़रूरी है, चावल तो फिर उग जाएंगे. लेकिन जो पानी पंप कर रहे हैं वो कहते हैं कि बच्चों को निकालने के बाद, खेतों से भी पानी निकाल कर जाएंगे. दुनिया भर का मीडिया वहां जुटा है और वॉलेन्टियर ही उनके लिए खाना पका रहे हैं. यानी जो भी जो कुछ भी कर सकता है वो कर रहा है. ये एक घटना बताती है कि इंसान की इंसानियत क्या होती है. काश ये इंसानियत और जगहों पर भी दिखती.
कादम्बिनी शर्मा NDTV इंडिया में एंकर और एडिटर (फॉरेन अफेयर्स) हैं...
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This Article is From Jul 10, 2018
काश ये इंसानियत और जगहों पर भी दिखती
Kadambini Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 10, 2018 18:49 pm IST
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Published On जुलाई 10, 2018 18:49 pm IST
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Last Updated On जुलाई 10, 2018 18:49 pm IST
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