आखिर वही हुआ जिसका उद्धव ठाकरे की पार्टी को डर था. महाराष्ट्र विधानसभा के स्पीकर राहुल नार्वेकर ने उनकी उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें दल बदल कानून के आधार पर मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे समेत उनकी पार्टी के 16 विधायकों को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित करने की मांग की गयी थी. ये मामला जून 2022 में शिंदे की ओर से शिव सेना में बगावत के बाद से लंबित था. इस फैसले से जहां ठाकरे गुट को झटका लगा है तो वहीं सत्ताधारी गठबंधन के घटक दल एनसीपी में भी मायूसी छा गयी. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनने के अजित पवार के अरमान पर पानी फिर गया है.
बुधवार शाम 6 बजे तक इस बात को लेकर सस्पेंस बना हुआ था कि शिंदे के पास मुख्यमंत्री की कुर्सी रहेगी या छिनेगी. सियासी गलियारों में चर्चा होने लगी थी कि अगर शिंदे को इस्तीफा देना पडता है तो उनकी जगह कौन मुख्यमंत्री बनाया जायेगा. शिंदे के विकल्पों में एनसीपी नेता और उपमुख्यमंत्री अजित पवार का नाम सबसे ऊपर था. शिंदे की तरह ही अजित पवार भी अपनी मूल पार्टी से बगावत करके सत्ताधारी महायुति में शामिल हुए थे. उनकी मुख्यमंत्री बनने की महत्वकांक्षा किसी से छुपी नहीं रही. वे कई बार सार्वजनिक तौर पर इस बात को बोल चुके हैं. एक बार उन्होंने अपने चाचा शरद पवार की भी निंदा की थी कि साल 2004 के चुनाव में एनसीपी सबसे बडी पार्टी बनकर उभरी थी और पार्टी के पास अपना मुख्यमंत्री बनाने का मौका था लेकिन शरद पवार ने दूसरे नंबर की पार्टी कांग्रेस को मुख्यमंत्री पद दे दिया और बदले में केंद्र में मंत्रिपद ले लिया.
पिछले साल जुलाई में जब अजित पवार ने एनसीपी में बगावत की तबसे ही सियासी गलियारों में ये चर्चा शुरू हो गयी थी कि चंद महीने बाद उन्हें राज्य की गठबंधन सरकार का मुख्यमंत्री बना दिया जायेगा. पुणे और कुछ दूसरे शहरों में उनके समर्थकों ने उन्हें भावी सीएम बताते हुए बैनर, पोस्टर इत्यादि भी लगा दिये थे. उनकी उम्मीदों को आधार स्पीकर का फैसला था. ...लेकिन तमाम तकनीकी और कानूनी पहलुओं को आधार बनाकर स्पीकर शिंदे के पक्ष में फैसला सुना दिया. स्पीकर ने फैसले में कहा कि असली शिवसेना एकनाथ शिंदे की ही है. ठाकरे गुट की ओर से नियुक्त किये गये व्हिप को उन्होंने अमान्य कर दिया और शिंदे गुट की ओर से नियुक्त किये गये व्हिप को मान्यता दी. ठाकरे गुट का दावा था कि 21 जून को उसकी ओर से बैठक के लिये जारी व्हिप का शिंदे गुट के विधायकों की ओर से उल्लंघन किया गया क्योंकि वे बैठक में नहीं आये, इसलिये उनके खिलाफ दलबदल कानून के तहत कार्रवाई हो. स्पीकर ने कहा कि अगर ठाकरे गुट की ओर से नियुक्त व्हिप का मान्यता दे भी दी जाये तब भी ये बात अस्प्ष्ट है कि शिंदे गुट के सभी विधायकों को व्हिप मिला था. व्हिप मिल भी जाता तब भी बैठक में हाजिर होने पर उनकी सदस्यता नहीं छीनी जा सकती. ये पार्टी का अंदरूनी मामला माना जायेगा और पार्टी ऐसे सदस्यों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती थी.
इस फैसले को ठाकरे गुट ने अदालत में चुनौती देने का फैसला किया है लेकिन सवाल ये है कि क्या इससे उसको कोई फायदा पहुंच पायेगा? मौजूदा सरकार का कार्यकाल इस साल अक्टूबर में पूरा हो रहा है. अगर एक महीने चुनाव की घोषणा के बाद लगने वाली आचार संहिता को निकाल दें तो सरकार के पास करीब 7 महीने का ही वक्त बचता है. अगर ठाकरे गुट सुप्रीम कोर्ट में जाता है तो कम से कम तीन से चार महीने का वक्त फैसला आने में लग सकता है. अगर फैसला ठाकरे गुट के पक्ष में आया तो भी शिंदे सरकार तब तक अपना कार्यकाल लगभग पूरा कर चुकी होगी.
(जीतेंद्र दीक्षित पत्रकार तथा लेखक हैं...)
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.