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This Article is From Jul 09, 2018

बीजेपी से कम सीटों पर नहीं लड़ेगी जेडीयू

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 09, 2018 18:49 pm IST
    • Published On जुलाई 09, 2018 18:49 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 09, 2018 18:49 pm IST
'जो हमें नुकसान पहुंचाएगा, उसका ही नुकसान होगा.' अपनी पार्टी जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में नीतीश के ये बोल बीजेपी को साफ संदेश है. यह उस नारे की याद दिलाता है जो राजनीतिक कार्यकर्ता चुनाव के वक्त या फिर पार्टियों में अंदरूनी विभाजन के वक्त लगाते हैं. वो नारा होता है- 'जो हमसे टकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा.' वैसे तो नीतीश और बीजेपी अभी साथ हैं. लेकिन ये साथ इसी बात पर निर्भर है कि बिहार में बीजेपी और जेडीयू के बीच 40 लोकसभा सीटों का बंटवारा कैसे होता है. गुरुवार को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पटना जा रहे हैं. वे नीतीश कुमार से मिलेंगे. इसमें सीटों के बंटवारे पर बातचीत होगी. उसी के बाद गठबंधन की तस्वीर साफ होगी.

लेकिन इस बीच जेडीयू के आला सूत्रों से जानकारी मिली है कि जेडीयू किसी भी कीमत पर बीजेपी से कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी. यानी बीजेपी को यह मानना होगा कि बिहार में नीतीश बड़े भाई हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी 30 सीटों पर लड़ी और 22 जीती. सात सीटें रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति को दी गईं जिसमें वे छह पर जीते. तीन पर उपेंद्र कुशवाहा जीते थे. जेडीयू को सिर्फ दो सीटों पर जीत मिली थी. लेकिन जेडीयू ने याद दिलाया है कि 2014 उसके लिए सबसे खराब समय था इसके बावजूद उसे 17 फीसदी वोट मिले थे. यानी इस बार सीटों का बंटवारा उसकी इसी ताकत के हिसाब से हो. 2009 लोकसभा चुनाव बीजेपी और जेडीयू ने मिल कर लड़ा था. तब जेडीयू ने 25 में से 20 और बीजेपी ने 15 में से 12 सीटों पर जीत हासिल की थी.

लेकिन अब 40 सीटों के लिए चार दावेदार हैं. बीजेपी किसी भी हालत में 2014 में हासिल की गई बढ़त को छोड़ने को तैयार नहीं है. उधर, जेडीयू का कहना है कि 2014 में बीजेपी ने जेडीयू की कई सीटों पर जीत हासिल की थी. वो भी बाहरी उम्मीदवार लाकर या फिर जेडीयू के नेताओं को टिकट देकर. जैसे औरंगाबाद और आरा जैसी सीटें. इसीलिए इन सीटों पर अब जेडीयू का दावा है. गौरतलब है कि जेडीयू आरजेडी के साथ वापस जाने से इनकार कर चुकी है. रविवार की बैठक में कहा गया कि क्राइम, करप्शन और कम्यूनलाइजेशन पर समझौता नहीं होगा. ये अलग बात है कि केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह नवादा जेल में सांप्रदायिक तनाव के बाद बंद बजरंग दल के कार्यकर्ताओं से मिल आते हैं और राज्य सरकार पर तोहमत लगाते हैं. नीतीश इससे खुश नहीं हैं. नीतीश तेजप्रताप के उस पोस्टर से भी बेहद नाराज हैं जिसमें उन्होंने नीतीश के लिए नो एंट्री कहा था. नीतीश कुमार कह रहे हैं कि अब वे हाल-चाल पूछने के लिए लालू प्रसाद को फोन नहीं करेंगे और अखबार से ही उनकी सेहत का हाल पता कर लेंगे.

जेडीयू नेता कहते हैं कि जब लालू प्रसाद के साथ मिल कर सरकार बनाई तब समझ में आया कि उनके साथ काम नहीं कर सकते. इससे गवर्नेंस पर असर होता है और साख खराब होती है जिस पर अब कोई समझौता नहीं हो सकता.

लेकिन दिलचस्प बात है कि जेडीयू कांग्रेस को लेकर वैसी सख्त नहीं है. जेडीयू सूत्र कहते हैं कि अगर कांग्रेस आरजेडी से रिश्ता तोड़े तो उसके साथ जाने पर विचार हो सकता है. यह शायद बीजेपी पर दबाव बनाए रखने की रणनीति हो सकती है. लेकिन इसमें ज़्यादा दम नहीं है क्योंकि कांग्रेस शायद ही अब आरजेडी की कीमत पर नीतीश कुमार को साथ ले. इसे राजनीति में सेक्यूलर जोड़ियां बनाना कहा जा रहा है पर यह शायद ही हो.

उधर, जेडीयू नेता मानते हैं कि साथ रहना बीजेपी की मजबूरी है. खासतौर से तब जबकि एक-एक कर उसके सहयोगी उससे छिटक रहे हैं या फिर छिटकाए जा रहे हैं. जैसे आंध्र प्रदेश में बीजेपी और टीडीपी के रिश्ते टूटे. फिर जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने खुद ही पीडीपी से किनारा कर लिया और सरकार गिर गई. अब चर्चा है कि बीजेपी पीडीपी को तोड़ने की फिराक में है. हालांकि राम माधव इससे इनकार कर रहे हैं. महाराष्ट्र में शिवसेना किस दिन छोड़ कर चली जाएगी यह कोई नहीं कह सकता. वैसे पीएम एक इंटरव्यू में कह चुके हैं कि एनडीए का कुनबा बढ़ रहा है. लेकिन क्षेत्रीय दलों को आशंका है कि बीजेपी उनकी कीमत पर राज्यों में विस्तार कर रही है. ऐसे में वे अपनी जमीन बचाए रखना चाहते हैं. जेडीयू की यह ज़ोर-आजमाइश इसी कवायद का हिस्सा है. लेकिन क्या क्षेत्रीय दल बीजेपी जैसे विस्तारवादी पार्टी पर भरोसा कर सकते हैं? क्या नीतीश कुमार और अमित शाह की बैठक में सीटों का बंटवारे पर सहमति बन जाएगी? यह कुछ ऐसे सवाल हैं जिनके जवाबों पर बीजेपी का मिशन 2019 काफी हद तक निर्भर रहेगा.

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

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