झारखंड के लिए कांग्रेस अपनी रणनीति को लेकर तैयारी में जुटी है, और कांग्रेस सूत्रों की मानें तो पार्टी बिहार मॉडल को झारखंड में भी अपनाना चाहती है, यानि वहां भी एक महागठबंधन बनेगा, लेकिन यहां राह बिहार की तरह आसान नहीं है।
बिहार में लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार को लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद यह अंदाजा हो गया था कि यदि बिहार की राजनीति में वजूद बचाए रखना है तो मिलना ही पड़ेगा, और फिर अपने तमाम राजनैतिक अहंकार को ताक पर रखकर लालू और नीतीश साथ आ गए, और साथ में आए कांग्रेस-एनसीपी भी।
मगर झारखंड में दिक्कत यह है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा ने अकेले चुनाव लड़ने का फैसला किया है। दरअसल झामुमो को लोकसभा चुनाव से कोई फर्क नहीं पड़ता, और वह अपना ध्यान विधानसभा चुनाव पर फोकस करना चाहती है। वैसे झामुमो के पास लोकसभा की दो सीटें हैं।
झारखंड में बीजेपी से टक्कर लेने के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा के बिना कोई कारगर गठबंधन नहीं बन सकता। यह बात कांग्रेस को पता है, इसलिए हेमंत सोरेन को मनाने की कोशिश की जा रही है। दूसरा विकल्प है कि बाबूलाल मरांडी को मनाया जाए, मगर वहां दिक्कत है कि मरांडी हाल के दिनों में राजनैतिक रूप से काफी कमजोर हुए हैं और उनकी पार्टी के नेता या तो बीजेपी में चले गए हैं या कांग्रेस में।
दूसरे, मरांडी गठबंधन में विधानसभा की अधिकतर सीटें चाहते हैं। झारखंड विधानसभा की अभी जो हालत है, उसके मुताबिक कांग्रेस के पास 14, झामुमो के पास 18, आरजेडी के पास पांच और जेडीयू के पास चार सीटें हैं, जबकि बाबूलाल मरांडी के पास 11 सीटें हैं। ऐसे में सीटों का बंटवारा थोडा मुश्किल काम है। सभी पार्टी अपनी औकात से अधिक सीटों पर लड़ना चाहती हैं।
कांग्रेस सूत्रों की मानें तो पार्टी ने अपना ध्यान झारखंड मुक्ति मोर्चा पर लगा रखा है, लेकिन दिक्कत यह है कि आरजेडी सुप्रीमो मुंबई में अपना इलाज करा रहे हैं, और लालू यादव के बिना गठबंधन की बात आगे नहीं बढ़ पा रही है। वैसे सैद्धांतिक तौर पर कांग्रेस, लालू और नीतीश इस बात पर तैयार हैं कि बिहार की तर्ज पर झारखंड में भी साथ चुनाव लड़ा जाए। झारखंड में दिसंबर के अंत में विधानसभा चुनाव होने है, और अब सारा दारोमदार झामुमो पर है।
बाकी दल हेमंत सोरेन को यह समझाने में जुटे हैं कि साथ चुनाव लड़ने से ही बीजेपी को रोका जा सकता है, वरना सभी दलों का पत्ता साफ हो सकता है। इसके लिए बड़ा दल होने के नाते झामुमो इस गठबंधन की अगुवाई कर सकता है, जबकि मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार पर चुनाव बाद चर्चा की जाएगी। यह भी कहा जा रहा है कि चुनाव में हेमंत सोरेन के कार्यकाल में हुए कामकाज पर ही वोट मांगा जाएगा। हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सभा के दौरान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की हूटिंग ने बीजेपी विरोधी सभी दलों को एक साथ आने के लिए सोचने पर मजबूर तो कर ही दिया है, साथ ही झारखंड की अस्मिता का मुद्दा भी चुनाव में उठाने का एक कारण इन दलों को मिल गया है।
This Article is From Sep 03, 2014
बाबा की कलम से : झारखंड में आसान नहीं है बिहार जैसा महागठबंधन बनाना
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Updated:नवंबर 20, 2014 15:10 pm IST
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Published On सितंबर 03, 2014 16:51 pm IST
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Last Updated On नवंबर 20, 2014 15:10 pm IST
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