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This Article is From Dec 11, 2018

क्या उर्जित पटेल सरकार का दबाव झेल नहीं पाए?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    December 11, 2018 01:03 IST
    • Published On December 11, 2018 01:03 IST
    • Last Updated On December 11, 2018 01:03 IST
2018 का साल 12 जनवरी के चार जजों के प्रेस कांफ्रेंस से जिन सवालों को लेकर शुरू हुआ था, वह 10 दिसंबर के रिज़र्व बैंक के गवर्नर के इस्तीफे से और बड़ा हो गया है. इस बीच सीबीआई का हाल आप देख चुके हैं. पंचपरमेश्वर की एक पंक्ति है. क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न कहोगे. लगता है कि भारत की सर्वोच्च संस्थाओं पर बैठे कुछ लोगों के ईमान पर कोई दस्तक दे रहा है. 12 जनवरी से यह साल शुरू हुआ, 10 दिसंबर को एक मोड़ पर पहुंचा है. 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के चार सीनियर जज बाहर आए और देश की जनता को बताया कि न्यायपालिका की आज़ादी ख़तरे में है. 10 दिसंबर को भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर उर्जित पटेल ने इस्तीफा देकर उन चर्चाओं को साबित कर दिया कि अपने रहते अब और इस संस्थान की गरिमा दांव पर नहीं लगा सकते हैं. इस बीच आप सीबीआई का हाल देख चुके हैं. जिस सवाल के साथ 2018 का साल शुरू हुआ था लगता है उस सवाल का जवाब अभी तक नहीं मिला है. साल के ख़त्म होने पर नहीं मिला है. कौन है जिसके इशारे पर या जिसके शौक के लिए भारत की इन तमाम संस्थाओं की साख को दांव पर लगाया जा रहा है. उर्जित पटेल जो हमेशा सरकार के दबाव में काम करने वाले गवर्नर के तौर पर ही देखे गए, अचानक क्या हुआ कि वे दबाव से निकलने के लिए तड़प उठे. क्या वे अपने करियर पर यह दाग नहीं रखना चाहते थे जिसकी नाक के नीचे भारतीय रिज़र्व बैंक एक संस्था के रूप में बर्बाद हो गया. अगर यह लड़ाई स्वायत्तता को दांव पर लगाने की नहीं है तो क्या है.

''निजी कारणों से मैंने तुरंत ही अपने मौजूदा पद से इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला किया है. ये मेरे लिए सम्मान की बात है कि भारतीय रिज़र्व बैंक में मुझे कई वर्षों तक कई पदों पर काम करने का मौका मिला. हाल के वर्षों में आरबीआई की उल्लेखनीय उपलब्धियों की वजह आरबीआई के कर्मचारियों, अफ़सरों की कड़ी मेहनत और प्रबंधन का सहयोग रहा है. मैं इस अवसर पर अपने सहयोगियों और सेंट्रल बोर्ड के निदेशकों के प्रति आभार प्रकट करता हूं. उन्हें अच्छे भविष्य की शुभकामनाएं देता हूं.'

निजी कारणों से मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम भी इस्तीफा दे गए, और निजी कारणों से उर्जित पटेल भी. नवंबर के महीने में जब यह विवाद आया कि सरकार चाहती है कि रिज़र्व बैंक के पास जो 3 लाख 60 हज़ार करोड़ का रिज़र्व है वो दे दे. आखिर सरकार को क्यों ज़रूरत पड़ी कि वो रिज़र्व खज़ाने से पैसा ले जबकि वह दावा करती रहती है कि आयकर और जीएसटी के कारण आमदनी काफी बढ़ गई है. रिज़र्व बैंक अपने सरप्लस का एक साल में 50,000 करोड़ के आसपास देता ही है लेकिन 3 लाख 60 हज़ार करोड़ देने के नाम से रिज़र्व बैंक के कदम ठिठक गए. रिज़र्व बैंक अपनी पूंजी उन बैंकों को नहीं देना चाहता था जिनके पास लोन देने के लिए पूंजी नहीं है. जिनका एनपीए अनुपात से कहीं ज्यादा हो चुका है. 20 नवंबर की रिजर्व बैंक के बोर्ड बैठक को लेकर ही चर्चा थी कि उर्जित पटेल इस्तीफा दे देंगे मगर ऐसा नहीं हुआ. लगा कि सब सुलझ गया. मगर कोई कब तक बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं कहता. उर्जित पटेल ने इस्तीफा दे दिया.

इस विवाद की आहट सुनाई दी थी जब डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अर्जेंटीना का उदाहरण देते हुए कह दिया कि वहां की सरकार भी रिज़र्व बैंक के खज़ाने को हथियाना चाहती थी, विरोध में गवर्नर ने इस्तीफा दिया और वहां तबाही आ गई. सितंबर 2019 में उर्जित पटेल का कार्यकाल पूरा हो रहा था. 5 सितंबर 2016 को गवर्नर बने थे. 2013 में डिप्टी गवर्नर बने थे. रिजर्व बैंक के गवर्नर का इस्तीफा देना सामान्य खबर नहीं है. पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने रायटर से कहा है कि 'आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल द्वारा इस्तीफा एक गंभीर चिंता का विषय है. एक सरकारी कर्मचारी द्वारा इस्तीफ़ा देना विरोध का प्रतीक होता है. पूरे देश को इसे लेकर चिन्तित होना चाहिए.'

रघुराम राजन को और साफ करना चाहिए कि क्यों उर्जित पटेल के इस्तीफे को लेकर पूरे देश का चिन्तित होना चाहिए, क्यों उर्जित पटेल का इस्तीफा विरोध का प्रतीक है. उसके क्या मायने हैं. यह वक्त चीज़ों को साफ साफ देखने का भी है, अर्थव्यवस्था के भीतर वे कौन से अनजाने हालात पैदा हो रहे हैं जो रिज़र्व बैंक की स्वायत्तता को गटक जाना चाहते हैं. नवंबर महीने में राजन ने सीएनबीसी चैनल की एंकर लता वेंकटेश जी से बात की है. राजन ने भी डिप्टी गवर्नर विरल आचार्या की बात का एक तरह से समर्थन किया है कि सरकार को रिज़र्व बैंक पर हाथ डालने का प्रयास नहीं करना चाहिए, यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है. एक बार आपने किसी को गवर्नल और डिप्टी गवर्नर नियुक्त कर दिया तो आपको उनकी बात सुननी चाहिए. तो क्या उर्जित पटेल को नहीं सुना जा रहा था. उनके इस्तीफे के बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली का बयान आया है.

'उर्जित पटेल ने रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर और डिप्टी गवर्नर के रूप में देश के प्रति जो योगदान दिया है, उसके प्रति सरकार आभार प्रकट करती है. उनके साथ काम करने का अनुभव काफी अच्छा रहा. उनकी विद्वता का मुझे काफी लाभ मिला. मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूं.'

'डॉ. उर्जित पटेल उच्च कोटि के अर्थशास्त्री हैं और व्यापक अर्थव्यवस्था की गहरी समझ रखते हैं. उन्होंने बैंकिंग व्यवस्था को अराजकता से निकालकर अनुशासन की स्थिति में पहुंचाया है. उनके नेतृत्व में आरबीआई ने वित्तीय स्थिरता बहाल की है. वे पूरी तरह से पेशेवर हैं. उनकी ईमानदारी संदेह से परे है. वे रिज़र्व बैंक में 6 साल डिप्टी गवर्नर और गवर्नर रहे हैं. वो अपने पीछे एक बड़ी विरासत छोड़ रहे हैं. हमें उनकी कमी खलेगी.'

उर्जित पटेल के इस्तीफे के हालात क्या नोटबंदी से जुड़ते हैं, दो साल तक जब वे चुप रहे, रिजर्व बैंक की रिपोर्ट नहीं आई तो कहा गया कि वे प्रधानमंत्री मोदी के इशारे पर चुप हैं. अगस्त महीने में जब रिपोर्ट आई तो इतना ही कहा कि नोटबंदी के वक्त जितना कैश चलन में था 99 प्रतिशत से अधिक वापस आ गया. चुनाव आयुक्त ओ पी रावत रिटायर होने के बाद कहते हैं कि नोटबंदी के बाद भी चुनावों में कालाधन नहीं रुका. पूर्व आर्थिक सलाहकार कह रहे हैं कि नोटबंदी क्रूरतम कदम था. इसके कारण हम मंदी के कगार पर हैं. कोटक महिंद्रा बैंक के कार्यकारी चेयरमैन उदय कोटक ने कहा है कि नोटबंदी को तैयारी से लागू करना चाहिए था. क्या नोटबंदी की हकीकत बाहर आने के लिए बेताब है. रिज़र्व बैंक के गवर्नर का इस्तीफा क्या संस्था की गरिमा को बचाने के लिए है या फिर इसलिए है कि अब इसे बचाना मुमकिन नहीं है. आज एक और बड़ी खबर है. विजय माल्या लंदन की अदालत में अपना मुकदमा हार गए हैं. आदेश हुआ है कि उन्हें बकायदा भारत ले जाया जाए. मिशेल के बाद माल्या का प्रत्यर्पण बड़ी घटना तो है ही. नीरव मोदी और मेहुल भाई का दिल धड़क रहा होगा.

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