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This Article is From Nov 14, 2018

क्या रफ़ाल सौदे में कहीं कुछ छुपाया जा रहा है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 14, 2018 22:13 pm IST
    • Published On नवंबर 14, 2018 22:13 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 14, 2018 22:13 pm IST
रफाल विमान सौदा सिर्फ सरकार के लिए ही टेस्ट नहीं है, बल्कि मीडिया के लिए भी परीक्षा है. आप दर्शक मीडिया की भूमिका को लेकर कई सवाल करते भी रहते हैं. यह बहुत अच्छा है कि आप मीडिया और गोदी मीडिया के फर्क को समझ रहे हैं. हम सबको परख रहे हैं. दर्शक और पाठक को बदलना ही होगा क्योंकि मीडिया के ज़रिए जो खेल हो रहा है, उसके नतीजे मीडिया को नहीं, आपको भुगतने होंगे. मैंने आपके लिए एक मीडिया टेस्ट किट बनाया है. आप अपने सवाल भी जोड़ सकते हैं इसके ज़रिए आप घर बैठे मीडिया को बदल सकते हैं. तो सबसे पहले आप एक डेडलाइन तय करें. 21 सितंबर 2018 को फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद का बयान आया था कि अनिल अंबानी की कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए भारत सरकार की तरफ से शर्त रखी गई थी. उस दिन के बाद से कोई एक या दो हिन्दी के अख़बार लें. इन अखबारों में रफाल पर छपी हर खबर को काट कर एक फाइल बनाएं. फाइल जब बन जाए तो ध्यान से एक एक खबर को पढ़ें और कुछ सवाल बनाएं.

देखिए कि रफाल की खबर कब-कब पहले पन्ने पर छपी है. क्या तभी छपी है जब किसी मंत्री ने या रफाल बनाने वाली कंपनी ने सौदे में अनिल अंबानी की कंपनी को लाभ पहुंचाने से इंकार किया है, घोटाला न होने का दावा किया है. क्या तब भी रफाल की खबर पहले पन्ने पर प्रमुखता से छपी है जब राहुल गांधी ने रफाल को लेकर आरोप लगाए हैं. इस तरह से आप टेस्ट करेंगे कि यह खबर आपके अखबार के लिए प्रमुख कब है. प्रमुखता का टेस्ट करने के बाद आप डिटेल का टेस्ट करें. रफाल विमान में घोटाला हुआ, इस संबंध में जितने आरोप लगे हैं, क्या उन्हें विस्तार से छापा गया है, रफाल विमान में घोटाला नहीं हुआ क्या इस खबर को पूरे विस्तार के साथ छापा गया है. आप फर्क समझ जाएंगे. रफाल मामले में सिर्फ राहुल गांधी आरोप नहीं लगा रहे हैं.

रक्षा मामलों को कवर करने वाले कई पत्रकार जैसे बिजनेस स्टैंडर्ड में अजय शुक्ला, वायर में रोहिणी सिंह, एक्सप्रेस में सुशांत सिंह, एनडीटीवी में विष्णु सोम और स्क्रोल में साइकत दत्ता की रिपोर्टिंग देख सकते हैं. रोहिणी सिंह ने तो अपनी रिपोर्ट में दस्तावेज़ भी लगाए. इन पत्रकारों की रिपोर्ट से भी कई सवाल उठे हैं, क्या आपके हिन्दी अखबार ने इन सवालों को आप तक पहुंचाया है, क्या आपको पता है कि अजय शुक्ला ने तीन किश्तों में रिपोर्ट लिखी है कि कैसे रफाल विमान का सौदा पहले के सौदे से 40 परसेंट अधिक दाम पर किया गया है. अगर आपको ये सवाल नहीं मालूम तो फिर आप रफाल सौदे को नहीं समझ पाएंगे. इसके अलावा प्रशांत भूषण, यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी ने कोर्ट में याचिका दी है. सवाल उठाए हैं. ये लोग कई जगहों पर प्रेस कांफ्रेंस भी करते रहते हैं. क्या इनके उठाए सवालों को डिटेल में छापा जाता है. आपके सवालों के जवाब आपको बता देंगे कि रफाल सौदे को लेकर आपके अखबार ने कितना अपडेट किया है. यही टेस्ट आप चैनलों के साथ कर सकते हैं. कोई एक बुलेटिन चुन लें और फिर उसका विश्लेषण कर लें.

सुप्रीम कोर्ट में रफाल विमान पर तीन बार सुनवाई हो चुकी है. 14 नवंबर को करीब साढ़े तीन घंटे की सुनवाई चली. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है. जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस जोसेफ भी इस बेंच का हिस्सा हैं. डिप्टी चीफ़ ऑफ़ एयर स्टाफ़ भी इस मामले में अपना पक्ष रखने आए थे तब अदालत में चुटकी भी ली गई कि एयर मार्शल अब जा सकते हैं, यह अलग किस्म का वॉर रूम है. एयर फोर्स के तीन बड़े अधिकारियों ने अपना पक्ष रखा है. यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी और संजय सिंह, विनित हांडा, एम एल शर्मा याचिकाकर्ता हैं जो इस मामले की एसआईटी जांच की मांग कर रहे हैं. सरकार की तरफ से के के वेणुगोपाल जवाब दे रहे थे. सरकार का कहना है कि इसकी समीक्षा कोर्ट को नहीं करनी चाहिए लेकिन सुनवाई के बाद क्या फैसला आएगा इंतज़ार किया जा सकता है. मामले को कवर करने गए पत्रकारों का कहना है कि बेंच की तरफ से सरकार और याचिकाकर्ता दोनों से मुश्किल सवाल पूछे गए. हमारे सहयोगी आशीष भार्गव ने लगातार रिपोर्टिंग की है. उन्हीं की भेजी खबर का हिस्सा पेश कर रहा हूं.

- प्रशांत भूषण का सवाल था कि दो देशों की सरकार के बीच एग्रीमेंट से किया गया ताकि टेंडर न जारी करनी पड़े.
- सरकार ने यह नहीं बताया कि अगर दास्सो रफाल नहीं दे पाती है तो कौन ज़िम्मेदार होगा.
- सरकार ने फ्रांस से सोवरन गारंटी नहीं ली, इंटर गवर्नमेंटल एग्रीमेंट में आगे बढ़ गई.
- कानून मंत्रालय ने चिंता जताई थी कि अगर विवाद हुआ तो फैसला जिनिवा में होगा जो भारत के लिए अच्छा नहीं होगा.
- इस पर कोर्ट ने सरकार से पूछा कि क्या फ्रांस ने भारत को गारंटी दी है?
- अटार्नी जनरल ने कहा कि कोई संप्रभु गारंटी नहीं है, लेटर ऑफ कंफर्ट है.
- चीफ जस्टिस ने पूछा कि तो आपके पास कोई गारंटी नहीं है?
- सरकार कहती है कि यह संवेदनशील मामला है. देश की सुरक्षा का मामला है.

इसके बाद ऑफसेट पार्टनर को लेकर बहस छिड़ी. आप जानते हैं कि दास्सो ने ऑफसेट पार्टनर के रूप में अनिल अंबानी की कंपनी को अपना पार्टनर चुना है. कंपनी के हिसाब से उसने अंबानी सहित तीस कंपनियों को पार्टनर चुना है. इस सवाल का संदर्भ है कि डील होने के कुछ दिन पहले तक हिन्दुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड का नाम इसके लिए था, मगर डील होने के बाद पता चलता है कि ऑफसेट पार्टनर के रूप में अनिल अंबानी की कंपनी को जगह मिली है. राहुल गांधी लगातार आरोप लगा रहे हैं कि अनिल अंबानी की कंपनी को फायदा पहुंचाया गया है. ऑफसेट पार्टनर के सवाल पर भी सरकार ने सीक्रेट रखने की शर्तों का हवाला दिया. प्रशांत भूषण ने सवाल उठाए.

- प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार कहती है कि वह ऑफसेट पार्टनर के बारे में नहीं जानती है जो तय की गई प्रक्रिया के खिलाफ है.
- प्रशांत भूषण ने आरोप लगाया कि ऑफसेट तय करने की प्रक्रिया बदल कर बैक डेट से लागू कर दी गई.
- अटॉर्नी जनरल ने कहा है कि गुप्पतता का करार है तो बातें गुप्त रखनी ही होंगी.
- तब जस्टिस के एम जोसेफ ने पूछा कि अगर ऑफसेट पार्टनर भाग गया तब क्या होगा?
- तब सरकार ने कहा कि कांट्रेक्ट की शर्तें ऑफसेट पार्टनर पर भी लागू होती हैं.
- प्रशांत भूषण ने कहा कि सरकार कैसे कह सकती है कि पता नहीं जबकि प्रक्रिया से साफ है कि रक्षा मंत्री की अनुमति के बिना नहीं हो सकता है.
- अटॉर्नी जनरल कहते हैं कि ऑफसेट पार्टनर का फैसला होने से पहले ही सौदे पर दस्तखत हो गए थे.
- हमें 36 विमान फौरन चाहिए थी इसलिए डील बदल दी.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से ही पता चलेगा कि ऑफसेट पार्टनर के लिए डील बदल दी गई या फिर वाकई जल्दी विमान चाहिए थे इसके लिए डील बदली गई. इस पर याचिकाकर्ताओं का कहना है कि 2019 से 22 के बीच ही विमान आएंगे. सौदे के साढ़े तीन साल हो गए मगर अभी तक एक भी विमान नहीं आया है. 25 मार्च 2015 के प्रेस कांफ्रेस में दास्सो के सीईओ ने कहा कि डील जल्द फाइनल होगी. सौदे के 95 फीसदी पर सहमति बन गई है. तकनीक ट्रांसफर के ज़रिए एचएएल कई उपकरण बनाएगा. मगर एचएएल सौदे से बाहर हो गई. किसी से नहीं पूछा गया. रक्षा मंत्री को भी पता नहीं था. सरकार जानती है कि एयरफोर्स के लिए 36 विमान काफी नहीं है तो फिर 126 से घटाकर 36 क्यों किया गया. प्रधानमंत्री ने कैसे घोषणा कर दी. डील इसलिए बदली गई क्योंकि प्रधानमंत्री अंबानी को शामिल करना चाहते थे. अब हम आपको दो वीडियो दिखाना चाहते हैं. 25 मार्च 2015 का यानी डील होने के एक महीना पहले का और 13 नवंबर 2018 का, दोनों एक ही शख्स का है. दास्सो के सीईओ का. 25 मार्च को यही शख्स एचएएल का नाम ले रहा है मगर क्या एएनआई की स्मिता प्रकाश को बता रहा है कि उसे तब क्या जानकारी थी, उसने क्यों एचएएल का नाम लिया था. आप भी पढ़ें...

After an outstanding amount of work and some discussion, you can imagine my great satisfaction to hear on one hand from the Indian Air Force chief of staff that he wants a combat proven aircraft which could be the Rafale... and on the other hand from HAL chairman that we are in agreement for the responsibilities sharing, considering as well our conformity with the RFP (Request for Proposal) in order to be in line with the rules of this competition. I strongly believe that contract finalisation and signature would come very soon."

15 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री मोदी और पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के बीच करार होता है. सीईओ का यह बयान 25 मार्च 2015 का है. करार से बीस दिन पहले का. इसमें आपने पढ़ा कि वे बोल रहे हैं कि एचएएल के चेयरमैन से सुनकर आप मेरे संतोष की कल्पना कर सकते हैं. चेयरमैन ने कहा है कि एचएएल इस डील से जुड़ी ज़िम्मेदारियों को उठाने के लिए तैयार है. अब वे 13 नवंबर को क्या कहते हैं एएनआई की स्मिता प्रकाश से, वो भी पढ़ि‍ए...

"As a supplier we were pushing to try to get the deal. We were the winner in 2012. So we really wanted to get the deal. And the deal was that for 126 aircraft. So we were still working on that deal with, as I said, HAL and Indian Air Force. It was true, as I said also, and I believe that the government of India said that it's too long and too difficult, the 126. So go ahead with 36, supplied by Government of France. This was exactly what happened in 2015."

13 नवंबर को कह रहे हैं एक सप्लायर के नाते हम यह डील चाहते थे. डील 126 विमानों की थी. हम एचएएल और भारतीय वायुसेना के साथ काम कर रहे थे. मैंने एचएएल के बारे में कहा था, यह सच है. मगर वे यह नहीं बता रहे हैं कि एचएएल डील से कैसे बाहर हो गई. वे यह भी नहीं कह रहे हैं कि एचएएल के बारे में उन्होंने कहा तो था मगर जब वो डील से बाहर हो गई तो सुनकर हैरानी हुई. उनके जवाब में बहुत दम नहीं दिखता है. वे एचएएल की तारीफ भी करते हैं लेकिन जवाब में स्पष्टता नहीं है. आप खुद भी उनके सारे जवाब को सुनिए और समझने का प्रयास कीजिए. तो ऑफसेट पार्टनर कैसे चुना गया, इसके चुने जाने की क्या प्रक्रिया थी, क्या उसका पालन हुआ, फिर रफाल बिमान के दाम को लेकर बहस हई. अजय शुक्ला ने बिजनेस स्टैंडर्ड में रफाल की कीमतों पर तीन किश्तों की लंबी रिपोर्ट लिखी है. जिसमें दावा किया है कि मोदी सरकार के समय जो करार हुआ है उसके अनुसार 40 प्रतिशत अधिक कीमत दी जा रही है. आपको पता दें कि एएनआई की स्मिता प्रकाश से दास्सो के सीईओ ने दावा किया है कि डील पहले से 9 प्रतिशत सस्ती है. 28 अगस्त को वित्त मंत्री और पूर्व रक्षा मंत्री अरुण जेटली ब्लॉग लिखते है कि एनडीए की डील यूपीए से 9 प्रतिशत सस्ती है. जेटली बेसिक एयरक्राफ्ट के बारे में 9 प्रतिशत सस्ती डील की बात कर रहे हैं. फिर जेटली कहते हैं कि भारत की ज़रूरतों के मुताबिक इस एयरक्राफ्ट को लैस किया जाता है वो भी यूपीए की तुलना में 20 प्रतिशत कम है. दास्सों के सीईओ ने यह तो कहा है कि मौजूदा एयरक्राफ्ट 9 प्रतिशत सस्ता है लेकिन उनके जवाब से साफ नहीं होता कि वे बेसिक एयरक्राफ्ट की बात कर रहे हैं या फिर जेटली के अनुसार भारत की जरूरतों से लैस एयरक्राफ्ट की कीमत की बात कर रहे हैं.

- सरकार ने रफाल विमान की कीमत सीलबंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपी है.
- प्रशांत भूषण की दलील थी कि कीमत से राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा नहीं है.
- रफाल विमान की सारी जानकारियां सार्वजनिक हैं.
- संसद में भी रफाल विमान की कीमत बताई जा चुकी है.
- अटार्नी जनरल ने कहा कि संसद में बिना हथियार व उपकरण से लैस जेट की कीमत बताई गई.
- बिना फ्रांस की मंज़ूरी के पूरी तरह तैयार जेट की कीमत नहीं बता सकते हैं.

वैसे 8 मार्च को इंडिया टुडे से फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों ने कहा था कि मोदी सरकार चाहे तो रफाल विमान के डिटेल्स विपक्ष से साझा कर सकती है. के के वेणुगोपाल ने कहा कि अगर फ्रांस की जानकारी के बिना गोपनीय जानकारी सार्वजनिक की गई तो यह इंटर गर्वनमेंटल एग्रीमेंट का उल्लंघन होगा. सरकार ने रफाल डील के न्यायिक परीक्षण का विरोध किया है. के के वेणुगोपाल ने कहा कि उन्होंने भी सीलबंद रिपोर्ट नहीं देखी है. इसलिए कीमत के बारे में कुछ नहीं कह सकते हैं.

- चीफ जस्टिस ने पूछा कि क्या 2007 की पुरानी डील में भी कीमत का खुलासा नहीं किया गया था?
- क्या उस वक्त भी हथियारों व उपकरणों की जानकारी को गोपनीय रखा गया था
- अटॉर्नी जनरल ने कहा कि उस वक्त भी गोपनीय था.

इस पर प्रशांत भूषण ने हस्तक्षेप किया और कुछ रिपोर्ट दिखाने की कोशिश की, लेकिन तब चीफ जस्टिस ने कहा कि आपने वक्त पर ये रिपोर्ट दाखिल नहीं की. अब दो घंटे की सुनवाई नहीं हो सकती है. सुनवाई के दौरान जब के के वेणुगोपाल ने कहा कि अगर रफाल विमान कारगिल युद्ध के दौरान भारत के पास होता तो कई सैनिकों की जान बचाई जा सकती थी. इस पर चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने अटॉर्नी जनरल को टोकते हुए कहा कि कारगिल युद्ध 1999-2000 में हुआ था और रफाल विमान 2014 में आया है. इस तरह के बयान मत दीजिए.

इसे लेकर पत्रकारों के बीच भी खूब सवाल जवाब हो रहे हैं. उनका कहना है कि दास्सो के सीईओ ने सवालों के जवाब सही नहीं दिए और उनसे कई सवाल नहीं पूछे जा सके. ला मोंद के एक पत्रकार हैं जुलियन बस्सॉ ने एएनआई को दिए इंटरव्यू के बाद कई सवाल उठाए हैं.

सीईओ- हमने 2011 में ही रिलायंस ग्रुप से बातचीत शुरू कर दी थी, तब ओलांद राष्ट्रपति नहीं थे. मोदी प्रधानमंत्री नहीं थे.
- जुलियन- दास्सो की तब मुकेश अंबानी के रिलायंस ग्रुप से बात हो रही थी न कि अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप से. वो अलग कंपनी थी.

रफाल के सीईओ से पूछे गए सवाल और उनके जवाब...
Question: "The reason I am asking this because the former president Holland said :Dassault was not given an option, they had to pic the off set partners which the Indian govt told them whereas the Indian govt says that nothing of that sort happened"

Answer: "It's totally untrue and that the former president Holland made a correction of what he said, he said clearly that two partners found themselves together so it not at all the decision of french govt or the govt of India that Dassault selected Reliance . I have good example, if i started discussion with reliance group in 2011. in 2100 president was not Holland in France  and the Prime Minister in India was different from the existing Prime Minister of today. we set an agreement in 2012."

Question: " But the reliance at that time was different , it was the other brother so I mean the president was different the only common factor is you. I mean the Prime Minister was different the French President was different , you are the only one who is common ."

Answer- "That's what I said that we decided to go ahead we decided to hoop with reliance , within the group as they are two brothers and  the son of the former leader Ambani so it was totally in line it was in a group with one or the other company

अब आप इस जवाब को फिर से पढ़ि‍एगा. हंसी भी आएगी और रोना भी आएगा. सीईओ के इस जवाब से लगता है कि वे दास्सो एविएशन के सीईओ नहीं हैं, सत्तू की पैकिंग करने वाली कंपनी के सीईओ लगते हैं. मैं हिन्दी में बता रहा हूं कि सीईओ अंग्रेज़ी में यह कह रहे हैं कि 'हमने आगे बढ़ने का फैसला किया तो रिलायंस के साथ ही जुड़े रहने का फैसला किया. एक ही ग्रुप के भीतर दोनों भाई हैं और पूर्व लीडर अंबानी के बेटे हैं, लिहाज़ा यह उसी लाइन में था, एक ग्रुप के भीतर की एक या दूसरी कंपनी से था.'

क्या दास्सो के सीईओ को ये लगता है कि भारत में लोगों को अंग्रेजी नहीं आती है. कुछ भी बोल देंगे. 2005 में मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी अलग हो गए थे. हम सब जानते हैं कि मुकेश अंबानी की कई कंपनियां हैं, उसे रिलायंस ग्रुप कहते हैं. अनिल अंबानी की कई कंपनियां हैं जिसे अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप कहते हैं. यानी दोनों अलग-अलग ग्रुप हैं. न कि एक ग्रुप की दो अलग-अलग कंपनियां. मुकेश अंबानी का समूह अपने बैलेंसशीट में कई हज़ार करोड़ के फायदे दिखाता है. अनिल अंबानी का ग्रुप कई हज़ार करोड़ के घाटे में बताया जाता है. अगर ये दोनों एक ही ग्रुप के होते तो इनका कुल मुनाफा भी एक होता और कुल घाटा भी एक होता. क्या ऐसा है. नहीं है. क्या दास्सो एविशन का सीईओ जो भारत के साथ कई हज़ार करोड़ का सौदा कर रहा है, उसे इतना भी नहीं मालूम है कि मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी एक ही ग्रुप के नहीं हैं.

अदालत से जो फैसला आएगा, वो आएगा मगर ये जो बयान आ रहे हैं, उनका क्या किया जाए. रिलायंस के अनुभवी न होने के जवाब में कहते हैं कि शून्य से शुरू होना अच्छा होता है. तो दास्सो बताए कि उसने जो तीस ऑफसेट पार्टनर चुने हैं उसमें से कितनी ऐसी कंपनियां हैं, जो अनिल अंबानी की कंपनी की तरह शून्य से शुरू कर रही हैं. यानी जो पहले शादी ब्याह के प्लेट बनाती थीं और अब उन्हें रफाल के कल पुर्ज़े बनाने का ठेका दिया गया है. एएनआई की स्मिता प्रकाश से सीईओ ट्रैफिए कहते हैं कि मेरी कंपनी क्लीन है. लेकिन 1998 में दास्सो के निदेशक को रिश्वत लेने के मामले में 18 महीने की सज़ा हुई थी. उसने कांट्रेक्ट लेने के लिए 1998 में बेल्जियम के नेताओं को रिश्वत दी थी.

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