दुनिया भर में सरकारी पाबंदियों का दायरा बदलता भी जा रहा है और उनका घेरा कसता भी जा रहा है. धरना-प्रदर्शन या आंदोलन करना मुश्किल होता जा रहा है. आवाज़ दबाना आसान हो गया है. भले ही असहमति के स्वर की संख्या लाखों में हो मगर अब यह संभव है और हो भी रहा है कि पहले की तुलना में इन्हें आसानी से दबा दिया जाता है, खासकर तब जब कहा जाता है कि सूचना के बहुत सारे माध्यम हो गए हैं. इंटरनेट और सोशल मीडिया हो गया है. लेकिन इसी दौर में सरकार अचानक इंटरनेट सेवा ठप्प कर देती है. स्मार्टफोन बेकार हो जाते हैं और आप एक झटके में पब्लिक बूथ से पहले के ज़माने में यानी आज से पचास साल पहले के दौर में चले जाते हैं. दुनिया भर में नज़र घुमाइये, सेना और पुलिस की क्रूरता पहले से कहीं ज़्यादा सख़्त और दुरुस्त है. इस पर बहस होनी चाहिए कि टेक्नॉलजी ने हमारी लोकतांत्रिकता का विस्तार किया है या उनका कुचल दिया जाना आसान कर दिया है.
दिल्ली में रविदास मंदिर तोड़े जाने की घटना को लेकर पंजाब के कुछ शहर में प्रदर्शन हुए, बंद हुआ. गुरुदासपुर, होशियारपुर, जालंधर और कपूरथला में बंद रहा. यानी बहुत सारे लोग सड़कों पर निकले होंगे लेकिन उसकी कहीं कोई खोज खबर नहीं. हताश होकर लोग चैनलों को फोन करने लगे कि हमारे प्रदर्शन का कवरेज क्यों नहीं. आए दिन राज्यों से सरकारी भर्ती को लेकर प्रदर्शन होते रहते हैं, लाठियां चलती रहती हैं मगर चैनलों तक खबरें नहीं पहुंच पातीं. संख्या में आप चाहे पांच हज़ार हों या पांच लाख, उस दौर में आप शून्य हैं जिस दौर में चैनलों की संख्या हज़ार हो गई है. टेक्नालजी के कारण अब यह मुमकिन है कि प्रदर्शन में शामिल हर किसी की पहचान की जा सकती है, सोशल मीडिया से उनके पोस्ट उठाकर उनकी राजनीति का नक्शा समझा जा सकता है, आंदोलन की आहट मिलते ही कुचलने या शांत करने की तैयारी पुख़्ता की जा सकती है. आंदोलन करना असंभव हो गया है. सरकारों ने ऐसे कानून बना लिए हैं कि मामूली प्रदर्शन में शामिल होने के बाद भी राष्ट्रविरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोप में गिरफ्तार किए जा सकते हैं. मीडिया का दौर है लेकिन मीडिया में ख़बरें दूसरी हैं. सौ चैनल हैं, मगर सबका एक ही प्रोपेगैंडा है जिसे अंग्रेज़ी में एजेंडा कहते हैं. जो विरोध कर रहा है वो सरकार और देश का विरोध कर रहा है. देशद्रोह कर रहा है. हमें समझना होगा कि क्यों आदोंलन का बेमानी होते जा रहे हैं. क्यों आंदोलन मुश्किल होते जा रहे हैं. क्यों आंदोलन की हर संभावना पर नियंत्रण पहले से कहीं अधिक सख्त हो गया है. लोकतंत्र की बत्ती इंटरनेट के स्विच पर टिक गई है. स्विच ऑफ हुआ कि आप कट ऑफ हो गए. इस सवाल को आप वहां भी देखिए जहां कश्मीर है और वहां भी जहां कश्मीर नहीं है.
इसलिए हम हांग कांग की बात करेंगे. हांग कांग के प्रदर्शनों की खबर हमारे चैनलों में स्पीड न्यूज़ में दिखती है लेकिन दुनिया के कई अखबारों में इस आंदोलन की रणनीतियों को लेकर खूब लिखा जा रहा है. हांग कांग का आंदोलन बता रहा है कि किस तरह पुलिस और स्टेट अब लोगों पर पहले से बेहतर तरीके से नियंत्रण कर सकता है और लोग इस नियंत्रण को चुनौती दे सकते हैं. हांग कांग के आंदोलन में स्टेट यानी राज्य की अकूत ताकत को चुनौती की कहानी है. लोकतंत्र में यकीन करने वाले हर छात्र को हांग कांग के आंदोलन का अध्ययन करना चाहिए.
11 हफ्ते से हांग कांग में प्रदर्शन हो रहे हैं. 150 साल तक हांग कांग ब्रिटेन का उपनिवेश रहा था. 1984 में ब्रिटेन और चीन के बीच एक डील हुई कि 1997 से हांग कांग चीन का हिस्सा बनेगा लेकिन उससे पहले 50 साल तक वहां एक मुल्क, दो सिस्टम लागू होगा. 50 साल यानी 2047 में हांगकांग का चीन में पूर्ण विलय हो जाएगा. तब तक के लिए हांग कांग के पास रक्षा और विदेश मामलों को छोड़ सारे अधिकार रहने थे.
मगर हांग कांग की विधायिका में चीन के हस्तक्षेप के कारण कई कानून ऐसे बन गए जो वहां के लोगों को पसंद नहीं आए. उनका कहना है कि उनके लोकतांत्रिक अधिकारों की कटौती होती जा रही है. इसके खिलाफ समय-समय पर प्रदर्शन होते रहे मगर उन्हें कुचला जाता रहा. हांग कांग के पास अभिव्यक्ति की आज़ादी है, जमा होने की आज़ादी है, अपना लीगल सिस्टम है. आर्थिक नीति भी अपनी है. मगर पिछले दिनों यहां एक कानून बनता है कि अगर कोई व्यक्ति ऐसे अपराध में पकड़ा जाता है जिस पर हांग कांग के कानून के तहत कार्रवाई नहीं हो सकती तो उन्हें चीन भेज दिया जाएगा. लोगों में आशंका फैली कि उन्हें इस कानून का सहारा लेकर चीन भेज दिया जाएगा. जून के महीने से ही इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन होने लगे.
लेकिन हमारा फोकस हांग कांग और चीन के बीच के मसले पर नहीं है, वहां हो रहे प्रदर्शनों और तरीकों पर है. हांग कांग के आंदोलनकारियों ने आंदोलन की समझ बदल दी है. उनकी तैयारी, उनके कपड़े और टेक्नालजी का इस्तमाल बता रहा है कि भविष्य का आंदोलन कितना मुश्किल हो जाएगा. हांग कांग के आंदोलनकारियों ने जो तरीका निकाला है क्या वो आज की सरकारों पर दबाव डालने के लिए पर्याप्त है, याद रखिए, सरकारों के पास टेक्नालजी के कारण लाखों की भीड़ पर नियंत्रण करने का तरीका है. वो चाहे तो लाखों लोगों का नेटवर्क गायब कर सकती है, कुछ हज़ार का और किसी एक का भी नेटवर्क समाप्त कर सकती है. आप अचानक दुनिया से लेकर अपने आस पास से कट जाएंगे. इसलिए कहा कि लोकतंत्र के हर छात्र को हांग कांग के प्रदर्शन का अध्ययन करना चाहिए, हांग कांग के लिए नहीं, अपने भविष्य के लिए. जैसे वहां की पुलिस जब आंदोलनकारियों से मुकाबला करने आती है तो उसके पास एक हाई डेफिनिशन कैमरा होता है जो झट से चेहरे की तस्वीर लेता है और सारा रिकॉर्ड बाहर कर देता है.
आप देख सकते हैं कि पुलिस के जवानों के बीच में एक शख्स खड़ा है जिसके पास कैमरा है. प्रदर्शन में शामिल चेहरे की तस्वीर ली जा रही है ताकि पता लगाया जा सके कि ये कौन हैं. एक बार पहचान हो गई तो फिर पुलिस के लिए भीड़ से अलग करना आसान हो जाएगा. इस कैमरे की मदद से पुलिस प्रदर्शन में शामिल लोगों को तोड़ सकती है. उन्हें अलग से प्रताड़ित कर सकती है. मगर प्रदर्शनकारियों ने इसका भी जवाब निकाला है. जब वे पुलिस के करीब जाते हैं तो लेज़र चलाते रहते हैं. हरे और नीले रंग के लेज़र की किरणें कैमरे को कंफ्यूज़ कर देती हैं. कैमरे का लेंस ख़राब हो जाता है. तस्वीर साफ नहीं होती है. ज़माना कितना बदल गया है. हांग कांग की पुलिस ने कहा है कि लेज़र किरणों से आंखों को नुकसान पहुंचेगा, शरीर के चमड़े को भी नुकसान होगा इसलिए इसका इस्तमाल न करें. हमने चेहरे की पहचान करने वाले कैमरे के बारे में सीबीसी वेबसाइट पर पढ़ा जिसमें लिखा है कि यह कैमरा तस्वीर लेते ही बता देता है कि प्रदर्शनकारी का मूड कैसा है, वह किस पहचान का है, दाढ़ी के बिना और दाढ़ी के साथ कैसा चेहरा दिखेगा, और क्या बोल रहा है, वो भी पकड़ सकता है. ऐसे कैमरे आने वाले दिनों में प्रदर्शन करना मुश्किल कर देंगे तो ऐसे लेज़र भी हैं जो कैमरे के साथ खड़ी पुलिस को मुश्किल में डाल सकते हैं. यह लेज़र इतना ख़तरनाक है कि पुलिस ने इसका मीडिया के सामने प्रदर्शन कर बताया कि सफेद कागज पर ज्यादा देर तक लेज़र किरणों को डालने से कागज़ जल सकता है. हेलिकाप्टर या हवाई जहाज़ को नुकसान पहुंचा सकता है. अब पुलिस उन लोगों को गिरफ्तार कर रही है जो लेज़र टार्च खरीद रहे हैं. पुलिस सादे लिबास में बाज़ार में लेज़र प्वाइंटर ख़रीदने वालों को गिरफ्तार कर रही है.
इस बारे में हमें सीएनबीसी की एक रिपोर्ट मिली. मई 2019 की. जिसमें बताया गया है कि चीन में तकरीबन 20 करोड़ कैमरे देश भर में लगे हैं जो किसी के चेहरे की पहचान कर सकते हैं. कौन चोरी कर रहा है से लेकर क्लास में कौन सा बच्चा सो रहा है, हर कोई पकड़ में आ जाता है. इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 1 अरब से भी अधिक की आबादी का चेहरा यानी डेटा एक सिस्टम में है जो एक झटके में पूरा रिकॉर्ड निकाल सकता है. कैमरा किसी को देखते ही सेकेंड भर में ही बता देगा कि सामने वाला कौन कौन है, उसका रिकॉर्ड क्या है. सरकारों के पास नियंत्रण की ऐसी टेक्नालजी आ गई है और हम इससे बेखबर होकर हिन्दू मुस्लिम में लगे हैं. आने वाले वक्त में टेक्नालजी किस तरह की चुनौतियां हमारे लोकतंत्र के लिए ला रही है, उसकी परवाह ही नहीं है. इसीलिए हांग कांग की पुलिस को हाई स्पीड इंटरनेट सेवा दी जाती है ताकि उनका हाई डेफनेशन कैमरा तेज़ी से काम कर सके. यह हिंसा का नया दौर और रूप है. पुलिस कैमरे से हिंसा कर रही है. प्रदर्शनकारी की पहचान कर रही है तो प्रदर्शनकारी लेज़र के साथ जवाबी हिंसा कर रहे हैं. अगर चेहरे की पहचान और सोशल मीडिया पर डाले गए पोस्ट से किसी प्रदर्शन में शामिल करना असंभव हो गया है तो हांग कांग की जनता ने उसकी काट निकाल ली है. इसलिए कहा कि लोकतंत्र का भविष्य बगैर धरना प्रदर्शन के नहीं हो सकता है और धरना प्रदर्शन का क्या भविष्य है उसे समझने के लिए हांग कांग के प्रदर्शनों का अध्ययन करना ही होगा.
प्रदर्शनकारियों की रणनीति ने पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है. यह वीडियो तो दुनिया भर में चर्चित हुआ था जब लाखों लोगों की भीड़ एंबुलेंस की आवाज़ सुनते ही किनारे हो गई और एंबुलेंस निकल गया. प्रदर्शनकारियों की इस तैयारी से दुनिया हैरान हो गई है कि यह कैसे संभव हो सकता है. पुलिस की नज़र से बचने के लिए प्रदर्शनकारी टेलीग्राम का इस्तमाल कर रहे हैं जिसमें सुरक्षा एजेंसिया हस्तक्षेप नहीं कर सकती हैं. खबर आई कि टेलीग्राम के सर्वर पर ही साइबर हमला हो गया है. इसके सीईओ ने कहा कि हमला चीन से हुआ था ताकि हांग कांग के लोग टेलीग्राम पर गुप्त बातचीत न कर सकें. टेलिग्राम एक ऐप है जिस पर आप व्हाट्सऐप की तरह बातचीत कर सकते हैं. आपको ऊपर से सिर्फ आंदोलनकारी लगेंगे लेकिन इसी में आंदोलकारियों की एक लाइन है जो ज़रूरत के सामान उपलब्ध कराती है. हाथ के इशारे से बताया जाता है कि क्या चाहिए और सामान एक मील की दूरी से आ जाता है क्योंकि लाइन इनती लंबी हो जाती है. अगर इशारा हुआ हेल्मेट चाहिए तो हेल्मेट आ जाता है. पैलेट गन और रबर बुलेट से बचाने के लिए कचरे के टिन या घरेलू सामान से ढाल बना लेते हैं. तो अब पुलिस के पास ही कांच की ढाल नहीं है बल्कि प्रदर्शनकारियों के पास भी है. प्रदर्शनकारी भी पुलिस की तरह सभी लिबास से सुसज्जित हैं ताकि चोट कम से कम लगे. आंसू गैस बुझाने की भी कई लोगों को ट्रेनिंग दी गई है. आंसू गैस गिरता है और फिर उसे ट्रैफिक कोन से ढंक दिया जाता है या उसके फटने से पहले पानी डाल देते हैं. यह भी नियम है कि किसी जगह पर ज़्यादा देर तक नहीं रहना है. उसके लिए भी अलग से निर्देश हैं. जिसका इशारा होते ही भीड़ पल भर में छंट जाती है. पानी की तरह आना है और गुज़र जाना है. चेहरा पहचान में न आए इसलिए प्रदर्शनकारियों ने अपना चेहरा ढंक लिया है. ऑटोमेटिक इंटेलिजेंस के इस्तमाल से चेहरे की पहचान हो जाती है इसलिए बचने के लिए चेहरे पर मास्क लगा लेते हैं. यहां तक कि सीसीटीवी कैमरे को पेंट से पोत दिया गया है. आप जानते हैं कि हर शहर में चप्पे चप्पे पर कैमरे लगे हैं, इनकी वजह से आंदोलन करना अब मुश्किल है.
क्या टेक्नालजी से ही जवाब देकर हांग कांग के प्रदर्शनकारी ख़ुद को अनाम और गुप्त रख सकते हैं. हांग कांग के प्रदर्शनकारी अपनी रणनीति से हर दिन दुनिया को चौंका रहे हैं. प्रदर्शनकारी अपना नाम नहीं बताते हैं. इनका कोई नेता नहीं जिसे पुलिस गिरफ्तार कर आंदोलन को बेकार कर दे. लोकतंत्र के लिए लड़ने वाले मेट्रो ट्रेन में एक ही तरफ का टोकन लेते हैं. ताकि पता न चले कि कहां से कौन कहां गया था. ये लोग क्रेडिट कार्ड का भी इस्तमाल नहीं करते हैं. जहां प्रदर्शन करते हैं वहां न तो सेल्फी लेते हैं और न फोटो लेते हैं. ऐसे सिम का इस्तमाल करते हैं जिसे एक बार इस्तमाल करने के बाद फेंका जा सकता है. आंदोलन में शामिल लोगों ने अपने स्मार्टफोन से सभी प्रकार के ऐप डिलिट कर दिए हैं. चीनी सोशल मीडिया वीबो और वी चैट का इस्तमाल नहीं कर रहे हैं. कोई फेसबुक पर कुछ भी डाल रहा है. 2014 में आंदोलनकारियों ने बहुत सारी तस्वीरें फेसबुक पर डाली थीं जिसके कारण गिरफ्तारियां होने लगीं. 2014 के आंदोलन से काफी कुछ सीखा है. आपस में बातचीत के लिए नए कोड का इस्तमाल हो रहा है. रैली की जगह पिकनिक का इस्तमाल करते हैं. मोबाइल सर्विस बंद हो जाने के कारण अपना एक ऐप बनाया है जिसके ज़रिए लोकल लेवल पर बातचीत हो जाती है. हांग कांग का आंदोलन बता रहा है कि जब स्टेट का सर्वेलांस बढ़ जाए, उसका नियंत्रण बढ़ जाए तब लोग क्या करेंगे, क्या अपने लोग होने का वजूद गंवा देंगे, लोकतंत्र में बग़ैर प्रदर्शन के आप लोक हो सकते हैं, मेरे ख्याल से आप लोक नहीं हो सकते हैं.
हांग कांग इंटरनेशनल एयरपोर्ट के भीतर हज़ारों की संख्या में पहुंच गए. यह दुनिया के बड़े एयरपोर्ट में से एक है. पिछले शुक्रवार को एयरपोर्ट के आस पास छोटे समूह में प्रदर्शन शुरू हुआ लेकिन सोमवार आते आते भीड़ बड़ी हो गई. प्रदर्शनकारियों को पता था कि हांग कांग एयरपोर्ट पर दुनिया के कई देशों से लोग आते हैं इसलिए कई भाषाओं में पोस्टर तैयार कर ले गए ताकि उनकी बात दुनिया तक पहुंचे. वहां पर यात्रियों के बीच अपना पैम्पलेट बांटने लगे. मीडिया के ज़माने में लोग उस दौर की तरकीब अपना रहे हैं जब मीडिया नहीं था. सोशल मीडिया के बारे में कहा जाता है कि यह लोगों को आज़ाद करता है, लोकतांत्रिक बनाता है मगर अब यह सोशल मीडिया सरकारों के लिए लोगों पर नियंत्रण के काम आ रहा है. इसलिए हांग कांग के प्रदर्शन की खबरें भले सोशल मीडिया में हैं मगर उनकी तैयारियों को लेकर कहीं कोई निशान नहीं मिलेगा. एयरपोर्ट पर भीड़ लगने के कारण सैकड़ों की संख्या में फ्लाइट कैंसिल करनी पड़ी. एयरपोर्ट पूरी तरह से बंद ही है. अगर प्रदर्शनकारी पुलिस को छका रहे हैं, चकमा दे रहे हैं तो पुलिस भी उन्हें चकमा देने लगी है. वो प्रदर्शनकारी बनकर भीड़ में शामिल हो जा रही है और उन्हें गिरफ्तार करने लग जा रही है. इस कारण प्रदर्शनकारियों में बेचैनी बढ़ गई है. भीड़ को शक होने लगा है कि कहीं उनके बीच कोई पुलिसवाला तो नहीं है. एयरपोर्ट के भीतर घुस आने के कारण इस आंदोलन को दुनिया भर में ज्यादा जगह मिली है. कई देशों में अपने नागरिकों को चेतावनी दी है कि हांग कांग जाने से बचें क्योंकि स्थिति तनावपूर्ण है.
लोकतांत्रिक अधिकारों को लेकर लोगों का यह हुजूम बता रहा है कि बड़ी ताकतों से मुकाबला आसान नहीं है. टेक्नालजी ने आंदोलनों की उम्र छोटी कर दी है. उनकी सफलता अब मुश्किल हो गई है. हांग कांग के प्रदर्शनकारी कब तक इन रास्तों से सरकारी नियंत्रण को चकमा दे सकते हैं. सोशल मीडिया के नाम पर लोकतंत्र का जश्न मनाने से पहले इसके ख़तरों की ठीक से समझ हो जानी चाहिए. प्राइवेसी के सवाल पर लोग मुंह मोड़ लेते हैं, कल यह सवाल याद आएगा जब आप अपने हक के सवाल को लेकर सड़क पर जाना चाहेंगे मगर जा नहीं पाएंगे. सोशल मीडिया के रह पाएंगे और न ही रीयल मीडिया के. सब कुछ हिन्दी में बताया है, उम्मीद है आप समझने की कोशिश बिल्कुल नहीं करेंगे. चीन जैसी सरकार के सामने कब तक ये सारे प्रयोग कामयाब होंगे कहा नहीं जा सकता. हांग कांग के सीईओ का कहना है कि प्रदर्शन के चलते हांग कांग का आर्थिक भविष्य संकट में है. उसकी छवि खराब हो रही है. लोग कह रहे हैं कि उन्हें लोकतंत्र चाहिए. स्वायत्तता चाहिए. बीजिंग का कहना है कि हांग कांग का यह प्रदर्शन आतंकवाद का संकेत है. सरकारी मीडिया में इन्हें आतंकवादी के तौर पर दिखाया जा रहा है.