नैसर्गिता का सहजता से रिश्ता उतना गहरा नहीं होता, जितना आक्रामकता से होता है! अगर आक्रामकता करीब 70 फीसद नैसर्गिक होती है, सहजता शायद इससे आधी से भी कम! आक्रामकता को दर्शाने के लिए कोई विशेष प्रयास नहीं करने पड़ते, लेकिन सहजता को आक्रामकता की तुलना में ज्यादा साधा जाता है! बहुत सारी बातों से! मन को बहुत मारना पड़ता है, तो नयी बातों को जोड़ना पड़ता है! और खासकर अभिनय की दुनिया में बहुत ही ज्यादा आत्मविश्वास की दरकार होती है क्योंकि यह यात्रा' बहुत ही लंबी, कांटों भरी और एक्टिंग की सामान्य दुनिया से अलग होती है और कदम-कदम पर एक्टर के धैर्य की कई पहलुओं से कड़ी परीक्षा होती है!
क्रिकेट और बॉलीवुड दोनों में ही एफर्टलेस (सहजता, सरलता) बहुत खास और बहुत ही ज्यादा खूबसूरत पहलू रहा है!. बैटिंग में मॉर्क वॉ और डेविड गॉवर का एफर्टलेस अंदाज, वीवीएस लक्ष्मण के ड्राइव, गेंदबाजी में रिचर्ड हेडली का एक्शन, तो बॉलीवुड में बलराज साहनी सहित कई ऐसे अभिनेता रहे, जिनके एफर्टलेस (सहजता, सरलता) अंदाज ने मंत्रमुग्ध कर दिया और अपने-अपने क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ी. मॉडर्न क्रिकेट इतिहास के सबसे 'मक्खनी ड्राइव' लगाने वाले वीवीएस लक्ष्मण की सहजता के पीछे कितनी साधना छिपी है, शायदा इसका अंदाज भी नहीं लगाया जा सकता! यह क्लास नैसर्गिक भी होती है, लेकिन करीब सत्तर प्रतिशत से भी ज्यादा मामलों में इसे गढ़ा जाता है! कड़ी तपस्या के द्वारा! बाहर से जो देखने में बाएं हाथ का खेल दिखता है, वास्तव में उसके पीछे "बहुत ही बड़ा खेल" छिपा होता है!!
बलराज साहनी एनएसडी (नेशनल स्कूल ऑफ ड्राम) की तपस्या रूपी भट्टी में नहीं पके थे! बलराज साहनी की सहजता और सरलता ज्यादा नैसर्गिक थी! यह इरफान से ज्यादा थी, लेकिन इसमें विविधता का अभाव था! दिवंगत इरफान खान चार साल एनएसडी में खुद को साधने के बाद करीब 13 साल टेलीविजन की दुनिया के संघर्ष के बाद कई साल तक बॉलीवुड में 'स्टार-एक्टर' बनने से पहले लंबे समय तक गुमनाम से रहे! इरफान ने खुद को स्थापित करने के लिए सुपरस्टारों की तरह 'स्टाइल की बैसाखियों' का सहारा न लेकर सहजता, सरलता के साथ चरित्र की नैसर्गिकता को अभिनय के क्रॉफ्ट से भेदने पर काम किया.
इसके बेहतरीन दर्शन साल 2007 में लाइन-इन मेट्रो में हुए, तो छह साल बाद ही रिलीज हुई पान सिंह तोमर में यह सहजता और सरलता चरम पर थी. वहीं, 2018 में हिंदी मीडियम में इरफान ने इसे एक और नया आयाम प्रदान किया! यहां तक आते-आते इरफान "स्टार-एक्टर" बन चुके थे. उनकी फीस करोड़ों रुपये हो चुकी थी और उनके मुकाबले में दूर-दूर तक कोई एक्टर नहीं था! क्रिकेट में सीमित ड्रिल्स के बावजूद शारीरिक श्रम बहुत ज्यादा होता है, लेकिन अभिनय में अलग-अलग चरित्र को नैसर्गिक बना देना बहुत ज्यादा मानसिक श्रम ले लेता है! इरफान की पत्नी सुपदा सिकदर कहती हैं कि इरफान उनके साथ चलते हुए रास्ते में डॉयलॉग बड़बड़ाते रहते थे! कई मौकों पर चरित्र में खुद को ढालने के लिए खुद को कई दिन तक कमरे में बंद रखकर इस पर काम करते थे!
'मेथड एक्टिंग' में संजय दत्त बनना रणबीर कपूर के लिए एक बार को आसान है, लेकिन इरफान खान ने अपनी सहजता से पान सिंह तोमर को 'कूल डाकू' बना दिया! न सुनील दत्त की तरह माथे पर टीका और न "खून पी जाऊंगा", "आग लगाकर राख कर दूंगा" जैसी आक्रामकता, लेकिन इरफान खान ने पान सिंह तोमर को जनता के दिलों में बसने पर मजबूर कर दिया! अपने एफर्टलेस (सहजता और सरलता) अंदाज से !! भरोसा दे दिया कि डाकू ऐसे भी होते हैं!
हर चरित्र इतना आसान बना दिया इरफान ने मानो बस हल्की सी फूंक मारो, चूल्हे में आग धूं-धूं कर जलने लगेगी! बलराज साहनी की सहजता नैसर्गिक थी, लेकिन उनकी नैसर्गिकता में इतनी विविधता नहीं थी!! नसीरुद्दीन शाह, मनोज वाजपेयी और अनुपम खेर में भी नहीं ही है! राजकुमार राव उम्मीद जगाते दिखाई पड़ते हैं, लेकिन उन्हें लंबी और अभी बहुत लबी यात्रा तय करनी है! क्या आगे भरतीय सिनेमा के इतिहास में इरफान खान के स्तर की विविधता और गजब के ठहराव के साथ भरी इतनी सहजता और सरलता दिखेगी?
मनीष शर्मा Khabar.Ndtv.com में बतौर डिप्टी न्यूज एडिटर कार्यरत हैं
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